Posted on 27 Oct, 2010 08:51 AM पर्यावरण सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी विवादों के यथासमय निस्तारण के लिए आखिरकार देश में अलग से पर्यावरण अदालत की स्थापना हो ही गई।
पर्यावरण और वन राज्यमंत्री जयराम रमेश द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के गठन के औपचारिक ऐलान के साथ ही हम दुनिया के उन चुनिंदा मुल्कों में शामिल हो गये हैं, जहां पर्यावरण संबंधी मामलों के निपटारे के लिए राष्ट्रीय स्तर पर न्यायाधिकरण होते हैं। न्यायाधिकरण का मुख्यालय राजधानी दिल्ली होगा। शुरू में देश में अलग-अलग चार स्थानों पर इसकी पीठ कायम होंगी। मामलों के आधार पर भविष्य में इनकी संख्या बढ़ाई भी जा सकती है। इसकी सबसे खास बात यह है कि किसी को यदि लगता है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय के नियम, नीतियां या उसकी ओर से किया गया कार्यान्वयन मनमाना, अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण है, तो वह बेझिझक न्यायाधिकरण में इंसाफ की गुहार लगा सकता है।
Posted on 26 Oct, 2010 09:14 AM पृथ्वी के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव) और अंटार्कटिक (दक्षिणी ध्रुव) की बहुत बड़ी भूमिका है। ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों पर दोनों क्षेत्र विपरीत प्रभाव डालते रहे हैं। रूसी मौसम केंद्र ने यह दावा किया है,आर्कटिक पर 21वीं सदी के मध्य की गर्मी तक बर्फ नहीं रहेगी।
केंद्र के प्रमुख अलेक्जेंडर फ्रॉलोव ने जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट पर अंतरसरकारी समूह (आईपीसीसी) के आकड़ों का हवाला देते हुए बताया, 'अगले 30-40 सालों में उत्तरी ध्रुव सहित आर्कटिक पर गर्मी के समय बर्फ नहीं रहेगी।'
Posted on 25 Oct, 2010 09:29 AM समुद्र किनारों का चेहरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि मत्स्यजीवियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। समुद्र इलाकों में मछली मारने के अधिकार से मत्स्यजीवियों को कदापि वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने गत पंद्रह सितंबर 2010 को कोस्टल रेगुलेशन जोन (सीआरजेड) 2010 शीर्षक से जो अध्यादेश जारी किया है, उसमें देश के मत्स्यजीवियों के हितों की निर्मम तरीके से अनदेखी की गई है। सीआरजेड के लागू होने के बाद बंगाल के दो लाख और पूरे देश के एक करोड़ मत्स्यजीवी संकट में पड़ जाएंगे।
सीआरजेड की पांच सौ मीटर के भीतर आवासन परियोजनाओं से लेकर विशेष आर्थिक क्षेत्र व अन्य संयंत्रों को लाने के प्रस्ताव से लगता है कि अतीत की सारी गलतियों को वैधता देना इसका एक मकसद रहा है।
Posted on 23 Oct, 2010 02:26 PM आर्कटिक को पृथ्वी का फ्रिज (रेफ्रिजरेटर) भी कहा जाता है, क्योंकि पृथ्वी का ध्रुव यह बहुत अधिक ठंडा है। लेकिन वायुमंडल में प्रदूषण फैलने की वजह से अब यह भी अभूतपूर्व दर से गर्म होता जा रहा है। आर्कटिक का गर्म होना पूरी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरे का संकेत है। आर्कटिक के लगातार गर्म होने की घटना के कारण पूरा उत्तरी गोलार्ध सबसे अधिक संकट में है। यह बात अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने
Posted on 23 Oct, 2010 11:21 AMमौसम में असमय बदलाव और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोतरी से सभी पर्यावरणविद परेशान हैं। किंतु, इस दिशा में आशा की एक नई किरण दिखी है। कैनबरा यूनिवर्सिटी और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने दावा किया है कि समुद्री पौधों की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम किया जा सकता है। उनका कहना है कि दुनिया के महासागरों का कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और जलवायु परिवर्तन पर गहरा प्रभाव पड
Posted on 23 Oct, 2010 09:20 AM कितना शीतल उसका दर्शन था! गेहूं के रवे के जैसी सफेद रेत पर स्फटिक जैसा पानी बहता हो, और ऊपर से चंड भास्कर की प्रतापी किरणे बरसती हों, ऐसी शोभा का वर्णन कैसे हो सकता है? मानो चांदी के रस की कोठी भट्टी का ताप सहन न कर सकने के कारण टूट गयी है नेल्लूर यानी धान का गांव। दक्षिण भारत के इतिहास में नेल्लूर ने अपना नाम चिरस्थायी कर दिया है। बेजवाड़े से मद्रास जाते हुए रास्ते में नेल्लूर आता है।
भारत सेवक समाज के स्व. हणमंतरावने नेल्लूर से कुछ आगे पल्लीपाडु नामक गांव में एक आश्रम की स्थापना की है। उसे देखने के लिए जाते समय सुभग-सलिला पिनाकिनी के दर्शन हुए। श्रीमती कनकम्पा के पवित्र हाथों से काटे हुए सूत की धोती की भेंट स्वीकार करके हम आश्रम देखने के लिए चले। कुछ दूर तक तो बगीचे ही बगीचे नजर आये। जहां-तहां नहरों में पानी दौड़ता था, और हरियाली-ही-हरियाली हंसती दिखाई देती थी।
Posted on 22 Oct, 2010 01:30 PM सभी नदी-भक्तों ने स्वीकार किया है कि गंगा का स्नान और तुंगा का पान मनुष्य को मोक्ष के रास्ते ले जाता है। मोटर की यात्रा यदि न होती तो तुंगभद्रा को मैं अनेक स्थानों पर अनेक तरह से देख लेता। तुंगभद्रा एक महान संस्कृति की प्रतिनिधि है। आज भी वेदपाठी लोगों में तुंगभद्रा के किनारे बसे हुए ब्राह्मणों के उच्चारण आदर्श और प्रमाणभूत माने जाते हैं।जलमग्न पृथ्वी को अपने शूलदंत से बाहर निकालने वाले वराह भगवान ने जिस पर्वत पर अपनी थकान दूर करने के लिए आराम किया, उस पर्वत का नाम वराह पर्वत ही हो सकता है। भगवान आराम करते थे तब उनके दोनों दंतों से पानी टपकने लगा और उसकी धाराएं पैदा हुईं। बांये दंत की धाराएं हुई तुंगा नदी और दाहिने दंत से निकली भद्रा नदी। आज इस उद्गम स्थान को कहते हैं। गंगामूल और वराह पर्वत को कहते हैं बाबाबुदान। बाबाबुदान शायद वराह-पर्वत नहीं है, लेकिन उसका पड़ोसी है। तुंगा के किनारे शंकराचार्य का शृंगेरी मठ है। मैंने तुंगा के दर्शन किये थे। तीर्थहल्ली में। (कन्नड़ भाषा में हल्ली के माने हैं ग्राम।) तीर्थहल्ली में मैं शायद एक घंटे जितना ही ठहरा था। लेकिन वहां की नदी के पात्र की शोभा देखकर खुश हुआ था।
Posted on 22 Oct, 2010 10:19 AM जिस प्रकार तेरे किनारे रामचंद्र ने दुष्ट रावण के नाश का संकल्प किया था, वैसा ही संकल्प मैं कब से अपने मन में लिए हुए हूं। तेरी कृपा होगी तो हृदय में से तथा देश में से रावण का राज्य मिट जायेगा, रामराज्य की स्थापना होते मैं देखूंगा और फिर तेरे दर्शन के लिए आऊंगा। और कुछ नहीं तो कांस की कलगी के स्थावर प्रवाह की तरह मुझे उन्मत बना दे, जिससे बिना संकोच के एक-ध्यान होकर मैं माता की सेवा में रत रह सकूं और बाकी सब कुछ भूल जाऊं। तेरे नीर में अमोघ शक्ति है। तेरे नीर के एक बिंदु का सेवन भी व्यर्थ नहीं जायेगा। बचपन में सुबह उठकर हम भूपाली गाते थे। उनमें से ये चार पंक्तियां अब भी स्मृतिपट पर अंकित हैं:
‘उठोनियां प्रातःकाळीं। वदनीं वदा चंद्रामौळी। श्री बिंदुमाधवाजवळी। स्नान करा गंगेचें। स्नान करा गोदेचें।।’
गंगा और गोदा एक ही हैं दोनों के माहात्म्य में जरा भी फर्क नहीं है। फर्क कोई हो भी तो इतना ही कि कालिकाल के पाप के कारण गंगा का माहात्म्य किसी समय कम हो सकता है, किन्तु गोदावरी का माहात्म्य कभी कम हो ही नहीं सकता। श्री रामचंद्र के अत्यंत सुख के दिन इस गोदावरी के तीर पर ही बीते थे, और जीवन का दारुण आघात भी उन्हें यहीं सहना पड़ा था। गोदावरी तो दक्षिणी की गंगा है।
Posted on 21 Oct, 2010 10:26 AM ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं।ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं। भागीरथी भले गंगोत्री से आती हो, तो भी मंदाकिनी का केदारनाथ और अलकनंदा का बद्रीनारायण भी गंगा के ही उद्गम है। ब्रह्मकपाल से होकर जो अलकनंदा बहती है और वहां एक बार श्राद्ध करने से जो अशेष पूर्वजों को एक साथ हमेशा के लिए मुक्ति देती है उस अलकनंदा का उद्गम स्थान क्या गंगोत्री से कम पवित्र है?