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जैव विविधता क़ानून में बदलाव और ग्रीन ट्रिब्यूनल
Posted on 18 Aug, 2010 09:51 AM
दो जून 2010 को भारत का ग्रीन ट्रिब्यूनल क़ानून अस्तित्व में आ गया। 1992 में रियो में हुई ग्लोबल यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन एन्वॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट के फैसले को स्वीकार करने के बाद से ही देश में इस क़ानून का निर्माण ज़रूरी हो गया था। इसके अलावा योजना आयोग ने भी इसकी संस्तुति की थी। हालांकि ग्रीन ट्रिब्यूनल के गठन को लेकर संसद में कई तरह के सवाल उठाए गए, लेकिन इसकी ज़रूरत के मद्देनज़र आख़िरकार इसे मंजूरी मिल गई। इस क़ानून में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नामक एक नए निकाय के गठन का प्रावधान है, जो पर्यावरण से संबंधित सभी मामलों पर नज़र रखेगा। इससे यह स्पष्ट है कि ट्रिब्यूनल के दायरे में देश में लागू पर्यावरण, जल, जंगल, वायु और जैव विविधता के सभी नियम-क़ानून आते हैं। उदाहरण के लिए देखें तो नए क़ानून का एक हिस्सा ऐसा है, जो पूरी तरह जैविक विविधता क़ानून 2002 (बीडी एक्ट, 2002) से संबंधित है। इसके महत्व को समझने की ज़रूरत है। बीडी एक्ट और नवगठित ट्रिब्यूनल पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत काम करेंगे।
प्रकाश में छुपा घुप्प अंधेरा
Posted on 12 Aug, 2010 03:14 PM कुछ समय पहले तक यह धारणा थी कि परमाणु कचरे को समुद्र में डाल दिया जाएगा। लेकिन अब यह तथ्य सामने आया है कि रेडियो एक्टिव पदार्थ समुद्री जीवों में प्रवेश कर जाते हैं और खाद्य चक्र के माध्यम से वे फिर मनुष्य के शरीर में पहुंच जाते हैं।अमेरिका और हमारे देश के बीच हुए परमाणु समझौते को 123 परमाणु समझौता कहा जाता है। यह नाम अमेरिका के परमाणु ऊर्जा अधिनियम की एक धारा से लिया गया है। जिस तरह ये तीन अंक इस समझौते के साथ जुड़े हैं, उसी तरह समझौते को उचित ठहराने व इसे खारिज करने के लिए भी तीन कारण गिनाए जा रहे हैं। समर्थकों की सारी बहस इस समझौते से जुड़ी विदेश नीति में छिपे भाव को लेकर है। इसका विरोध कर रहे लोगों को लगता है कि यह देश के परमाणु हथियार कार्यक्रम को प्रभावित करेगा। इसका समर्थन करने वालों का कहना है कि ऐसा नहीं है। हम परमाणु शस्त्रों पर काम जारी रख सकते हैं। कुछ मानते हैं कि इससे देश के आर्थिक लाभों को गति मिलेगी तो दूसरों को लगता है कि नहीं,
पानी-पर्यावरण के देशी वैज्ञानिक
Posted on 09 Aug, 2010 11:33 AM
भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन सरकारी उदासीनता और ज्ञान के संस्थानीकरण की वजह से तमाम खोजकर्ता और हुनरमंद गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। ऐसे ही कुछ देशी वैज्ञानिकों की खोज और सरकारी रवैए की पड़ताल कर रहे हैं प्रमोद भार्गव।
Pramod Bhargava
नरेगा और जल संरक्षण
Posted on 07 Aug, 2010 03:01 PM

नरेगा कार्यक्रम श्रृंखला के अन्तर्गत ये कार्यक्रम की ही एक कड़ी है इसमे ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्धारा चलाया गया राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम यानि नरेगा के द्वारा जल संरक्षण के बारे में बात की गई है इस कार्यक्रम में राजस्थान भीलवाड़ा के सुवाणा पंचायत समिति के लोगो की आवाजों को शामिल किया गया है साथ ही नरेगा कार्यक्रम से जुड़े मनोज त्रिपाठी जी के विचारो को शामिल किया गया है।

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