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बूंद बूंद पानी
Posted on 20 Dec, 2010 11:16 AM अतीत बंदरिया के मरे बच्चे की तरह बोझ है और भविष्य भूमंडलीकरण के हाथों में है। अब आवश्यकता की जननी जरूरत-बेजरूरत बारहों माह फल लुटा सकती है। हम कुआं खुदवा कर बूंद-बूंद पानी का भंडारण क्यों, करें, हम तो जरूरत पड़ने पर टैंकरों, रेल-हवाई जहाज से भी पानी मंगाने की औकात रखते हैं। गरमी लगते ही बूंद-बूंद पानी की तलाश शुरू हो जाती है। आसपास के कुएं सूख जाते, मां दस हाथ की रसरी लेकर, टीकाटीक दोपहर में पांच किलोमीटर दूर ‘इमरती’ कुएं से पानी खोजने निकलती। हम बच्चे भी ‘कुआं का पानी कुआं में जाए, ताल का पानी ताल में जाए’ गाते हुए एक-एक बूंद पानी को जलाशयों में फिर विसर्जित कर देते। उपभोग और बचत के बीच चक्रीय व्यवस्था थी और यह व्यवस्था जीवन और संस्कारों में समाई हुई थी। लोक जीवन का प्रथम ‘निष्क्रमण संस्कार’ पानी की तलाश से ही शुरू होता है।

जल संरक्षण एवं प्रबंधन में सर्टिफिकेट (सीडब्ल्यूएचएम)
Posted on 14 Dec, 2010 10:57 AM न्यूनतम अवधि: 6 माह
अधिकतम अवधि: 2 वर्ष
पाठ्यक्रम शुल्क: 1,600 रुपये
न्यूनतम उम्र: 18
अधिकतम उम्र: कोई सीमा नहीं

योग्यता:


• 10वीं उत्तीर्ण
• इग्नू से संचालित बैचलर प्रिपरेटरी प्रोग्राम (बीपीपी)
चौंकिए मत! जल की रानी को भी होता है दर्द
Posted on 22 Nov, 2010 08:11 AM

क्या मछलियों को दर्द भी होता है? क्या वह भी आम इंसानों की भांति दर्द होने पर कराहती और चिल्लाती है....इन उलझनों को सुलझाने का दावा किया है पेन स्टेट ने। प्रोफेसर और पर्यावरणविद पेन स्टेट की किताब ‘डू फिश फील पेन?’ के मुताबिक मछलियों में खास किस्म का स्नायु फाइबर्स होता है जो उकसाने वाली गतिविधियों, उत्तकों के नुकसान और दर्द का अहसास कराता है। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसा ही स्नायु फाइबर्स स्तनपायी जीवों और चिड़ियों में भी पाया जाता है।

स्टेट ने बताया कि 2030 तक इंसान मछलियों की अधिकांश जरूरत फिश फार्म से पूरा करेगा। इसलिए मछलियों के देखभाल और स्वास्थ्य के प्रति जानना बेहद जरूरी है। प्रयोगों से पता चला है कि मछलियां किसी भी प्रतिकूल व्यवहार के प्रति सतर्क रहती है। यदि हम उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं तो वह ही प्रतिक्रिया

ग्‍लोबल वार्मिंग बनाम मानवाधिकार
Posted on 17 Nov, 2010 07:26 AM जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए क़दमों की सुस्त चाल से, इससे प्रभावित हो रहे समुदायों में स्वाभाविक रूप से निराशा बढ़ी.
जल है धरती की धमनी का रक्त
Posted on 10 Nov, 2010 09:27 AM

सशक्त समुदाय सरकार व कंपनियों आदि की मदद के बिना भी पहल कर सकता है

जल अधिकार का वैकल्पिक संसार
Posted on 08 Nov, 2010 11:46 AM ‘पेयजल एवं स्वच्छता का मानवाधिकार जीवन के समुचित स्तर के अधिकार का
हिमालय : पृथ्वी पर लिखी एक रहस्यमय लिपि
Posted on 02 Nov, 2010 10:28 AM पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने हिमालय के ईको-सिस्टम यानी उसकी तमाम जैव विविधता, वनस्पति, नदियों, जल प्रपातों और विशाल ग्लेशियरों को बचाने का आह्वान किया तो याद आया कि हमारे देश में हिमालय नामक एक पर्वत भी है। नहीं तो हम शहरातियों के लिए हिमालय का मतलब है-कुल्लू, मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जीलिंग और शिलांग आदि। कोई तीर्थयात्री हुआ तो उसके लि
बनाएं पर्यावरण अनुकूल घर
Posted on 02 Nov, 2010 09:37 AM
प्राचीन काल में हमारी वास्तुकला काफी उन्नत थी।
मनरेगा : भ्रष्टाचार रोकने के उपाय नाका़फी
Posted on 29 Oct, 2010 10:09 AM
नरेगा के अंतर्गत भ्रष्टाचार और सरकारी धन के अपव्यय को रोकने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इस योजना की संरचना में पर्यवेक्षण और निरीक्षण का खास ध्यान रखा गया है। इसके लिए फील्ड में जाकर ज़मीनी हक़ीक़त की जांच-पड़ताल, मस्टररोल का सार्वजनिक निरीक्षण, योजना के अंतर्गत पूरे किए जा चुके एवं चल रहे कामों को सूचनापट्ट पर प्रदर्शित एवं प्रचारित करने और सामाजिक अंकेक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया है। मस्टररोल को सार्वजनिक करने की व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सके। लेकिन इसका हर जगह पालन नहीं हो रहा और इससे तमाम तरह की आशंकाएं पैदा हो रही हैं। काम के लिए की गई मांग और मांग पूरी होने पर घर के सदस्यों के फोटो लगे जॉबकॉड्‌र्स की व्यवस्था भी भ्रष्टाचार को ध्यान में रखकर ही की गई है।
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