निजीकरण का जिन्न एक बार फिर से सिर उठा रहा है। जी हां, खबर है कि दिल्ली में पेयजल आपूर्ति के निजीकरण के प्रयास चल रहे हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक निजी कंपनी को जल आपूर्ति एवं रख-रखाव का जिम्मा सौंपा जा रहा है। हालांकि यह पायलट प्रोजेक्ट है, लेकिन इसके दूरगामी निहितार्थ हैं।
दिल्ली सहित कई अन्य शहरों में जल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा वितरण एवं पारेषण क्षति के रुप में नष्ट हो जाता है। दूसरे अर्थो में कहा जाए तो पानी की चोरी, अवैध कनेक्शनों एवं पाइपों में लीकेज के माध्यम से पानी की क्षति हो जाती है। इसी बात को आधार बनाकर दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक पायलट परियोजना के तौर पर एक निजी कंपनी को यह जिम्मा सौंपा जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार वसंत कुज में 14,500 फ्लैटों को करीब 31 लाख गैलन पानी की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। प्रस्तावित परियोजना 3 चरणों में 36 माह में पूरी की जाएगी। दिल्ली सरकार चाहती है कि निजी कंपनी प्रस्तावित क्षेत्र में जल आपूर्ति के दौरान होने वाले तमाम क्षति को समाप्त करे और राजस्व वसूली को अधिकतम करे। कहने को तो यह ‘पायलट परियोजना’ है लेकिन इसके लिए कोई अवधि निर्धारित नहीं की गई है। इसका मतलब हुआ कि दिल्ली के वसंत कुंज क्षेत्र के लोगों को हमेशा के लिए जल निजीकरण की सौगात मिलेगी। इसके बाद धीरे-धीरे पूरी दिल्ली को इसके गिरफ्त में लेने की योजना है।
जल आपूर्ति के निजीकरण का खतरा सिर्फ दिल्ली पर ही नहीं बल्कि देश के प्रमुख 12 शहरों पर मंडरा रहा है। कहा जा रहा है कि पहले एवं दूसरे श्रेणी के 12 शहर इस दौड़ में सबसे आगे हैं। इसकी प्रमुख वजह है विश्व बैंक द्वारा भारत सरकार को 1 अरब डॉलर कर्ज देने का प्रस्ताव है। हालांकि पानी से जुड़ी किसी परियोजनाओं के लिए कर्ज का प्रस्ताव जल संसाधन मंत्रालय को दिया जाता है लेकिन इस बार विश्व बैंक द्वारा शहरी विकास मंत्रालय को यह प्रस्ताव दिया गया है। जाहिर है कि जब बैंक कर्ज दे रहा है तो उसकी वसूली भी करेगा और वह भी ब्याज सहित। तो यह बात साफ है कि कर्ज का जहां इस्तेमाल होगा वहां से बेहतर वसूली भी होनी चाहिए। इस तरह सरकार की प्राथमिकता होगी कि कर्ज का उपयोग वहीं किया जाए जहां से बेहतर वसूली हो। जब से शहरी विकास मंत्रालय के पास यह प्रस्ताव है तब विभिन्न राज्य अपने प्रमुख शहरों को इसमें शामिल करने के दावे पेश कर रहे हैं। तो फिर दिल्ली इस दौड़ में पीछे क्यों रहे।
भारत ने देश के 12 प्रमुख शहरों में चैबीसों घंटे भुगतान युक्त जल आपूर्ति की सुविधा शुरू करने के लिए विश्व बैंक से 1 अरब डॉलर के कर्ज को इस्तेमाल करने का निर्णय किया है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा सन 2012 तक परीक्षण आधार पर पूरे सप्ताह चैबीसों घंटे जल आपूर्ति परियोजना शुरू करने की योजना है। मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार अभी विश्व बैंक के साथ परियोजना के तौर-तरीके के बारे में बात हो रही है, जिसने सैद्धांतिक तौर पर 1 अरब डॉलर सहायता करने की स्वीकृति दे दी है। इसके लिए चुने हुए शहरों को उपभोग के लिए उपयोगकर्ता प्रभार, बरबादी रोकने के लिए मीटर लगाने जैसे बाध्यकारी सुधार करना होगा। इस तरह निजीकरण के माध्यम से चैबीसो घंटे महंगे पानी की सौगात मिलेगी। जाहिर है कि महंगा पानी खरीदने की औकात दिल्ली और देश के आम आदमी के बूते की बात नहीं है तो यह सौगात देश के तमाम संपन्न इलाकों के लिए ही है। जब नयी पंचवर्षीय योजना शुरू होगी, तब सन 2012 तक फंड आना शुरू होगा।
वर्तमान में केवल दो शहर - जमशेदपुर एवं नागपुर - में ही सातो दिन चैबीसो घंटे पाइप से जल आपूर्ति की व्यवस्था है। भारत में केवल 66 प्रतिशत आबादी के पास पाइप युक्त जल की उपलब्धता है। पुराने एवं जर्जर हो चुके पाइपलाइनों के कारण पेयजल की भारी मात्रा रिसाव के कारण नष्ट हो जाती है, जिसका परिणाम असमान वितरण के रूप में दिखता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक रिपोर्ट का कहना है कि सन 2017 तक भारत ‘‘जल अभावग्रस्त’’ हो जाएगा, जबकि प्रति व्याक्ति उपलब्धता घटकर 1600 घनमीटर रह जाएगी।
सोचने वाली बात यह है एक तरफ तो देश में हर व्यक्ति को साफ पेयजल उपलब्ध नहीं वहीं देश के संपन्न इलाकों के लिए चैबीसो घंटे पेयजल आपूर्ति का क्या तुक है! इस तरह यह साफ है कि पैसे दो और मनचाहे पानी का इस्तेमाल करो। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि शहरों में सम्पन्न वर्ग द्वारा पेयजल को जरूरी उपयोग के अलावा तमाम व्यावसायिक उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
दिल्ली सरकार द्वारा एक बार पहले भी सन 2004-05 में जल आपूर्ति के निजीकरण का प्रयास किया गया था लेकिन जन आंदोलन एवं जन दबाव के कारण प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा था। उस समय सरकार ने पूरे दिल्ली में जल आपूर्ति के निजीकरण का खाका तैयार किया था और उस समय एडीबी ने इसके लिए अपने मनपसंद सलाहकार प्राइस वाटर हाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) को नियुक्त करने का सुझाव दिया था। गौरतलब है कि पीडब्ल्यूसी की पृष्ठभूमि काफी विवादास्पद रही है। इस तरह इस बार सरकार ने गुपचुप तरीके से दिल्ली के एक क्षेत्र में इसे आजमाने को सोचा है। हालंाकि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित निजीकरण की पैरोकार हैं लेकिन इस बार वे जन आलोचना से बचने के लिए अपने विधायकों के माध्यम से इसकी सिफारिश करवा रही हैं। अभी हाल ही में कांग्रेस विधायक राजेश लिलोठिया ने दिल्ली में जल आपूर्ति में सुधार के लिए आपूर्ति का निजीकरण करने का अनुरोध किया है। खबर है कि दिल्ली सरकार ने पूरी दिल्ली में चैबीसो घंटे जल आपूर्ति के नाम पर विश्व बैंक से 5 करोड़ डॉलर कर्ज का प्रस्ताव भी भेजा है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है तो दिल्ली में जल आपूर्ति एवं प्रबंधन के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश का रास्ता साफ हो जाएगा। इसके अलावा गत 14-15 जनवरी को गुड़गांव के पास मानेसर में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जल आपूर्ति में सुधार के मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक भी हुई। बैठक में दिल्ली जल बोर्ड के अलावा विश्व बैंक एवं यूएनडीपी के अधिकारी शामिल हुए। वास्तव में इस बैठक में जल आपूर्ति के निजीकरण के आसान रास्ते तलाशने की कोशिश की गई।
अतीत के तमाम उदाहरणों को देखा जाए तो यह साफ होता है कि निजी कंपनियों के साथ सरकारें इस प्रकार का करार करती हैं कि उन्हें किसी प्रकार का नुकसान न हो। यदि जल आपूर्ति के मामले में भी निजी कंपनियों को लाभ नहीं होता है तो सरकार उन्हें लाभ की गांरटी जरूर देगी। तो भले ही सरकार को पूरी वसूली न हो लेकिन सरकार तो बैंक का कर्ज चुकायेगी ही। इस तरह वह वह आम जनता के पैसे से अमीरों को लाभ पहुंचाएगी। इस तरह देश के कुछ सम्पन्न लोगों को चैबीसो घंटे जल आपूर्ति के लिए कर्ज लेकर उसे चुकता करने के लिए टैक्स लगाकर आम जनता से वसूलने का यह नायाब तरीका है। तो असल में यही है आम आदमी की सरकार का चेहरा जो चाहती है कि अमीरों की शानों शौकत की कीमत आम आदमी चुकायें! पानी जैसे बुनियादी चीज के लिए भी निजीकरण की कोशिश हो रही है तो फिर सरकार के क्या मायने है?
Keywords: Water Privatisation, Delhi Jal Board, DJB, World Bank, 24x7, water supply
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