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जल पर मिल्कियत देशी-विदेशी कम्पनियों की
Posted on 10 Mar, 2011 09:24 AM ‘वीवेंडी वाटर’ 23 करोड़ रु.
भारत में 2020 तक पानी की किल्लत :ब्लेक
Posted on 10 Mar, 2011 09:05 AM

वर्ष 2025 तक दुनिया के दो तिहाई देशों में पानी की किल्लत हो जाएगी। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि वर्ष 2025 तक दुनिया के दो तिहाई देशों में पानी की किल्लत हो जाएगी, जबकि एशिया और खासतौर पर भारत में 2020 तक ही ऐसा होने की आशंका है। दक्षिण और मध्य क्षेत्र मामलों के सहायक विदेश मंत्री राबर्ट ब्लेक ने कहा,'विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि दुनिया के करीब दो तिहाई देशों में पानी की किल्लत हो जाएगी।

पेयजल की समस्या
Posted on 09 Mar, 2011 02:55 PM दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मँगाया जाता
‘सप्त सरिता’ की भूमिका
Posted on 09 Mar, 2011 11:21 AM नदी-भक्ति हम भारतीयों की असाधारण विशेषता है। नदियों को हम ‘माता’ कहते हैं। इन नदियों से ही हमारी संस्कृतियों का उद्गम और विकास हुआ है। नदी देखते ही उसमें स्नान करना, उसके जल का पान करना और हो सके तो उसके किनारे संस्कृति-संवर्धन के लिए दान देना, ये तीनों प्रवृत्तियां नदी-दर्शन के अंग हैं। स्नान, पान और दान के द्वारा ही नदी-पूजा होती है। कई नदी-भक्त पुरोहितों की मदद लेकर देवी की शास्त्रोक्त पूजा करत
उपस्थान
Posted on 09 Mar, 2011 11:19 AM भिन्न-भिन्न अवसरों पर भारतवर्ष की जिन नदियों के दर्शन मैंने किये, उनमें-से कुछ नदियों का यहां स्मरण किया गया है। यहां मेरा उद्देश्य भूगोल में दी जाने वाली जानकारी का संग्रह करने का नहीं है, न नदियों का हमारे व्यापार-वाणिज्य पर होनेवाला असर बताने का यहां प्रयत्न है। यह तो केवल हमारे देश की लोक माताओं का भक्तिपूर्वक किया हुआ नए प्रकार का उपस्थान है।
नदी-मुखेनैव समुद्रम् आविशेत्
Posted on 09 Mar, 2011 11:16 AM सुबह या शाम के समय नदी के किनारे जाकर आराम से बैठने पर मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। बालू का शुभ्र विशाल पट हमेंशा वहीं का वहीं होता है, फिर भी वहां का हर एक कण पवन या पानी से स्थान भ्रष्ट होता है। इतनी सारी बालू कहां से आती है और कहां जाती है?
सरिता-संस्कृति
Posted on 09 Mar, 2011 10:24 AM जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है और जहाँ वर्षा के आधार पर ही खेती हुआ करती है, उस भूमि को ‘देव मातृक’ कहते हैं। इसके विपरीत, जो भूमि इस प्रकार वर्षा पर आधार नहीं रखती, बल्कि नदी के पानी से सींची जाती है और निश्चित फ़सल देती है, उसे ‘नदी मातृक’ कहते हैं। भारतवर्ष में जिन लोगों ने भूमि के इस प्रकार दो हिस्से किए, उन्होंने नदी को कितना महत्व दिया था, यह हम आसानी से समझ सकते हैं। पंजाब क
मैंग्रोव क्षेत्रों का वर्गीकरण
Posted on 08 Mar, 2011 02:45 PM मैंग्रोव वनों के भौगोलिक वितरण को नियंत्रित करने वाला मुख्य कारक वहां के वातावरण का तापमान है। विषुवत रेखा के आसपास के क्षेत्रों में जहां जलवायु गर्म तथा नम होती है, वहां मैंग्रोव वनस्पतियों की लगभग सभी प्रजातियां पायी जाती हैं। मैंग्रोव वनस्पति विश्व के लगभग 112 देशों में पायी जाती हैं जिनमें अधिकतर उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में स्थित हैं। यदि जापान तथा बरमूडा के क्षेत्रों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें
मैंग्रोव :- प्रस्तावना
Posted on 08 Mar, 2011 12:58 PM मैंग्रोव शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द ‘मैंग्यू’ तथा अंग्रेजी शब्द ‘ग्रोव’ से मिलकर हुई है। मैंग्रोव शब्द का उपयोग पौधों के उस समूह के लिये किया जाता है जो खारे पानी और अधिक नमी वाले स्थानों पर उगते है। इस शब्द का प्रयोग पौधों की एक विशेष प्रजाति के लिये भी किया जाता है। मैंग्रोव, उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों के तटों पर उस स्थान पर उगने वाली वनस्पति को कहा जाता है जहां ज्वार के समय समुद्र का खार
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