भारत

Term Path Alias

/regions/india

क्षारीय मृदा सुधार जरूरी है जल निकास
Posted on 01 Mar, 2011 01:29 PM आज के परिप्रेक्षय में क्षारीय मृदाओं का विस्तार 3.4 मिलियन है। क्षेत्र में फैला हुआ है जिसका लगभग 75 प्रतिशत सिन्धु-गंगा जलौढ़ क्षेत्र में मिलता है। ऐसी मृदाएं पंजाब, हरियाणा और उत्तार प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, तमिलनाडू और बिहार राज्यों के काफी क्षेत्र में फैली हुई है। पिछले तीन-चार दशकों में लगभग 1.2 मिलियन हैक्टर क्षेत्र का सुधार होने के बावजूद, 2.2 मिलियन हैक्टर क्षेत्र में इनका विस्तार एक
मिट्टी परीक्षण का महत्व और प्रतिनिधि नमूना लेने की विधि
Posted on 01 Mar, 2011 12:09 PM मिट्टी की बनावट बड़ी पेचीदा होती है और कोई किसान अपने वर्षों के अनुभव के बावजूद भी अपने खेत की उपजाऊ शक्ति का सही-सही अन्दाजा नहीं लगा सकता। अक्सर किसी पोषक तत्व की कमी भूमि में धीरे-धीरे पनपती है और पौधों पर जब कमी के चिन्ह प्रगट होते हैं तो प्रायः काफी देर हो चुकी होती है और फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव जोर पकड़ चुका होता है। दूसरी ओर हो सकता है कि भूमि में किसी एक तत्व या तत्वों की मात्रा अत्य
गोबर गैस प्लांट की उपयोगिता
Posted on 01 Mar, 2011 11:40 AM किसानों की दो मुख्य समस्याँए हैं - पहली उर्वरक तथा दूसरी ईंधन की कमी, जो तरह-तरह की कठिनाईयाँ पैदा कर रही है। किसानों को गोबर तथा लकड़ी के अलावा अन्य कोई पदार्थ सुगमतापूर्वक उपलब्ध नहीं है। अगर किसान गोबर का उपयोग खाद के रूप में करता है तो उसके पास खाना पकाने के लिए ईंधन की समस्या बन जाती है। जैसा कि हमें विदित है मृदा की उर्वरक शक्ति ज्यादा फसल पैदा करने से काफी कमजोर हो गई है तथा संतुलित पोषक पदा
किफायती मृदा और जल-संरक्षण व्यवस्था
Posted on 01 Mar, 2011 10:02 AM जल संचयन के कार्य में जस्त चढ़े लोहे के तारों के जाल और पोलीथीन के बोरों का नवीन प्रयोग किया गया है। यह तरीका किफायती है और भारतीय परिस्थितियों में उपयोगी भी। प्रस्तुत है पदमपुरा पनढाल में हुए इस प्रयोग का विवरण खुद इसके प्रवर्तक की कलम से।
जैविक खेती
Posted on 01 Mar, 2011 09:30 AM भारत एक कृषि प्रधान तथा कृषि देश की अर्थ व्यवस्था का प्रमुख साधन है । भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है और अन्न से ही जीवन है, इसकी पूर्ति के लिए 60 के दशक में हरित क्रान्ति लाई गई ओर अधिक अन्न उपजाओं का नारा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों ओर कीटनाशकों का अन्धा-धुन्ध व असन्तुलित उपयोग प्रारम्भ हुआ । इससे उत्पादन तो बढ़ा उत्पादकता में स्थिरता आने के कारण पूर्व वर्षो की उत्पादन वृद्ध
मध्य प्रदेश में जंगल
Posted on 26 Feb, 2011 04:34 PM

मध्यप्रदेश अपनी विविधता के लिये जाना-पहचाना जाता है। विकास और सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों के संदर्भ में भी जितने प्रयोग और परीक्षण इस प्रदेश में हुए हैं; संभवत: इसी कारण इसे विकास की प्रयोगशाला कहा जाने लगा है। मध्यप्रदेश में राजस्व और वनभूमि के संदर्भ में भी विवाद ने नित नये रूप लिये हैं और अफसोस की बात यह है कि यह विवाद सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है। इस विषय को विवादित होने के कारण नजरअंदाज

स्वर्धुनी वितस्ता
Posted on 26 Feb, 2011 03:09 PM

‘संसार में अगर कहीं स्वर्ग है,
तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।’

सेवाव्रता रावी
Posted on 26 Feb, 2011 03:02 PM सिन्धु नदी को करभार देने वाली पांच नदियों में वितस्ता-झेलम-और शुतुद्री दो ही महत्त्व की मानी जाती हैं। बाकी की नदियां अपने जिम्मे आया हुआ काम नम्रता के साथ पूरा करती हैं। जिस प्रकार किसी श्रेष्ठ पुरुष से मिलने के लिए शिष्ट-मंडल जाता है, उसी प्रकार ये नदियां धीरे-धीरे साथ मिलकर आखिर सिन्धु से जा मिलती हैं। व्यास सतलुज से मिलती है। चिनाब झेलम से मिलती है और रावी इन दोनों से मिलती है। मुलतान के पास त
चिनाब
Posted on 26 Feb, 2011 11:14 AM कश्मीर से लौटते समय पैर उठते ही नहीं थे। जाते समय जो उत्साह मन में था, वह वापस लौटते वक्त कैसे रह सकता था?
सिंधु का विषाद
Posted on 26 Feb, 2011 09:54 AM हिमालय के उस पार, पृथ्वी के इस मानदंड के लगभग बीच में कैलाशनाथ जी कि आंखों के नीचे चिर-हिमाच्छादित पुण्यवान प्रदेश है, जिसके छोटे से दायरे में आर्यावर्त की चार लोकमाताओं का उद्गम-स्थान है। उस पार और इस पार का विचार यदि न करें, तो हम कह सकते हैं कि उत्तर भारत की लगभग सभी नदियां यहां से झरती हैं।
×