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अंबा-अंबिका
Posted on 05 Mar, 2011 01:30 PM भीष्म-पितामह अंबा-अंबिका नामक दो राजकन्याओं को जीतकर राजा विचित्र वीर्य के पास ले आये। कन्याओं ने साफ-साफ कह दिया, ‘हमारा मन दूसरी जगह बैठा हुआ है।’ विचित्रवीर्य अब इनसे विवाह कैसे करे? और जिसमें इनका मन चिपका था वह राजा भी जीती हुई कन्याओं का स्वीकार किस प्रकार करे? बेचारी राजकन्याओं को कोई पति नहीं मिला और वे झुर-झुर कर मर गयीं।
लावण्यफला लूनी
Posted on 05 Mar, 2011 12:04 PM खारची (मारवाड़ जंक्शन) से सिंधु हैदराबाद जाते हुए लूनी नदी का दर्शन अनेक बार किया है। ऊंटों के स्वदेश जोधपुर जाने का रास्ता लूनी जंक्शन से ही है; इसलिए भी इस नदी का नाम स्मृतिपट पर अंकित है। यहां के स्टेशन पर हिरण के अच्छे-अच्छे चमड़े सस्ते मिलते थे। ऐसे मुलायम मृगाजिन यहां से खरीदकर मैंने अपने कई गुरुजनों को और प्रियजनों को ध्यानासन के तौर पर भेंट दिये थे। पता नहीं कि चमड़े के इस उपयोग से हिरणों
उंचल्ली का प्रपात
Posted on 05 Mar, 2011 11:36 AM जोग के बिल्कुल ही सूखे प्रपात के इस बार के दर्शन का गम हलका करने के लिए दूसरा एकाध भव्य और प्रसन्न दृश्य देखने की आवश्यकता थी ही। कारवार जिले के सर्वसंग्रह-गजेटियर- के पन्ने उलटते-उलटते पता चला कि जोग से थोड़ा ही घटिया उंचल्ली नामक एक सुन्दर प्रपात शिरसी से बहुत दूर नहीं है। लशिंग्टन नामक एक अंग्रेज ने सन् 1845 में इसकी खोज की थी, मानों उसके पहले किसी ने इसे देखा ही न हो। अंग्रेजों की आंखों पर वह
क्षारीय मृदाओं के लक्षण तथा सुधार
Posted on 04 Mar, 2011 04:49 PM क्षारीय मृदाओं में विनिमय योग्य सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे पौधों की बढ़वार में बाधा पहुंचती है। प्रायः इन मृदाओं का क्षारांक 8.2 से अधिक होता है जो बहुधा 10 से ऊपर ही पाया जाता है। सोडियम की अधिकता के कारण मृदा के कणों का विऊर्पीपिंडन हो जाता है जिसके फलस्वरूप इन भूमियों की भौतिक दशा बहुत खराब हो जाती है और वे पानी के संचार के लिए अप्रवेश्य हो जाती है। मटियार की कठोर तह बन जाने तथा अवभूम
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जहां के तहां हम
Posted on 04 Mar, 2011 09:32 AM

हम लगातार धरती का दोहन करते जा रहे हैं।इस कारण लगातार भूकंप के झटके, ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण और कोई नहीं, हम स्वयं हैं। मशीनीकरण के युग में हम प्रकृति के महत्व को भूलते जा रहे हैं। आज इस संवेदनशील मुद्दे पर व्यावहारिक स्तर पर कोई नहीं सोच रहा है। सही मायनों और अन्य मुद्दों से ज्यादा जरूरी अब हमारे लिए ग्लोबल वार्मिंग और ऋतु परिवर्तन का विषय है। जिस पर चिंता नहीं, बल्कि

क्यों बन जाती है शहरों में बाढ़ की स्थिति
Posted on 03 Mar, 2011 04:11 PM नदियों या समुद्र के किनारे बसे नगरों में तटीय क्षेत्रों में निर्मा
Urban flood
मनरेगा पर नहीं रहा मेहरबान बजट
Posted on 03 Mar, 2011 10:17 AM

जब 2009 के आम चुनावों में जीत हासिल कर संप्रग दोबारा सत्ता में लौटी तो कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इस गठबंधन की जीत का बड़ा कारण राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लागू किया जाना माना था।

गोकर्ण की यात्रा
Posted on 01 Mar, 2011 05:13 PM लंकापति रावण हिमालय में जाकर तपश्चर्या करने बैठा। उसकी माँ ने उसे भेजा था। शिवपूजक महान सम्राट् रावण की माता क्या मामूली पत्थर के लिंग की पूजा करे? उसने लड़के से कहा, “जाओ बेटा, कैलाश जाकर शिवजी से उन्हीं का आत्मलिंग ले आओ। तभी मेरे यहां पूजा हो सकती है।” मातृभक्त रावण चल पड़ा। मानसरोवर से हर रोज एक सहस्त्र कमल तोड़कर वह कैलाशनाथ की पूजा करने लगा। यह तपश्चर्या एक हजार वर्ष तक चली।
भरत की आंखों से
Posted on 01 Mar, 2011 05:11 PM किनारे पर खड़े रहकर समुद्र की शोभा को निहारने में हृदय आनंद से भर जाता है। यह शोभा यदि किसी ऊंचे स्थान से निहारने को मिले तब तो पूछना ही क्या?
वेल्गंगा-सीता का स्नान-स्थान
Posted on 01 Mar, 2011 05:09 PM वेरूलग्राम का हरा कुंड देखकर लौटते समय रास्ते में वेलगंगा का झरना देखा था। झरना इतना छोटा था कि उसे नाला भी नहीं कह सकते। किन्तु उसे ‘वेलगंगा’ का प्रतिष्ठित नाम प्राप्त हुआ है। नदी का नाम सुनने पर उसका उद्गम कहां है, इसकी खोज किये बिना क्या रहा जा सकता है?
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