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लहरों के बीच कॅरियर
Posted on 18 Mar, 2011 01:39 PM

अगर आप सागर की गहराई को नापना चाहते हैं और जलीय जीव-जन्तु के बारे में जानने को इच्छुक है तो मरीन साइंस के क्षेत्र में कॅरियर की बेहतर संभावनाएं उपलब्ध है। रोमांच से भरपूर इस क्षेत्र में हर दिन आपको नई जानकारी मिलेगी। साथ ही इंसानों से अलग एक नई दुनिया के रहस्य को जानने का मौका भी। वर्तमान समय में बदलते पर्यावरण में उत्पन्न विपरीत स्थितियों की वजह से समुद्रों में रह रहे जीवों पर अध्ययन की काफी ज

जिओलॉजिस्ट बनिए
Posted on 18 Mar, 2011 01:21 PM

भूवैज्ञानिकों को सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा जारी टोपोग्राफिकल नक्शों की मदद से ग्राउण्ड वाटर की स्थिति का पता लगाना होता है।

तेल ने किया पर्यावरण का तेल
Posted on 18 Mar, 2011 10:27 AM

जिस पेट्रोलियम को आधुनिक सभ्यता का अग्रदूत कहा जाता हैं, वह वरदान है अथवा अभिशाप है, क्योंकि इस

जितना बचाएंगे उतना ही पाएंगे
Posted on 18 Mar, 2011 09:40 AM

बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सि

सुरक्षित-ऊर्जा तथा पर्यावरण
Posted on 17 Mar, 2011 04:49 PM

हाल की एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की ओर से हो रही ग्लोबल वॉर्मिंग या वै

पर्यावरण के विभिन्न घटक
Posted on 17 Mar, 2011 02:02 PM

हम ‘पर्यावरण’ शब्द से परिचित हैं। इस शब्द का प्रयोग टेलीविजन पर, समाचार पत्रों में तथा हमारे आस-पास लोगों द्वारा प्राय: किया जाता है। हमारे बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि अब वह पर्यावरण/वातावरण नहीं रहा जैसा कि पहले था, दूसरे कहते हैं हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहिए। ‘पर्यावरणीय’ समस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित एवं विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस आलेख म

जल और जमीन के लिए लड़ाई
Posted on 17 Mar, 2011 09:11 AM

पानी को लेकर देशों के बीच लड़ाई तो सुर्खियां बनेंगी, लेकिन शहरों और खेतों के बीच पानी की लड़ाई चुपचाप चल रही है। पानी का अर्थशास्त्र किसानों के पक्ष में नहीं है।

 

पानी और अनाज के संकट का चोली-दामन का साथ है। आज जहां पानी का संकट है, कल वहां अनाज का संकट भी होगा। जब भारत और चीन जैसे बड़े देशों में पानी का संकट और बढ़ेगा और उन्हें दूसरे देशों से अनाज मंगवाना पड़ेगा, तब वे क्या करेंगे?

वह दिन दूर नहीं, जब खेती के लिए जमीन और पानी को लेकर समाज में एक नई लड़ाई छिड़ेगी। विश्व में प्रति व्यक्ति जल की मात्रा तेजी से घट रही है। उस पर जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। दोनों ही बातें आने वाले दिनों में दुनिया में विस्फोटक हालात का निर्माण कर देंगी। एक समय दस-दस कमरों की आलीशान कोठियां तो लोगों के पास होंगी, लेकिन पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा। जेब में पैसा तो इफरात होगा, लेकिन खरीदने के लिए मंडियों में अनाज नहीं होगा।

विश्व में 1975 से 2000 के बीच कुल सिंचित क्षेत्र में तीन गुना बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन उसके बाद विस्तार की गति मंद हो गई। संभव है जल्द ही सिंचित क्षेत्र घटना शुरू हो जाए। कई देशों में जलस्तर मानक से काफी नीचे जा चुका है।

लोक में अवर्षा के कारण
Posted on 16 Mar, 2011 11:37 AM

हमारे देश में चल रहे वानकीकरण जैसे आयोजनों के माध्यम से इस तथ्य से ग्रामीण जनों को अवगत कराया जा रहा है कि अच्छी वर्षा अच्छे वनों पर निर्भर करती है।

‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग-वर्णन के अंतर्गत कलियुग में बार-बार अकाल पड़ने की चर्चा की है। ‘कलि बारहिं बार अकाल परै। बिनु अन्न प्रजा बहु लोग मरे।’ अकाल की स्थिति में अन्न का उत्पादन संभव नहीं है। पानी है तो अन्न है। ‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः” अन्न से प्राणियों का पालन होता है, और अन्न बादलों से संभव होता है। जब बादलों से जल नहीं बरसता है- तब अकाल की स्थिति बनती है। अकाल का शाब्दिक अर्थ होता है- समय का निषेध। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में समय की धारणा बादलों से ही निर्मित होती है। फसल जब अच्छी होती है, तब काल सुकाल बन जाता है, और फसल तो तभी अच्छी आयेगी, जब बादल खूब बरसेंगे।
वाटर साइंस में हैं संभावनाएं
Posted on 15 Mar, 2011 03:02 PM

जल जीवन है और ये जॉब भी देता है। आप शायद ही जानते होंगे कि पानी में भी कॅरियर संवारा जा सकता है। वो भी एक जल वैज्ञानिक के तौर पर। विश्वभर में पानी को लेकर समस्याएं भले ही बढ़ती जा रही हों, लेकिन जल वैज्ञानिकों के लिए इस फील्ड में काफी स्कोप नजर आ रहा है। वाटर साइंटिस्ट के तौर पर आप जहां पानी पर कई प्रयोग कर सकते हैं, वहीं सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में सेवाएं देकर अच्छा वेतनमान प्राप्त कर सक

water science
विकास’ और हमारा पिछड़ापन
Posted on 15 Mar, 2011 01:47 PM

जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी हिस्से में औसत वर्षा 16 सेन्टीमीटर है, लेकिन यहां के समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी को शिकायत की तरह नहीं लिया बल्कि सांई ने जितना दिया है उतने में अपना कुटुंब समाकर दिखाया है।

हमारे जीवन में, राजनीति में और समाज के कामों में भी एक नया शब्द इस दौर में आया है। हमने उसे बिना ज्यादा सोचे-समझे बहुत बड़ी जगह देने की एक गलती की है। हम सब साथियों को यह जानकर अचरज होगा कि यह शब्द और कोई नहीं बल्कि ‘विकास’ शब्द ही है।

आज के इस दौर से सौ साल पहले का साहित्य या पचास साल पहले का साहित्य विकास जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करता था। कुछ राजनैतिक कारणों से हमने अपनी किसी लड़ाई में इस शब्द का किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहा था और अब हम सब पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनैतिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, कवि आदि भी अपना काम बिना विकास या प्रगति जैसे शब्दों के चला नहीं पा रहे हैं।

इसकी गहराई में जाना चाहिये, ऐसा अनुरोध मैं पूरी विनम्रता के साथ करना चाहता हूं।
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