Posted on 08 Jun, 2013 03:43 PMजैविक खेती सस्ती तो है ही, जीवन और जमीन को बचाने के लिए भी जरूरी है। 1960 से 1990 तक कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए जिस तेजी से और जिस तरह से रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया, उसने हमारे खेतों और जीवन दोनों को संकट में डाल दिया। तब पर्यावरण की अनदेखी की गयी थी, जिसकी कीमत हम आज चुका रहे हैं। 1990 के बाद से जैविक खाद की ओर खेती को लौटाने का अभियान शुरू हुआ, जो अब भी जारी है। द्वितीय
Posted on 08 Jun, 2013 12:57 PMखेती महंगी हो गयी है। कृषि उपकरण, बीज, खाद, पानी और मजदूर सब महंगे हो गये हैं। सरकार लाख दावा कर ले, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट यह सच सामने लाती है कि आज भी पांच में से दो किसान बैंकों की बजाय महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हैं, जिसकी ब्याज दर ज्यादा होती है। दूसरी ओर किसान हों या सरकार, सबका जोर कृषि उत्पादन की दर को बढ़ाने पर है। ज्यादा उत्पादन होने पर कृषि उपज की कीमत बाजार में गिरती है
Posted on 08 Jun, 2013 11:23 AMदेश भर में पर्यावरण, जल और जंगल को बचाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम के कई सफल प्रयोग हुए हैं। हम वैसी कुछ सफलताओं की कहानी साझा कर रहे हैं। हम अपने आस-पास पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी या गैर सरकारी कार्यों को सूचनाधिकार के तहत रोक सकते हैं।
Posted on 07 Jun, 2013 11:19 AMआजकल उत्तरी भारत में स्कूल और कॉलेजों में गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं। कोई नई बात नहीं, पचास साल पहले भी यही होता था, तो आज कौन सी निराली बात हो गई। तेज धूप और लू मई-जून में नहीं होगी तो फिर कब होगी? लेकिन कितनी तेज?
Posted on 07 Jun, 2013 10:30 AMवनाधिकार कानून बन जाने के बावजूद वनों पर आश्रित आबादी अपने राज्यसत्ता और कॉरपोरेट घराने नई किस्म की दुरभिसंधि में मशगूल हैं। ऐसे में ये वंचित और उनके बीच काम करने वाले संगठन देश भर में आंदोलन छेड़ने की तैयारी में लगे हुए हैं। वन संपदा को बचाने की इस व्यापक सामाजिक पहल के बारे में बता रही हैं रोमा।
Posted on 03 Jun, 2013 10:02 AMमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून लागू होने की छठी सालगिरह के मौके पर मनरेगा मजदूरों के एक विशाल सम्मेलन में मैंने एक कार्यकर्ता होने के नाते कहा था कि अब मनरेगा को पोलियो मुक्त अर्थात् भ्रष्टाचार मुक्त हो जाना चाहिए। क्योंकि इसमें एक अधिनियम के तहत योजनाएं संचालित होती हैं और कानून की नजरों में कोई भी कमजोर अथवा शक्तिशाली नहीं होता है। इस वर्ष दो फरवरी 2013 को दिल्ली में संपन्न