Posted on 17 Jun, 2013 03:57 PMतुम मेरी धार पर कतार बनके आए हो मेरी अपनी जिंदगी का आधार बनके आए हो आज मैं दुखी हूं और तुम भी दुखी हो अरे अपने घर पर संभालो मुझको मैं भी सुखी और तुम भी सुखी हो हां हैं बंधनों से बहुत शिकायत तुम्हारे फिर भी बताओ कब न आई, सर से लेकर घर तक तुम्हारे हाय तुमसे मुझको संभाला न गया कलशों में भरकर ले जाते हो, मुझे बड़ी श्रद्धा के साथ
Posted on 16 Jun, 2013 10:07 AM भीषण गर्मी में कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके शहरों के मकान किस तरह भट्ठी में तब्दील हो जाते हैं, ये हममें से किसी से छिपा नहीं है, लेकिन मिट्टी और वनस्पतियों से युक्त ये छतें सीधी धूप को रोककर अवरोधक का काम करती हैं। जाहिर सी बात है कि इससे बिल्डिंग का तापमान कम हो जाता है। इससे बिल्डिंग की कूलिंग कास्ट करीब बीस फीसदी तक कम हो जाती है। जहां तक भारत की बात है तो भारत में ग्रीन रूफ्स या ग्रीन बिल्डिंग्स अभी दूर की कौड़ी लगती है। कुछ बड़े शहरों में इसकी पहल तो हो रही है लेकिन ये अभी न के बराबर है, लेकिन ये बात सही है कि अगर शहर इलाके की नई बिल्डिंग्स ग्रीन बिल्डिंग्स के कांसेप्ट को लागू करें तो भारत 3,400 मेगावाट बिजली बचा सकता है। जब पूरी दुनिया में बात ग्रीन वर्ल्ड की हो रही हो, दुनिया के तेजी से खत्म होते प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की बातें हो रही हों, तो ग्रीन हाउस की परिकल्पना बहुत तेजी से हकीक़त में बदल रही है, यानी ऐसे घर जो हरे-भरे हों, जहां छतों पर हरियाली लहलहाए। जहां छतों से रंग-बिरंगे फूल मुस्कराएं। हरे-भरे लॉन में मुलायम-सी घास हो, कुछ छोटे-बड़े पेड़-पौधे हों। ऐसी छतें हमारे देश में भले ही न हो, लेकिन अमेरिका और यूरोप में हकीक़त बनती जा रही हैं। ये ऐसी छतें होतीं हैं, जिन्हें ग्रीन टॉप या ग्रीन रूफ कहा जाता है। आने वाले समय में अपने देश में भी शायद छतों पर हरी-भरी दुनिया का नया संसार दिखेगा। छतें केवल छतें नहीं होंगी, बल्कि बगीचा होंगी, खेत होंगी, फार्महाउस होंगी, जिन पर आप चाहें तो खूब सब्जी पैदा करें। इन्हीं छतों से बिजली पैदा की जाएगी। इनसे घरों का तापमान कंट्रोल किया जा सकेगा। कुछ मायनों में एसी का काम करेंगी। इन्हीं के जरिए वाटरहार्वेस्टिंग का भी काम होगा। आप चकित होंगे, एक छत से इतने काम! क्या सचमुच छतें इतने काम की हैं। हां, साहब वाकई छतें बहुत काम की हैं। भले अभी तक हमने इनका महत्व नहीं पहचाना हो, लेकिन दुनियाभर में कम होती जमीनों और पर्यावरण के प्रति जागरूकता ने छतों को वो महत्व प्रदान कर ही दिया है, जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।
Posted on 15 Jun, 2013 11:25 AMबदलते मौसम चक्र, वैश्विक तापवृद्धि, पिघलते ग्लेशियर, सिंचाई व पेयजल के लिए पानी की किल्लत आदि को देखते हुए यह समय की मांग है कि बड
Posted on 13 Jun, 2013 10:10 AM समुद्रों के खारेपन की चर्चा के बगैर समुद्र का महत्व अधूरा रहेगा। यह सच है कि यदि समुद्र में पानी कम हो जाए, तो यही खारापन बढ़कर आसपास की इलाकों की ज़मीन बंजर बना दे; ऐसे इलाकों का भूजल पीने-पकाने लायक न बचे; लेकिन सच भी है कि समुद्री खारेपन का महत्व, इस नुकसान तुलना में कहीं ज्यादा फायदे की बात है। गर्म हवाएं हल्की होती हैं और ठंडी हवाएं भारी; कारण कि गर्म हवा का घनत्व कम होता है और ठंडी हवा का ज्यादा। यह बात हम सब जानते हैं। यही बात पानी के साथ है। जब समुद्र का पानी गर्म होकर ऊपर उठता है, तो उस स्थान विशेष के समुद्री जल की लवणता और आसपास के इलाके की लवणता में फर्क हो जाता है। इस अंतर के कारण ही समुद्र से उठे जल को गति मिलती है। नदियां न होती, तो सभ्यताएं न होती। बारिश न होती, तो मीठा पानी न होता। पोखर-झीलें न होती, तो भूजल के भंडार न होते। भूजल के भंडार न होते, तो हम बेपानी मरते। पानी के इन तमाम स्रोतों से हमारी जिंदगी का सरोकार बहुत गहरा है। यह हम सब जानते हैं; लेकिन यदि समुद्र न होते, तो क्या होता? इस प्रश्न का उत्तर तलाशें, तो हमें सहज ही पता चल जायेगा कि धरती के 70 प्रतिशत भूभाग पर फैली 97 प्रतिशत विशाल समुद्री जलराशि का हमारे लिए क्या मायने है? समुद्र के खारेपन का धरती पर फैले अनगिनत रंगों से क्या रिश्ता है? समुद्री पानी के ठंडा या गर्म होने हमें क्या फर्क पड़ता है? महासागरों में मौजूद 10 लाख से अधिक विविध जैव प्रजातियों का हमारी जिंदगी में क्या महत्व है? दरअसल,किसी न किसी बहाने इन प्रश्नों के जवाब महासागर खुद बताते हैं हर बरस। आइये, जानें !
सच यह है कि यदि समुद्र में इतनी विशाल जलराशि न होती, तो वैश्विक तापमान में वृद्धि की वर्तमान चुनौती अब तक हमारा गला सुखा चुकी होती। यदि महासागरों में जैव विविधता का विशाल भंडार न होता, तो पृथ्वी पर जीवन ही न होता। यदि समुद्र का पानी खारा न होता, तो गर्म प्रदेश और गर्म हो जाते और ठंडे प्रदेश और ज्यादा ठंडे।
Posted on 11 Jun, 2013 10:31 AMराज्य में 15 वृहद व मध्य सिंचाई परियोजनाएं पूरी हुई हैं। नौ वृहत सिंचाई परियोजनाओं से 2187.88 हेक्टेयर व पांच मध्य सिंचाई परियोजनाओं से 294.55 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमता बढ़ी है। आठ वृहद व चार मध्यम सिंचाई परियोजनाओं का काम चल रहा है। इनमें पश्चिमी कोसी नगर योजना, दुर्गावती जलाशय योजना, उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना, बटेश्वरनाथ पंप नहर योजना, पुनपुन बांध योजना, ढादर सिंचाई योजना, उडेरास्थान बांध
Posted on 09 Jun, 2013 02:24 PMजंगल की रक्षा एवं प्रबंधन में ग्रामीण, पंचायत और सरकार-तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जंगल को लेकर अगर इन तीनों स्तरों पर समझदारी और समन्वय बन जाए तो वन और वनावरण के सवाल पर एक व्यापक बदलाव हो सकता है। वन का सवाल एक बहुआयामी सवाल है और यह जलवायु एवं पर्यावरणीय संकटों से घिरे आज के समय का अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है। जंगल एक ऐसा मुद्दा है जो जल, जीवन, जीविका, कृषि, जैवविविधता, संस्कृति, स्वास्थ्य,
Posted on 08 Jun, 2013 04:20 PM स्वस्थ पर्यावरण आपका अधिकार है। सरकार हो या आम आदमी, किसी को इस अधिकार को छीनने का हक नहीं है। इस मामले में हर नागरिक का अधिकार एक बराबर है। सब का कर्तव्य भी है कि वह पर्यावरण की हिफाजत करे। अगर इसमें कहीं अतिक्रमण हो रहा है, तो एक सजग नागरिक की हैसियत से आप उसे रोकने की पहल कर सकते हैं। अगर सरकार का कोई विभाग ही इसको ऐसा कर रहा है, तो भी आप चुप न रहें और उससे इस पर सवाल पूछें। चाहे पेड़