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भारत
जलवायु
Posted on 11 Sep, 2008 12:02 PMउत्तर में हिमालय पर्वत की विशाल पर्वतमालाओं और उनके वुजारोधों तथा दक्षिण में महासागर की मौजूदगी भारत की जलवायु पर सक्रिय दो प्रमुख प्रभाव हैं। पहला प्रभाव केन्द्रीय एशिया से आने वाले शीत बयारों के प्रभाव को अवेद्य रूप से रोकता है और इस उप-महाद्वीप को उष्णकटिबन्धीय प्रकार की जलवायु के तत्व प्रदान करता है। दूसरा प्रभाव भारत पहुचंने वाली शीतल नमी-धारक बयारों का स्रोत है और वह महासागरीय प्रकृति की जलवजल का भू-आकृति-विज्ञान
Posted on 11 Sep, 2008 11:56 AMभू-आकृति-विज्ञान की दृष्टि से भारत को सात सुपरिभाषित क्षेत्रों में बांटा जा सकता है जो इस प्रकार हैं:(i)हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं सहित, उत्तरी पर्वतमालाएं;
(ii) विशाल मैदानी क्षेत्र जिसके आर-पार सिंधु और गंगा ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियां मौजूद हैं। इसका एक तिहाई भाग पश्चिमी राजस्थान के सूखे-क्षेत्र में पड़ता है, शेष इलाका अधिकाशंतः उर्वर मैदानी क्षेत्र है;
भारतीय संविधान में जल की स्थिति
Posted on 11 Sep, 2008 11:45 AMभारत राज्यों का संघ है। राज्य और केन्द्र के बीच दायित्वों के आबंटन के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रावधान तीन श्रेणियों में आते हैं: संघ सूची (सूची-I), राज्य सूची (सूची-II) तथा समवर्ती सूची (सूची-III)। संविधान के अनुच्छेद 246 का सम्बन्ध संसद और राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा बनाई जाने वाली विधियों की विषय-वस्तु के साथ है। क्योंकि देश में अधिकांश नदियां अन्तर्राज्यीय हैं, इन नदियों के पानी का विनियमन
देश के वृहद नदी बेसिन
Posted on 10 Sep, 2008 08:17 PMभारत में नदियों की भरमार है। 252.8 मिलियन हैक्टेयर (एमएचए) के आवाह क्षेत्र सहित 12 नदियां वृहद नदियों के रूप में वर्गीकृत हैं। वृहद नदियों में गंगा-ब्रह्मपुत्र मेघना प्रणाली, जिसका आवाह क्षेत्र लगभग 110 मिलियन हैक्टेयर है जो कि देश की सभीवृहद नदियों के आवाह क्षेत्र के 43 प्रतिशत से बढ़ कर है सबसे विशाल प्रणाली है। 10 मिलियन हैक्टेयर से अधिक के आवाह क्षेत्र सहित अन्य वृहद नदियां इस प्रकार हैं सि
बाढ़ नियंत्रण
Posted on 09 Sep, 2008 10:42 AMबाढ़ का अर्थ है किसी भी नदी/नाले में पानी का अत्यधिक बहाव होना जिसके कारण पानी (अपवाह) का नदी के किनारों से बाहर बहकर आसपास की भूमि को जलमग्न करना। बाढ़ के कारण जानमाल की हानि, संचार सेवाओं में अवरोध, फसलों का नष्ट होना, बीमारियों का प्रसार आदि अनेकों समस्याएं पैदा हो जाती है।बाढ़ नियंत्रण के मुख्य उपाय हैं -
भारत जल पोर्टल
Posted on 09 Sep, 2008 10:07 AMभारत जल पोर्टल जल प्रबंधन के कार्य से जुड़े लोगों के बीच इससे संबंधित जानकारी बाँटने का एक खुला और संयुक्त मंच है, जो वेब-आधारित है।
इसका प्रयास है जल-विशेषज्ञों का अमूल्य अनुभव प्राप्त कर, उसे संकलित किया जाए, प्रौद्योगिकी की सहायता से उसकी उपयोगिता में संवर्धन किया जाए और तत्पश्चात इंटरनेट के माध्यम से समुदाय के उपयोगार्थ उसका व्यापक प्रसारण किया जाए।
जल फैलाव (Water Spreaders)
Posted on 06 Sep, 2008 12:28 PMकई प्रकार की यांत्रिक एंव वानस्पतिक विधियों का प्रयोग करके वर्षाजल अपवाह को ढ़लान से समतल क्षेत्रों में मोड़ा जाता है। जहां अपवाह जल ज्यादा भूमि क्षेत्र में फैलकर भूमि में वर्षा जल रिसाव को बढ़ावा देता है। उपरोक्त उद्देश्यों से बनाई गई संरचनाओं को जल फैलाव (Water spreaders) कहते है।विपथक बंध (Diversion bunds) / नालियां
Posted on 06 Sep, 2008 12:18 PMइनका निर्माण वर्षाजल अपवाह को सुरक्षित जल संग्राहक तालाबों / बांधो में पहुंचाना होता है। ये एक प्रकार की नालियां होती है जिन्हें ढलान के निचले हिस्से में 0.5 प्रतिशत से 1.0 प्रतिशत तक का ढाल देकर बनाया जाता है। यह जल संग्रहण तालाबों (Water harvesting ponds) का अभिन्न हिस्सा है। विपथक बंधों को स्थायित्व प्रदान करने के लिये सिमेन्ट लाईनिंग, ईंट की दीवार अथवा घटांके
Posted on 06 Sep, 2008 12:13 PMसतही अपवाह को भंडारित करने वाली एक ढंकी हुई भूमिगत सरंचना जिसे स्थानीय भाषा मं टंका कहते है। इस प्रकार के टंके भारत के शुष्क प्रदेशों में अधिकांश रूप से प्रयोग में लाये जाते है। टंका 3 से 4 मी. व्यास का एक गोल गङ्ढा खोदकर उसके आधार एंव किनारे की दीवारों को 6 मी.मी. मोटे लाईम मोर्टार या 3 मी.मी.खोदकर तालाबों का निर्माण एंव भंडारण टंकियां
Posted on 06 Sep, 2008 11:58 AMखोदकर बनाए गये तालाबों का निर्माण सामान्यतया समतल क्षेत्रों में किया जाता है। तालाब के निर्माण के लिये क्षेत्र के सबसे नीचले हिस्से का चुनाव किया जाता है जहां वर्षा जल अपवाह को आसानी से ले जाया जा सके। सर्वप्रथम आवश्यकतानुसार तालाब की सीमारेखा निर्धारित कर खुदाई शुरू की जाती है और खुदाई की गई मिट्टी को तालाब के चारों तरफ एक मजबूत मेंड के रूप में जमाकर रोल