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जल संकट ने आंखों में उतारा पानी
Posted on 19 May, 2013 03:47 PM यों भारत में इतनी बारिश होती है कि अगर उसका कारगर ढंग से रखरखाव किया जाए तो पानी के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ेगा। लेकिन कुप्रबंधन, उदासीन नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों में इच्छाशक्ति की कमी ने पूरे देश में जल संकट पैदा कर दिया है। पेयजल का व्यवसायीकरण होने से भी स्थिति विषम बनी हुई है। पानी की कहानी बयान कर रहे हैं प्रसून लतांत।

पानी के लिए सामने खड़ी समस्याओं के लिए हम और हमारी सरकारें भी पूरी तरह जिम्मेवार हैं। हमने अपने पूर्वजों के अनुभव और उनके तौर-तरीकों को पिछड़ा बता कर बड़े-छोटे बांध और तटबंध बनाने के नाम पर नदियों के प्रवाह से खिलवाड़ किया और उसमें कारखाने का रासायनिक डाल कर उसे प्रदूषित किया। बाकि बचे झील-तालाबों और कुओं में मिट्टी डाल उस पर दुकानें बना लीं। इन सब कारणों से अब धरती के ऊपरी सतह पर उपलब्ध पानी के ज्यादातर स्रोत सूख रहे हैं। देश की ज्यादातर नदियां सूख रही हैं। इसके कारण खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। पीने के पानी की किल्लत देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही है। पानी के बढ़ते संकट के कारण सभी के आंखों में पानी उतरने लगा है। पानी का सवाल अकेली दिल्ली या देश के किसी एक राज्य और उसकी राजधानी और उनके जिलों भर का मामला नहीं है, यह देश दुनिया में व्याप गया है। नमक से कहीं ज्यादा जरूरी इस प्राकृतिक साधन पर खतरे मंडरा रहे हैं। इस साधन को सहेजने, संवारने और बरतने वाले आम आदमी का हक इस पर से टूटता जा रहा है और इसे हड़पने वाली कंपनियां दिनोंदिन मालामाल होती जा रही हैं और ऐसे में केवल सरकार है, जिससे उम्मीद की जाती है तो वह भी इसका कारगर हल खोजने के बदले कहीं तमाशबीन तो कहीं शोषकों के खेल में भागीदार बन कर लोगों के संकट को बढ़ा रही है। इन सभी कारणों से आम आदमी का भरोसा टूटा है और उनके आंदोलन शुरू हो गए हैं। इसी के साथ पानी से जुड़े सभी पुराने सरोकार और इस पर आधारित संस्कृति का ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हो गया है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी और कभी होगी तो उसमें काफी समय लग जाएगा।
समझें प्रकृति के ताप करें बेहतर कर्म
Posted on 19 May, 2013 03:16 PM विचार करने की बात है कि जब अपने प्रकृति को ही नहीं समझ पाते हैं
मानव द्वारा प्राकृतिक जल स्रोतों से छेड़छाड़ का परिणाम है कृत्रिम वर्षा जल संरक्षण
Posted on 18 May, 2013 11:55 AM

पानी के लगातार दोहन से भूगर्भ जल भंडार खाली होने के कगार पर है। यदि यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ियाँ हम से पानी

मुफ्त में करें वर्षा जल संचय
Posted on 15 May, 2013 02:33 PM आज पूरे विश्व में जल संकट अपना विराट रूप ले रहा है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इस संकट से बचने के लिए वर्षा जल का संचय करना चाहिए ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाए और हम पानी की संकट से ऊबर पाएं।

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जड़ें
Posted on 15 May, 2013 01:56 PM
जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झाँकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है। इसकी झांकी इतनी मोहक है कि इसका वजन ढोना भी हमें सरल लगने लगता है। बजाय इसे उतार फेंकने के, हम इसे और ज्यादा लाद लेते हैं अपने ऊपर।

आधुनिक दौर में, अपनी जड़ों से कट कर हमने जो विकास किया, उसके बुरे नतीजे तो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। स्थूल अर्थों में भी और सूक्ष्म अर्थों में भी। ढंका हुआ भूजल, खुला बहता नदियों, तालाबों का पानी और समुद्र तक बुरी तरह से गंदा हो चुका है। विशाल समुद्रों में हमारी नई सभ्यता ने इतना कचरा फेंका है कि अब अंतरिक्ष से टोह लेने वाले कैमरों ने अमेरिका के नक्शे बराबर प्लास्टिक के कचरे के एक बड़े ढेर के चित्र लिए हैं। लेकिन अभी इस स्थूल और सूक्ष्म संकेतों को यहीं छोड़ वापस उदारीकरण की तरफ लौटें।

कुछ शब्द ऐसे हैं कि वे हमारा पीछा ही नहीं छोड़ते। क्या-क्या नहीं किया हमने उन शब्दों से पीछा छुड़ाने के लिए। तब तो हम गुलाम थे। फिर भी हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की कोशिश के साथ ही अपने को दुनिया की चालू परिभाषा के हिसाब से आधुनिक बनाने का भी रास्ता पकड़ने के लिए परिश्रम शुरू कर दिया था। आजाद होने के बाद तो इस कोशिश में हमने पंख ही लगा दिए थे। हमने पंख खोले पर शायद आंखें मूंद लीं। हम उड़ चले तेजी से, पर हमने दिशा नहीं देखी।

अब एक लंबी उड़ान शायद पूरी हो चली है और हमें वे सब शब्द याद आने लगे हैं, जिनसे हम पीछा छुड़ा कर उड़ चले थे। अभी हम जमीन पर उतरे भी नहीं हैं लेकिन हम तड़पने लगे हैं, अपनी जड़ों को तलाशने।

यों जड़ें तलाशना, जड़ों की याद अनायास आना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इस प्रयास और याद से पहले हमें इससे मिलते-जुलते एक शब्द की तरफ भी कुछ ध्यान देना होगा। यह शब्द है- जड़ता। जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झांकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है।
Book cover Anupam Mishra
हे भगवान प्लास्टिक
Posted on 15 May, 2013 10:25 AM आज पूरी दुनिया, नई, पुरानी, पढ़ी-लिखी, अनपढ़ दुनिया भी इन्हीं प्लास्टिक की थैलियों को लेकर एक अंतहीन यात्रा पर निकल पड़ी है। छोटे-बड़े बाजार, देशी-विदेशी दुकानें हमारे हाथों में प्लास्टिक की थैली थमा देती हैं। हम इन थैलियों को लेकर घर आते हैं। कुछ घरों में ये आते ही कचरे में फेंक दी जाती हैं तो कुछ साधारण घरों में कुछ दिन लपेट कर संभाल कर रख दी जाती हैं, फिर किसी और दिन कचरे में डालने के लिए। इस तरह आज नहीं तो कल कचरे में फिका गई इन थैलियों को फिर हवा ले उड़ती है, एक और अंतहीन यात्रा पर। फिर यह हल्का कचरा जमीन पर उड़ते हुए, नदी नालों में पहुंच कर बहने लगता है। पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि हमारा देश प्लास्टिक के एक टाईम बम पर बैठा है। यह टिक-टिक कर रहा है, कब फट जाएगा, कहा नहीं जा सकता। हर दिन पूरा देश कोई 9000 टन कचरा फेंक रहा है! उसने इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया है कि जब देश के चार बड़े शहर- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता ही इस बारे में कुछ कदम नहीं उठा रहे तो और छोटे तथा मध्यम शहरों की नगरपालिकाओं से क्या उम्मीद की जाए? कोई नब्बे बरस पहले हमारी दुनिया में प्लास्टिक नाम की कोई चीज नहीं थी। आज शहर में, गांव में, आसपास, दूर-दूर जहां भी देखो प्लास्टिक ही प्लास्टिक अटा पड़ा है। गरीब, अमीर, अगड़ी-पिछड़ी पूरी दुनिया प्लास्टिकमय हो चुकी है। सचमुच यह तो अब कण-कण में व्याप्त है - शायद भगवान से भी ज्यादा! मुझे पहली बार जब यह बात समझ में आई तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं एक प्रयोग करके देखूं- क्या मैं अपना कोई एक दिन बिना प्लास्टिक छूए बिता सकूंगी। खूब सोच समझ कर मैंने यह संकल्प लिया था। दिन शुरू हुआ। नतीजा आपको क्या बताऊं, आपको तो पता चल ही गया होगा। मैं अपने उस दिन के कुछ ही क्षण बिता पाई थी कि प्लास्टिक ने मुझे छू लिया था!
मेघ बीजन
Posted on 12 May, 2013 01:00 PM मेघ बीजन का उपयोग केवल वर्षा कराने के लिए ही नहीं किया जाता है, ब
पृथ्वी पर प्रकृति का अनमोल उपहार जल
Posted on 05 May, 2013 12:04 PM

आज पूरा संसार जल संकट के दौर में आ गया हैं। आज पानी का संरक्षण कम और दोहन अधिक मात्रा में हो रहा है। वास्तविकता

फुकुशिमा से आँख चुराता भारत
Posted on 04 May, 2013 03:35 PM फुकुशिमा की दूसरी बरसी पर दुनियाभर में परमाणु उर्जा के सुरक्षित स्वरूप को लेकर बहस चली। इस बीच संयंत्
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