महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून लागू होने की छठी सालगिरह के मौके पर मनरेगा मजदूरों के एक विशाल सम्मेलन में मैंने एक कार्यकर्ता होने के नाते कहा था कि अब मनरेगा को पोलियो मुक्त अर्थात् भ्रष्टाचार मुक्त हो जाना चाहिए। क्योंकि इसमें एक अधिनियम के तहत योजनाएं संचालित होती हैं और कानून की नजरों में कोई भी कमजोर अथवा शक्तिशाली नहीं होता है। इस वर्ष दो फरवरी 2013 को दिल्ली में संपन्न राष्ट्रीय सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी सार्वजनिक रूप से स्वीकारा कि मनरेगा में भ्रष्टाचार है।
सर्वप्रथम रोजगार सेवक समुचित सूचनाओं के साथ मजदूरों से आवेदन पत्र प्राप्त करेंगे। जो मजदूर लिखने में असर्मथ हैं, उनके द्वारा उपलब्ध कराये गये मौखिक सूचनाओं को भी रोजगार सेवक लिपिबद्ध करेंगे। तत्पश्चारत सभी आवेदनों को निर्धारित प्रपत्र में ग्रामवार सारांश तैयार करेंगे।
ज्योंही सारांश तैयार हो जाता है रोजगार सेवक को चाहिए कि पहले तो उन सभी मजदूरों को अपने-अपने गांव में ही रोजगार आवंटित करें। यदि ऐसा संभव नहीं है तो निकटतम कार्यस्थल पर मजदूरों को काम आवंटित करें। कार्य आवेदन प्राप्ति तिथि से कार्य आवंटन की तिथि के बीच कम से कम 6-7 दिनों का अंतर रखें जिससे कि विभिन्न तकनीकी समस्याओं के बावजूद भी मजदूरों द्वारा कार्य करने की तिथि तक ई मस्टर रॉल सृजित कर दिया जा सके।
रोजगार सेवक द्वारा निर्धारित प्रपत्र में तैयार किया गया सारांश एवं मजदूरों को किये गये कार्य आवंटन संबंधी विवरणी एक पंजी में संधारित करते हुए संबंधित कम्प्यूटर ऑपरेटर को हस्तगत किया जाएगा। जिसपर कम्प्यूटर ऑपरेटर तिथि सहित प्राप्ति पर हस्ताक्षर करेगा और ऑनलाइन ई-मस्टर रॉल में मांगी गयी सूचनाओं को दर्ज करेगा।
ज्यों ही कम्प्यूटर ऑपरेटर द्वारा ई-मस्टर रोल में सूचनाएं दर्ज कर दी जाती है, तत्काल उसका प्रिंट आउट निकाल लिया जाना आवश्यक।
मनरेगा में भ्रष्टाचार को इस तरह सार्वजनिक रूप से स्वीकारते हुए भी यदि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों कर्मचारियों को मिले कानूनी सजा की बात की जाए तो मामले इतने भयावह नहीं लगते जितना कि सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार को स्वीकारा गया है। झारखंड राज्य में तापस सोरेन आत्महत्या प्रकरण, कामेश्विर यादव एवं नियामत अंसारी हत्याकांड, जग्गू भुइयां आत्महत्या प्रकरण जैसे कुछेक मामले हैं, जिन पर व्यापक जनदबाव के कारण स्थानीय जिला प्रशासन को पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर संबंधित दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज कराना पड़ा है। वहीं आये दिन सैकड़ों ऐसे मामले उजागर होते रहे हैं, जिसमें उपायुक्त स्तर तक के अधिकारियों पर मनरेगा मद की राशि के दुरुपयोग के मामले साबित हुए हैं, परंतु किसी वरिष्ठ अधिकारी ने उनके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करने एवं गबन की गयी राशि की वसूली करने का साहस नहीं दिखाया। बहुत दबाव हुआ तो ऐसे अधिकारियों पर सिर्फ कारणपृच्छा का आदेश निर्गत कर इतिश्री कर ली गयी। सरकारी विभागों में स्पष्टीकरण एक ऐसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिससे कि किसी-किसी अधिकारी-कर्मचारी पर रोज दिन वार किया जाता है और दोषी अधिकारी भी धड़ल्ले से उसका जबाव उसी अंदाज में रोजाना देते रहता है।
वर्तमान समय में पलामू जिले के संदर्भ में मनरेगा पूर्णत: विफल है यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है। यहां बगैर आधारभूत संरचना के ई-मस्टर रॉल प्रणाली प्रारंभ की जा रही है। उदाहरण स्वरूप सभी प्रखण्ड मुख्यालयों में आवश्यकतानुरूप कम्प्यूटर ऑपरेटर बहाल नहीं हैं। नेटवर्क की समस्या तथा आज भी उन सभी मजदूरों के खाते नहीं खुले हैं, जो वास्तव में मनरेगा मजदूर हैं।
ग्राम स्तर पर निबंधित जॉब कार्डधारी की संख्या के हिसाब से योजनाओं की प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति नहीं दी जाती है। महिलाओं को काम मांगने पर पांच किमी की सीमा रेखा को आधार बनाकर जंगल पहाड़ के उस पार कार्य आवंटित किया जाता है। इस कारण वे काम पर भी नहीं जाते। मजदूरों की शिकायतों के निवारण के संबंध में कोई कारगर प्रशासनिक व्यवस्था नहीं की गयी है। इसके कारण सभी योजनाओं में और सभी मनरेगा मजदूरों को मनरेगा के किसी न किसी बिंदु पर शिकायतें रही हैं। परंतु किसी भी स्तर पर शिकायतें दर्ज नहीं की जा रही हैं। क्योंकि शिकायतें दूर होंगी। इसकी दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं है।
मनरेगा के क्षेत्र में जो अनियमितताएं बरती जा रही हैं वो मोटे तौर पर इस प्रकार हैं। मनरेगा मजदूरों में काम मांग करने की प्रवृति नहीं है। एक मजदूर को एक ही समय में 2-3 कार्यस्थलों पर कार्य करने का मस्टर रॉल तैयार किया जाता है। कार्यस्थल पर बिना जॉब कार्डधारी मजदूरों को भी काम पर लगा दिया जाता है। मस्टर रोल में फर्जी मजदूरों के नाम दर्ज कर राशि की निकासी कर ली जाती है। मस्टर रोलों पर कार्यावधि खाली रखी जाती है और भुगतान की स्थिति निश्चिरत होने पर तारीख अंकित की जाती है, जिससे कि देरी भुगतान मामले से कर्मचारीगण स्वयं को बचा सकें। 100 दिन कार्य पूर्ण करने वाले मजदूरों का ध्यान नहीं रख पाते हैं। रोजगार सेवक पंचायतों में उपस्थित नहीं रहते। कम्प्यूटर ऑपरेटर एमआइएस करने में टालमटोल करते हैं। मस्टर में 100 मजदूरों के नामों की प्रविष्टि होती है लेकिन पेमेंट एडवाइस में सिर्फ 73 मजदूरों के नाम दर्ज मजदूरी भुगतान की जाती है। अंकेक्षण के दौरान अंकेक्षण समितियों को आवश्यक दस्तावेज नहीं उपलब्ध कराये जाते हैं। काम मांग करने वाले मजदूर स्वयं के बदले किसी अन्य को कार्य स्थल पर भेज देते हैं।
ये समस्याएं सिर्फ झारखंड में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी हैं। इन्हीं समस्याओं को तकनीकी माध्यमों से दूर करने की कोशिश ई-मस्टर रोल प्रणाली है। इस प्रणाली को अक्तूबर 2012 से हर जिले की 2-2 पंचायतों में पायलट के तौर पर शुरू किया गया। जल्द ही यह हर जगह लागू होगा
यह एक इलेक्ट्रॉनिक सृजित मस्टर रोल है, जिस पर मनरेगा मजदूरों के द्वारा काम मांग किये जाने के बाद ही मनरेगा सॉफ्टवेयर में ऑनलाइन मजदूर का नाम, पिता/पति का नाम, जॉब कार्ड आइडी संख्या, काम मांगने की तिथि आदि विस्तरित विवरणी दर्ज करने के उपरान्त प्रिंटेड प्रति निकलेगी। कम्प्यूटर द्वारा सृजित ऐसे सभी मस्टर रोलों पर स्वत: एक यूनिक संख्या दर्ज हो जाएगी। वह सृजित मस्टर रोल सिर्फ किसी खास योजना एवं खास अवधि विशेष के लिए होगी।
ई-मस्टर रोल से यह सुनिश्चित होगा कि मजदूर निबंधित बैंक/पोस्ट ऑफिस का खाताधारी है। एक मजदूर का नाम किसी भी परिस्थिति में दोहराया अथवा हस्तलिखित नहीं होगा और न ही काम मांग करने वाले मजदूर का नाम काटकर किसी अन्य मजदूर का नाम चढ़ाया जा सकेगा। फर्जी मजदूरों के नामों की प्रवृष्टि नहीं की जा सकेगी। एक ही मजदूर को 2-3 कार्यस्थलों पर एक ही कार्यावधि में आवंटित नहीं किया जा सकेगा। वैसे भी परिवारों का आसानी से अनुश्रण किया जा सकेगा जो एक वित्तीय वर्ष में 100 कार्य दिवस पूरा करने वाले हैं अथवा कर चुके हैं। ई-मस्टर रोल से भौतिक खर्च एवं एमआइएस में दर्ज प्रवृष्टि में होने वाला अंतर स्वत: समाप्त हो जाएगा। मापी पुस्तिका को भी ई-मस्टर रोल से लिंक कर दिया गया है अर्थात जितनी राशि का कार्य दिवस सृजित होगा उसकी मापी स्वत: कम्प्यूटरीकृत मापी पुस्तिका में दर्ज हो जाएगी। किसी भी परिस्थिति में पुरानी तारीख में चेक नहीं काटा जा सकेगा।
ई-मस्टर रोल के विभिन्न चरण
कार्य मांग आवेदन
सर्वप्रथम रोजगार सेवक समुचित सूचनाओं के साथ मजदूरों से आवेदन पत्र प्राप्त करेंगे। जो मजदूर लिखने में असर्मथ हैं, उनके द्वारा उपलब्ध कराये गये मौखिक सूचनाओं को भी रोजगार सेवक लिपिबद्ध करेंगे। तत्पश्चारत सभी आवेदनों को निर्धारित प्रपत्र में ग्रामवार सारांश तैयार करेंगे।
मजदूरों को कार्य का आवंटन
ज्योंही सारांश तैयार हो जाता है रोजगार सेवक को चाहिए कि पहले तो उन सभी मजदूरों को अपने-अपने गांव में ही रोजगार आवंटित करें। यदि ऐसा संभव नहीं है तो निकटतम कार्यस्थल पर मजदूरों को काम आवंटित करें। कार्य आवेदन प्राप्ति तिथि से कार्य आवंटन की तिथि के बीच कम से कम 6-7 दिनों का अंतर रखें जिससे कि विभिन्न तकनीकी समस्याओं के बावजूद भी मजदूरों द्वारा कार्य करने की तिथि तक ई मस्टर रॉल सृजित कर दिया जा सके।
ई-मस्टर रोल का सृजन
रोजगार सेवक द्वारा निर्धारित प्रपत्र में तैयार किया गया सारांश एवं मजदूरों को किये गये कार्य आवंटन संबंधी विवरणी एक पंजी में संधारित करते हुए संबंधित कम्प्यूटर ऑपरेटर को हस्तगत किया जाएगा। जिसपर कम्प्यूटर ऑपरेटर तिथि सहित प्राप्ति पर हस्ताक्षर करेगा और ऑनलाइन ई-मस्टर रॉल में मांगी गयी सूचनाओं को दर्ज करेगा।
प्रिंट ई-मस्टर रोल
ज्यों ही कम्प्यूटर ऑपरेटर द्वारा ई-मस्टर रोल में सूचनाएं दर्ज कर दी जाती है, तत्काल उसका प्रिंट आउट निकाल लिया जाना आवश्यक।
मनरेगा में भ्रष्टाचार को इस तरह सार्वजनिक रूप से स्वीकारते हुए भी यदि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों कर्मचारियों को मिले कानूनी सजा की बात की जाए तो मामले इतने भयावह नहीं लगते जितना कि सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार को स्वीकारा गया है। झारखंड राज्य में तापस सोरेन आत्महत्या प्रकरण, कामेश्विर यादव एवं नियामत अंसारी हत्याकांड, जग्गू भुइयां आत्महत्या प्रकरण जैसे कुछेक मामले हैं, जिन पर व्यापक जनदबाव के कारण स्थानीय जिला प्रशासन को पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर संबंधित दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज कराना पड़ा है। वहीं आये दिन सैकड़ों ऐसे मामले उजागर होते रहे हैं, जिसमें उपायुक्त स्तर तक के अधिकारियों पर मनरेगा मद की राशि के दुरुपयोग के मामले साबित हुए हैं, परंतु किसी वरिष्ठ अधिकारी ने उनके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करने एवं गबन की गयी राशि की वसूली करने का साहस नहीं दिखाया। बहुत दबाव हुआ तो ऐसे अधिकारियों पर सिर्फ कारणपृच्छा का आदेश निर्गत कर इतिश्री कर ली गयी। सरकारी विभागों में स्पष्टीकरण एक ऐसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिससे कि किसी-किसी अधिकारी-कर्मचारी पर रोज दिन वार किया जाता है और दोषी अधिकारी भी धड़ल्ले से उसका जबाव उसी अंदाज में रोजाना देते रहता है।
वर्तमान समय में पलामू जिले के संदर्भ में मनरेगा पूर्णत: विफल है यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है। यहां बगैर आधारभूत संरचना के ई-मस्टर रॉल प्रणाली प्रारंभ की जा रही है। उदाहरण स्वरूप सभी प्रखण्ड मुख्यालयों में आवश्यकतानुरूप कम्प्यूटर ऑपरेटर बहाल नहीं हैं। नेटवर्क की समस्या तथा आज भी उन सभी मजदूरों के खाते नहीं खुले हैं, जो वास्तव में मनरेगा मजदूर हैं।
ग्राम स्तर पर निबंधित जॉब कार्डधारी की संख्या के हिसाब से योजनाओं की प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति नहीं दी जाती है। महिलाओं को काम मांगने पर पांच किमी की सीमा रेखा को आधार बनाकर जंगल पहाड़ के उस पार कार्य आवंटित किया जाता है। इस कारण वे काम पर भी नहीं जाते। मजदूरों की शिकायतों के निवारण के संबंध में कोई कारगर प्रशासनिक व्यवस्था नहीं की गयी है। इसके कारण सभी योजनाओं में और सभी मनरेगा मजदूरों को मनरेगा के किसी न किसी बिंदु पर शिकायतें रही हैं। परंतु किसी भी स्तर पर शिकायतें दर्ज नहीं की जा रही हैं। क्योंकि शिकायतें दूर होंगी। इसकी दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं है।
मनरेगा के क्षेत्र में जो अनियमितताएं बरती जा रही हैं वो मोटे तौर पर इस प्रकार हैं। मनरेगा मजदूरों में काम मांग करने की प्रवृति नहीं है। एक मजदूर को एक ही समय में 2-3 कार्यस्थलों पर कार्य करने का मस्टर रॉल तैयार किया जाता है। कार्यस्थल पर बिना जॉब कार्डधारी मजदूरों को भी काम पर लगा दिया जाता है। मस्टर रोल में फर्जी मजदूरों के नाम दर्ज कर राशि की निकासी कर ली जाती है। मस्टर रोलों पर कार्यावधि खाली रखी जाती है और भुगतान की स्थिति निश्चिरत होने पर तारीख अंकित की जाती है, जिससे कि देरी भुगतान मामले से कर्मचारीगण स्वयं को बचा सकें। 100 दिन कार्य पूर्ण करने वाले मजदूरों का ध्यान नहीं रख पाते हैं। रोजगार सेवक पंचायतों में उपस्थित नहीं रहते। कम्प्यूटर ऑपरेटर एमआइएस करने में टालमटोल करते हैं। मस्टर में 100 मजदूरों के नामों की प्रविष्टि होती है लेकिन पेमेंट एडवाइस में सिर्फ 73 मजदूरों के नाम दर्ज मजदूरी भुगतान की जाती है। अंकेक्षण के दौरान अंकेक्षण समितियों को आवश्यक दस्तावेज नहीं उपलब्ध कराये जाते हैं। काम मांग करने वाले मजदूर स्वयं के बदले किसी अन्य को कार्य स्थल पर भेज देते हैं।
ये समस्याएं सिर्फ झारखंड में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी हैं। इन्हीं समस्याओं को तकनीकी माध्यमों से दूर करने की कोशिश ई-मस्टर रोल प्रणाली है। इस प्रणाली को अक्तूबर 2012 से हर जिले की 2-2 पंचायतों में पायलट के तौर पर शुरू किया गया। जल्द ही यह हर जगह लागू होगा
क्या है ई-मस्टर रोल
यह एक इलेक्ट्रॉनिक सृजित मस्टर रोल है, जिस पर मनरेगा मजदूरों के द्वारा काम मांग किये जाने के बाद ही मनरेगा सॉफ्टवेयर में ऑनलाइन मजदूर का नाम, पिता/पति का नाम, जॉब कार्ड आइडी संख्या, काम मांगने की तिथि आदि विस्तरित विवरणी दर्ज करने के उपरान्त प्रिंटेड प्रति निकलेगी। कम्प्यूटर द्वारा सृजित ऐसे सभी मस्टर रोलों पर स्वत: एक यूनिक संख्या दर्ज हो जाएगी। वह सृजित मस्टर रोल सिर्फ किसी खास योजना एवं खास अवधि विशेष के लिए होगी।
ई-मस्टर रोल क्यों
ई-मस्टर रोल से यह सुनिश्चित होगा कि मजदूर निबंधित बैंक/पोस्ट ऑफिस का खाताधारी है। एक मजदूर का नाम किसी भी परिस्थिति में दोहराया अथवा हस्तलिखित नहीं होगा और न ही काम मांग करने वाले मजदूर का नाम काटकर किसी अन्य मजदूर का नाम चढ़ाया जा सकेगा। फर्जी मजदूरों के नामों की प्रवृष्टि नहीं की जा सकेगी। एक ही मजदूर को 2-3 कार्यस्थलों पर एक ही कार्यावधि में आवंटित नहीं किया जा सकेगा। वैसे भी परिवारों का आसानी से अनुश्रण किया जा सकेगा जो एक वित्तीय वर्ष में 100 कार्य दिवस पूरा करने वाले हैं अथवा कर चुके हैं। ई-मस्टर रोल से भौतिक खर्च एवं एमआइएस में दर्ज प्रवृष्टि में होने वाला अंतर स्वत: समाप्त हो जाएगा। मापी पुस्तिका को भी ई-मस्टर रोल से लिंक कर दिया गया है अर्थात जितनी राशि का कार्य दिवस सृजित होगा उसकी मापी स्वत: कम्प्यूटरीकृत मापी पुस्तिका में दर्ज हो जाएगी। किसी भी परिस्थिति में पुरानी तारीख में चेक नहीं काटा जा सकेगा।
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