Posted on 05 Oct, 2013 02:58 PMनदी के पास स्मृतियाँ हैं अनेकों, उनकी भी जो अब नहीं रहे। उनकी भी जो आए ते कभी उसके किनारे। किसी भी नदी के पास स्मृतियाँ हैं अनेकों।
दिलाती हैं याद मुझे देश की नदियों की नदी दूर देश में! कहाँ गया हूँ मैं सबके किनारे पर, गया हूँ जिनके किनारे वे सब आती हैं याद। दूर देश में।
Posted on 05 Oct, 2013 02:54 PMयहां से सबने लिखा है चिट्ठियों में जहाँ वे ठहरे हैं, उसके सामने नदी है। पेड़ हैं। हरियाली है। सबने लिखा है। मैंने भी लिखा है- घर पर, दोस्तों को- ‘यहाँ नदी है’
लिखकर खुश हुआ हूँ कि नदी है। देखों अगर पास से बहती है मंद-मंद। देखो अगर ऊपर से ठहरा हुआ पानी है। शांत नदी हलचल मचाती है मन में।
Posted on 05 Oct, 2013 02:45 PMउसने कपड़े उतारे और उतर गई जल में खलबली मच गई पल में! मल-मल नहाने लगी वह हलचल हुई लहरें उठीं किनारों को छुआ जैसे कुछ हुआ किनारे हँसने लगे।
Posted on 04 Oct, 2013 04:12 PMनदी अगर थी तो कहाँ थी? कब थी? पेड़ों को कैंया लिए भागती नदी मन ही मन आवाज दी नदी को कि होगी तो बोलेगी हथेली से मूँद दिया सारे शब्दों को कि निस्तब्धता में सुनाई दे नदी के होने का शब्द।
Posted on 04 Oct, 2013 04:11 PMनदी के स्रोत पर मछलियाँ नहीं होतीं शंख-सीपी मूँगा-मोती कुछ नहीं होता नदी के स्रोत पर गंध तक नहीं होती सिर्फ होती है एक ताकत खींचती हुई नीचे जो शिलाओं पर छलाँगें लगाने पर विवश करती है।
सब कुछ देती है यात्रा लेकिन जो देते हैं धूप-दीप और