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रीसाइकिल कर बनें पर्यावरण फ्रेंडली
Posted on 16 Oct, 2013 11:39 AM साल 2010 में पूरे अमेरिका से 250 मिलियन टन कूड़ा निकलता था, हो सकता है, ये आंकड़े आपको ज्यादा न लग रहे हो, लेकिन अगर इसे दूसरे नज़रिए से देखें तो पूरे अमेरिका में हर व्यक्ति करीब 2 किलो कूड़ा निकालता है जिसमें से 0.6849245 किलो कूड़ा रीसाइकिल करने वाला होता है। अमेरिका में हर साल निकलने वाले इतने कूड़े से कई बड़े पार्क बनाए जा सकते हैं। हममें से कई लोगों क शायद इस बारे में न पता हो कि हमारे घर में
बदलता मौसम - रंग-बिरंगा
Posted on 15 Oct, 2013 04:18 PM बरसात के बाद गर्मी कम हो जाती है, रात में तापमान कम होने लगता है।
सागर का जलवायु पर प्रभाव
Posted on 15 Oct, 2013 03:42 PM पानी के इन गुणों के फलस्वरूप जल और थल समीरों का जन्म होता है तथा तट
कृत्रिम वर्षा के उपाय तथा संभावनाएँ
Posted on 15 Oct, 2013 03:34 PM मौसम वैज्ञानिक, वर्षा करने के लिए इस विधि की क्षमता का अभी वैज्ञानिक दृष्टि से अनुसंधान ही नहीं कर पाए थे कि उससे बहुत पहले ही सरल
इससे क्या
Posted on 15 Oct, 2013 01:40 PM हूँ तो पत्थर ही
नहीं पर वह
तराशा जिसे नदी ने कुछ दिन
और फिर तट पर फेंक दिया।

उसी के पाट में तो हूँ
अभी तक-
इससे क्या यदि
तन्वंगी इस नदी का जल
आज मुझ तक नहीं भी पहुँचे?

जुलाई, 1992

वहां नहीं है नदी
Posted on 15 Oct, 2013 01:39 PM वहां नहीं है नदी
लिया है बदल अपना रास्ता उसने।
घाट है सिर्फ, पुराना
सीढ़ियाँ जिसकी मिट्टी में दबी हैं
पर बजिद है वह
यही है तीर्थ उसका।
जहाँ चाहे नदी बहती रहे
वह तरा था यहीं
चाहे डुबकी-भर ही सही।

इसी जिदमें एक सूखा पाट
खोदे जा रहा है वह।

दिसंबर, 1989

नदी
Posted on 15 Oct, 2013 01:38 PM (1)
नदी ने जो सहा
नदी जानती है
उसके दो किनारे हैं
उनका शासन भी
वह मानती है
जहाँ भी वह जाती है
उन्हें अपने साथ पाती है
(2)
नदी तो बहती है, बहेगी
वह थिर क्यों रहेगी

(3)
नदी को समुद्र से
जा मिलने की इच्छा है
तीव्र इच्छा

लेकिन समुद्र
उसे,केवल उसे, चाहता है
बाढ़ में
Posted on 15 Oct, 2013 01:37 PM बाढ़ में बहते जाते हैं पुरखों के संदूक सारा माल-मता
औजार
हमारे मामूली रोजगार के
कागज-पत्तर जिनमें थे
हारों के दुखों के हाल
जिन्हें कोई दर्ज नहीं करता
कला कर्म की भाषा के धंधे और इतिहास
जिनसे बेखबर रहते हैं
हर कहीं गाफिल एक से

पानी में दिखता है कभी तेज बहाव में
छटपटाता हुआ कोई
बेमानी मगर उसकी छटपटाहट बिलकुल निरुपाय
पनघट पर भगीरथ
Posted on 15 Oct, 2013 01:35 PM (1)
आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
पवित्र पानी खाता है पछाड़
कटता है पहाड़ बनता है रास्ता

वेग, गति और प्रवाह से गंगा बन गई नदी
नदी की देह में मटमैला गाद
बनते जाते हैं फैलते जाते हैं दोआब
नदी के मुंह पर झाग ही झाग

आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
तल मल बहता है जैसे पुरखों के शव

पानी के पहिए पर पाँव और बीच भँवर घोड़े
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