घाट पर

दोनों प्रसन्नता की खोज में
ले आए ढेर सारे मैले कपड़े

यह क्या कम बड़ी बात है
उन्हें नहीं खोजना पड़ता पानी
वे सिर्फ उसके पास पहुँचते हैं
और फैला देते हैं अपनी थकान

पानी का स्पर्श शीतल होता है
खड़े होकर लगता है
लिपटे हैं दो तन शून्य में
और शून्य अपने ममत्व से
भर रहा संगीत जिनमें

लेकिन पानी तो रोटियाँ पाने का एक जरिया है
बहुत कठिन है जिसकी गहरी डूबती यात्रा
बहुत कठिन है निचोड़ना जिसमें मैल
इस शहर का
धोने पाप पोंछने दाग
बहुत कठिन है नंगे को सजाना स्वच्छता से

अभी भी बहुत-सा मैल वंचित रह गया
पानी के स्पर्श से
वे दोनों घर लौटते हुए सोचते हैं
शायद मिलेगा वह
जो इस बार लाने से रह गया।

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