ऋतुराज
ऋतुराज
घाट पर
Posted on 04 Oct, 2013 04:16 PMदोनों प्रसन्नता की खोज मेंले आए ढेर सारे मैले कपड़े
यह क्या कम बड़ी बात है
उन्हें नहीं खोजना पड़ता पानी
वे सिर्फ उसके पास पहुँचते हैं
और फैला देते हैं अपनी थकान
पानी का स्पर्श शीतल होता है
खड़े होकर लगता है
लिपटे हैं दो तन शून्य में
और शून्य अपने ममत्व से
भर रहा संगीत जिनमें
लेकिन पानी तो रोटियाँ पाने का एक जरिया है