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मानव फांस में उलझी यमुना
Posted on 27 Oct, 2014 09:20 AM दिल्ली का मीडिया और केंद्र सरकार यमुना सफाई पर फतवे जारी करते रहते हैं, लेकिन नजफगढ़ नाले से लेकर 16 बड़े नालों ने दिल्ली में यमुना का जो हाल कर रखा है वह यमुना के मानव फांस का ही द्योतक है। शुक्र है आज कृष्ण नहीं हुए वरना वे कालिंदी के उद्धार के लिए दिल्ली को ही नाथते। दिल्ली ही आज का वह ‘कालिया नाग’ है जिसने यमुना को विषैला कर रखा है। जरूरी है कि या तो वह अपनी आदत सुधार ले या यमुना को छोड़कर कहीं और चला जाए।यम द्वितीया के दिन जब यम फांस से मुक्ति के लिए मृत्यु लोक के वासी यमुना में डुबकी लगाकर अपने को तार रहे थे तो यमुना मानव फांस से मुक्ति के लिए छटपटा रही थी। कहते हैं कि यम द्वितीया के दिन मथुरा में स्नान का विशेष पुण्य होता है और इसीलिए भाई-बहन के इस पर्व को सफल बनाने के उद्देश्य से प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए थे। तीन हजार क्यूसेक पानी विशेष तौर पर छोड़ा गया था। अफसरों की मुस्तैदी से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलते रहे, सीवेज पंपिंग स्टेशन ओवर फ्लो नहीं हुए। लेकिन, न यमुना को ताजा पानी नसीब हुआ, न ही उसके भक्तों को। अगर आस्था के आगे मनुष्य ने आंख और नाक बंद करने की कला न सीखी होती तो उस पानी में डुबकी लगाना और अपना उद्धार करना मुश्किल था।

Yamuna
शौचालय में रेस्तरां
Posted on 26 Oct, 2014 04:45 PM

परित्यक्त शौचालय जैसे असाधारण स्थान वाजिब किराए के चलते पारंपरिक स्थानों से ज्यादा लोकप्रिय

Restaurant in toilet
टॉयलेट बंद, विज्ञापन से करोड़ों कमा रही कंपनियां
Posted on 26 Oct, 2014 03:20 PM प्रशासन की अनदेखी से जनसुविधा केंद्र बने विज्ञापन एजेंसियों के लिए कमाई के अड्डे
रोज का कचरा 1200 टन, ट्रीटमेंट सिर्फ 500 का
Posted on 26 Oct, 2014 03:14 PM ट्रेंचिंग ग्राउंड पर लग रहा 700 टन कचरे का ढेर
<strong>भारत में हर जगह कचरे का ढेर दिख जाता है</strong>
सफाई और मनोरंजन
Posted on 26 Oct, 2014 12:36 PM भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। उसी का अध्यक्ष पत्रकारों के सवालों के जवाब में यह कह रहा हो कि अभी यह समय मुख्यमंत्री कौन पर बात करने का नहीं, पटाखे जलाने का है। और हमने देखा कि लगभग सभी न्यूज चैनलों के स्क्रीन पटाखे के धुएँ से भर गए। आस्थावान समाज के लिए बेहतर है कि वह टेलीविजन की सारी सामग्री को अभियान का दूसरा संस्करण ही मानेस्वच्छता अभियान के तहत दीपिका पादुकोण, शाहरुख खान और अभिषेक बच्चन ने ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ के प्रस्तोता कपिल शर्मा की झाडू से सफाई की। फिल्म ‘हैप्पी न्यू इयर’ के प्रमोशन में आए इन सितारों ने पहले स्टूडियो के फर्स पर झाड़ू फिराई फिर एक-एक करके कपिल शर्मा के शरीर पर। जाहिर है, यह सब मनोरंजन के लिए किया गया। जो स्टूडियो में मौजूद दर्शक और खुद कपिल शर्मा लगातार हंसते रहे।

नरेंद्र मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ और ‘बिग बॉस’ जैसे आधा दर्जन टेलीविजन कार्यक्रमों में इसकी चर्चा किसी न किसी रूप में हुई। कुछ में तो सीधे-सीधे पूरी टीम को सफाई करते दिखाया गया, तो कुछ में संवादों के जरिए यह बताने की कोशिश की गई कि देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है।

स्वच्छ भारत पर संशय!
Posted on 26 Oct, 2014 10:24 AM

स्वच्छता अभियान के साथ-साथ निर्मित हों बुनियादी ढांचे

Swachh Bharat
समुंदर
Posted on 25 Oct, 2014 03:43 PM नीली मौजें
सारा दिन
नंगे साहिल के पांव को चूमती हैं
रेत के नन्हें-नन्हें घरौंदे तोड़ती हैं
साहिल की चमकीली रेत पे खिलती हैं
थोड़ी-थोड़ी देर के बाद
गले लगाकर साहिल को
भूरे समुंदर की अजमत के गुण गाती हैं

और समुंदर
मुट्ठी भरकर
अपना खजाना सब को लुटाता रहता है
मैं भी अपने बस्ता में
सीप, शंख, मोती लाया था
जब भी तेरी याद आती है
‘स्वच्छ भारत’ निर्माण को पुण्य कार्य के रूप में अपनाने की जरूरत
Posted on 25 Oct, 2014 10:41 AM

कहावत प्रसिद्ध है कि ‘प्रभु भक्ति के बाद दूसरा स्थान सफाई का है।’ इसी कारण सभी धार्मिक स्थलों में बहुत सफाई रखी जाती है। प्रभु भक्त यहां आकर प्रत्येक वस्तु को अपने हाथों से साफ करके खुद को बहुत भाग्यशाली समझते हैं। सिख पंथ में तो जब किसी से मर्यादा का उल्लंघन हो जाए तो उसे क्षमादान देने से पहले बर्तन व अन्य प्रकर की सफाई करने की ‘सजा’ लगाई ज

Sanitation
जलकुमारी
Posted on 24 Oct, 2014 03:41 PM शहर के घाट पर आकर लगी है एक नाव
मल्लाह की बिटिया आई है घूमने शहर

जी करता है जाकर खोलूं
उसकी नाव का फाटक
जो नहीं है
पृथ्वी के पूरे थल का द्वारपाल बनूं
अदब में झुकूं
गिरने-गिरने को हो आए पगड़ी मेरी
जो नहीं है
कहूं
पधारो, जलकुमारी
अपने चेहरे पर नदी और मुहावरे के पानी के साथ
इस सूखे शहर में

एक नदी से प्यार करते हुए
Posted on 24 Oct, 2014 03:32 PM सारी फसलें भादो के उस धान जैसी हैं
सिहर जाती हैं जो पानी के स्पर्श मात्र से

लेकिन अगहनी की दूध भरे शीशों की गमक
जिसकी उम्मीद नहीं की थी
फैल जाती है फेफड़ों में

दुलराता हूं इस गमक को
प्रेम में पुचकारता हूं
संध्या की गमकती हवा गाता हूं
जब दाह सन्नाटे से करता हूं गुफ्तगू

एक अगहनी सुबह
जहां से निकलती हैं जिंदगी की तमाम राहें
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