एक नदी से प्यार करते हुए

सारी फसलें भादो के उस धान जैसी हैं
सिहर जाती हैं जो पानी के स्पर्श मात्र से

लेकिन अगहनी की दूध भरे शीशों की गमक
जिसकी उम्मीद नहीं की थी
फैल जाती है फेफड़ों में

दुलराता हूं इस गमक को
प्रेम में पुचकारता हूं
संध्या की गमकती हवा गाता हूं
जब दाह सन्नाटे से करता हूं गुफ्तगू

एक अगहनी सुबह
जहां से निकलती हैं जिंदगी की तमाम राहें
जहां जन्म लेते हैं से संपूर्ण राग
सारे रंग रौशनी के सारे स्रोत

वहीं खड़े होकर मैंने दी थी
तुम्हें आवाज क मुझे चाहिए
असंख्य बांहों का आलिंगन
असंख्य चुंबनों का मर्म-स्पर्श

मैं एक स्वतंत्र नदी का निर्माण करूंगा
जिसकी धारा में मैं रहूंगा तुम रहोगे
और हमारे सह-मना की लंबी कतारें होंगी
कुछ हमारी धरोहरें होंगी कुछ हमारे सपने होंगे
मैं नदी हो जाऊंगा

Path Alias

/articles/eka-nadai-sae-payaara-karatae-haue

Post By: Hindi
×