चंदन सिंह

चंदन सिंह
जलकुमारी
Posted on 24 Oct, 2014 03:41 PM
शहर के घाट पर आकर लगी है एक नाव
मल्लाह की बिटिया आई है घूमने शहर

जी करता है जाकर खोलूं
उसकी नाव का फाटक
जो नहीं है
पृथ्वी के पूरे थल का द्वारपाल बनूं
अदब में झुकूं
गिरने-गिरने को हो आए पगड़ी मेरी
जो नहीं है
कहूं
पधारो, जलकुमारी
अपने चेहरे पर नदी और मुहावरे के पानी के साथ
इस सूखे शहर में

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