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'बनाजी' का गांव
Posted on 24 Nov, 2014 11:46 AM

तालाबों के नामकरण की परंपरा को सबसे पहले जीवित किया गया। तीनो तालाबों के गुण और स्वभाव को देखते हुए एक सादे और भव्य समारोह में इनका नामकरण किया गया। पहले तालाब का नाम रखा गया देवसागर, दूसरे का नाम फूलसागर और तीसरे का नाम अन्नसागर। पहले दो तालाबों से समाज के लिए पानी न लेने का नियम बनाया गया। फूलसागर के आस-पास अच्छे पेड़-पौधे जैसे- सफेद आकड़ा, बेलपत्र के पौधे और बगीची आदि लगाई गई। देवसागर की पाल पर छतरी, पनघट, पक्षियों के लिए चुगने का स्थान और धर्मशाला आदि स्थापित की गई।

सन 2004: जयपुर जिले के एक छोटे से गाँव लापोड़िया के लिये इस तारीख, इस सन का मतलब है 4 और 2 यानी 6 साल का अकाल। आस-पास के बहुत सारे गाँव इस लंबे अकाल में टूट चुके हैं, लेकिन लापोड़िया आज भी अपना सिर, माथा उठाए मज़बूती से खड़ा हुआ है। लापोड़िया का माथा घमंड के बदले विनम्र दिखता है। उसने 6 साल के अकाल से लड़ने के बदले उसके साथ जीने का तरीका खोजने का प्रयत्न किया है। इस लंबी यात्रा ने लापोड़िया गाँव को लापोड़िया की ज़मीन में छिपी जड़ों ने ऊपर के अकाल को भूलकर ज़मीन के भीतर छिपे पानी को पहचानने का मेहनती काम किया है। इस मेहनत ने आज 6 साल के अकाल के बाद भी लापोडि़या को अपने पसीने से सींच कर हरा-भरा बनाया है।

कोई भी अच्छा काम सूख चुके समाज में आशा की थोड़ी नमी बिखेरता है और फिर नई जड़ें जमती हैं, नई कोंपलें फूटती हैं। राजस्थान के ग्राम विकास नवयुवक मंडल, लापोड़िया के प्रयासों से गोचर को सुधारने का यह काम अब धीरे-धीरे आस-पास के गांवों में भी फैल चला है। गागरडू, डोरिया, सीतापुर, नगर, सहल सागर, महत्त गांव, गणेशपुरा आदि गांवों में आज चौका पद्धति से गोचर को सुधारने का काम बढ़ रहा है। इनमें से कोई पन्द्रह गांवों में यह काफी आगे जा सका है। लापोड़िया के इस सफल प्रयोग ने कुछ और बातों की तरफ भी ध्यान खींचा है।
gochar
धरती और उसके दुश्मन
Posted on 23 Nov, 2014 12:11 PM

आदिवासियों का वन से घनिष्ठ संबंध रहा है क्योंकि वे प्राय: जंगल के बीच अथवा आस-पास रहते हैं, विभ

पृथ्वी, प्रजा और पानी
Posted on 23 Nov, 2014 10:39 AM

धरती की ऊंची-नीची घाटियों में पानी सहज ही बह निकलता है। पानी बहता है तो उसके दो किनारे भी बन ज

‘पानी’ एक भविष्योन्मुखी फिल्म है: शेखर कपूर
Posted on 23 Nov, 2014 09:09 AM

गोवा का मेरियट होटल मांडवी नदी के किनारे है और यहां की लॉबी में खड़े होकर लगता है कि आप समुद्र के सामने हैं। एक विशाल जल-राशि के सामने अगर ‘पानी’ फिल्म बना रहे शेखर कपूर से बातचीत हो ये सुखद संयोग ही है। शेखर बहुत ही आत्मीय ढंग से बात करते हैं। होटल की लॉबी में मिलते ही कहते हैं अरे ‘मैं अपना मोबाइल अपनी कार में ही भूल गया। लेकर आता हूं’।

Shekhar Kapur
धरती को संवारने की श्रद्धा
Posted on 22 Nov, 2014 03:08 PM

आज से पच्चीस साल पहले बहुत-से ओरण जो उस समय के लोकप्रिय माने गये, 'बीस सूत्री कार्यक्रम'

ताप की दवा
Posted on 22 Nov, 2014 02:18 PM

हमारा वैदिक काल पर्यावरण के गूढ़ रहस्यों को ही समझने का हरियाला काल था। पृथ्वी को माता, आकाश को

इशारे को समझे समाज
Posted on 22 Nov, 2014 11:54 AM

बड़े बांध और बड़ी परियोजनाओं के नाम पर हमेशा से शहर और गांव से लाखों की आबादी का विस्थापन होता

अन्ना हजारे का ग्राम विकास मॉडल और झारखंड में जलछाजन
Posted on 22 Nov, 2014 11:11 AM अन्ना हजारे आज ग्राम विकास के आदर्श पुरूष है। देश के समाजसेवियों एवं प्रत्येक नौजवान के लिए के लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं, जो ग्राम विकास हेतु उन्मुख है एवं अपने गांव का विकास चाहते है। अन्ना हजारे जी का जीवन समाज सेवा में समर्पित है। एक जवानी में देश के सीमा पर अपनी सेवा देने के बाद अपने गांव रालेगण सिद्धि में उन्होंने विकास की जो धारा प्रवाहित की है। वह संपूर्ण देशवासियों के लिए अनुकरणीय है।
प्रकृति संपदा
Posted on 21 Nov, 2014 01:05 PM

यह माना जा सकता है कि भूख, गरीबी और बेहाली की हालत में पर्यावरण और परिवेशिकी की बात किसी के हृ

जल सुरक्षा की भारतीय चुनौतियां
Posted on 21 Nov, 2014 12:56 PM

सुरक्षित जल हेतु जल सुरक्षा और जल सुरक्षा हेतु जल स्रोतों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। दुर्योग से भारत में जल स्रोत, उनमें मौजूद जल की मात्रा और गुणवत्ता... तीनों की सुरक्षा पर खतरे का परिदृश्य स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। जल प्रबंधन की जो खामियां हैं, सो अलग। चुनौतियां कई हैं:

1. स्थानीय जल स्रोत का रकबा, योजना और जल सुरक्षा कानूनों के संबंध में जन जागृति का अभाव;

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