शुभू पटवा

शुभू पटवा
अनुपम मिश्र - कहाँ गया उसे ढूँढो
Posted on 15 Dec, 2017 12:49 PM

मुझे एक गीत की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं

कहाँ गया उसे ढूँढो../
सुलगती धूप में छाँव के जैसा/
रेगिस्तान में गाँव के जैसा/
मन के घाव पर मरहम जैसा था वो/
कहाँ गया उसे ढूँढो...


पर वह तो अदृश्य में खो गया है। एक ऐसे अदृश्य में, जहाँ रोशनी नहीं पहुँचती। जब तक था, सबको रोशनी दी। सबको रोशन किया।
अनुपम मिश्र
पर्यावरण से ही जीवन है
Posted on 02 Jul, 2015 10:19 AM
वर्तमान परिस्थिति में हमें ‘विकास’ का अपना ऐसा मॉडल अपनाना होगा, जो
प्रकृति संपदा
Posted on 21 Nov, 2014 01:05 PM

यह माना जा सकता है कि भूख, गरीबी और बेहाली की हालत में पर्यावरण और परिवेशिकी की बात किसी के हृ

मरुस्थल में पानी की कहानी
Posted on 23 Sep, 2013 04:41 PM
जल संचय की आधुनिक तकनीक अपनाने के बावजूद राजस्थान के थार मरुस्थल में पानी का संकट बरकरार है। जल संरक्षण की परंपरागत प्रणालियों की उपेक्षा की वजह से स्थिति और नाज़ुक होती जा रही है। इस कठिनाई से निजात पाने का सही तरीका क्या हो सकता है? बता रहे हैं शूभू पटवा।

थार मरुस्थल में पानी के प्रति समाज का रिश्ता बड़ा ही आस्था भरा रहा है। पानी को श्रद्धा और पवित्रता के भाव से देखा जाता रहा है। इसीलिए पानी का उपयोग विलासिता के रूप में न होकर, जरूरत को पूरा करने के लिए ही होता रहा है। पानी को अमूल्य माना जाता रहा है। इसका कोई ‘मोल’ यहां कभी नहीं रहा। थार में यह परंपरा रही है कि यहां ‘दूध’ बेचना और ‘पूत’ बेचना एक ही बात मानी जाती है। इसी प्रकार पानी को ‘आबरू’ भी माना जाता है। बरसात के पानी को संचित करने के सैकड़ों वर्षों के परंपरागत तरीकों पर फिर से सोचा जाने लगा है। राजस्थान का थार मरुस्थलीय क्षेत्र में सदियों से जीवन रहा है। यहां औसतन 380 मिलीमीटर बारिश होती है। इस क्षेत्र में जैव विविधता भी अपार रही है। जहां राष्ट्रीय औसत बारह सौ मिलीमीटर माना गया है, वहीं राजस्थान में बारिश का यह औसत करीब 531 मिलीमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान समूचे देश में सबसे बड़ा राज्य है और इसका दो-तिहाई हिस्सा थार मरुस्थल का है। इसी थार मरुस्थल में जल संरक्षण की परंपरागत संरचनाएं काफी समृद्धशाली रही हैं। जब तक इनको समाज का संरक्षण मिलता रहा, तब तक इन संरचनाओं का बिगाड़ा न के बराबर हुआ और ज्यों-ज्यों शासन की दखलदारी बढ़ी, त्यों-त्यों समाज ने हाथ खींचना शुरू कर दिया और इस तरह वे संरचनाएं जो एक समय जीवन का आधार थीं, समाज की विमुखता के साथ ये ढांचें भी ध्वस्त होते गए या बेकार मान लिए गए।
सांसत में धरती
Posted on 21 Apr, 2013 03:52 PM
इस धरती की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा सड़कों, खदानों और बढ़ते शहरीकरण की भेंट चढ़- गया है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और हम भयानक बीमारियों की गिरफ़्त में होंगे। दुनिया की आधी से अधिक नदियां प्रदूषित होंगी और इनका जल स्तर घट जाएगा। सदा नीरा यमुना और गंगा के हालात हमारे सामने हैं। संताप हरती इनकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनने को कान आतुर-व्याकुल ही रह रहे हैं। भारतीय परंपरा और विश्वास कहता है कि मां की सेवा करने वाला सत्पुरुष कहलाता है। वह दीर्घायु, यश, कीर्ति, बल, पुण्य, सुख, लक्ष्मी और धनधान्य को प्राप्त करता है। यदि कोई मानता हो तो, यह भी कहा गया है कि ऐसा पुरुष स्वर्ग का अधिकारी भी हो सकता है। अब स्वर्ग किसने देखा है और अगर किसी ने देखा है तो आकर कब बताया है कि स्वर्ग कैसा होता है? पर, अगर कोई सत्पुरुष है, तो क्या यही कम है? सत्पुरुष होने के साथ जो बातें जुड़ी हैं और जिनका जिक्र हमने किया है क्या वहीं स्वर्गिक नहीं है? यही स्वर्ग है। स्वर्ग या नरक - सब इस धरती पर है। संपूर्ण प्राणी जगत इसी धरती के अंग है। इसी में सब समाए हुए हैं। हम कह सकते हैं कि यही धरती सब को अपने में समाए हुए हैं, सहेजे हुए हैं। इसीलिए धरित्री है। सबको अपने में धारण किए हैं। यही धरती का धर्म है।

यह धरती तो अपना धर्म निभा रही है, पर जिस धरती को हम मां कहते हैं, क्या हम मनुष्य भी अपना धर्म निभा रहे हैं? इसी धरती में रत्नगर्भा खनिज संपदा है।
सन्नाटा है, इन सवालों पर
Posted on 07 Aug, 2012 12:59 PM

भारत भी पहले से चल रहे कलपक्कम ऊर्जा केंद्र से लेकर बंगाल के हरिपुर, आंध्र के कोवाडा, गुजरात के मीठीविडी और महार

पर्यावरण संकट और भारतीय चित्त
Posted on 05 Jun, 2012 04:38 PM
जैन समाज में लंबी तपस्याएं (निराहार) करने की परंपरा रही है। ‘उणोदरी-तप’ को एक श्रेष्ठ तप माना जाता है इसमें अपेक्षा या आवश्यकता से एक चौथाई कम खाने की परंपरा है। जीवन में खाद्य वस्तुओं का सेवन कम करने, वस्त्रों का सेवन कम करने और भौतिक संसाधनों का सेवन कम करने उणोदरी-तप की मुख्य साधना है। भारतीय चित्त और मानस प्रकृति के साथ सामंजस्य से चलता है बता रहे हैं शुभू पटवा।
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