गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’

गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’
कहा नदी ने मेघ से
Posted on 24 Aug, 2015 03:57 PM
नहीं आचमन योग्य जल, नदियाँ हुई अस्वस्थ
जीव- जन्तु हैं त्रस्त अब, मृत्यु सोच निकटस्थ

कहा नदी ने मेघ से, बरसो प्रियतम झूम
प्यास मिटा दो अमृता, मैं लूंगी मुंह चूम

गाते मेघ मल्हार हैं, मेरे दोनों कूल
अब आओ भुजबन्ध में, प्रकृति हुई अनुकूल

चरण पखारूंगी विमल, बरसो हे! घनश्याम
शुष्क दृगों को तृप्ति दो, रसमय रूप ललाम
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