माँ नर्मदा

अमरकंटक की सुता तुम, शाँत कभी विकराल।
विध्वंशक पावस ऋतु, ग्रीष्म करे हड़ताल।।

सलिलापुण्य प्रदायनी, घाट-घाट नव नीर,
बिदा ले रही तटों से , है बिछुडन की पीर।

गर्मी में जलधार का, मध्यम हुआ प्रवाह,
घाट-घाट देता रहा, अपने जल की थाह।

आड़ी-तिरछी चाल भी, खोती नहीं विवेक,
बालूकण करते रहे, माता का अभिषेक।

तट-तट मंदिर घाट है, विस्तृत तीरथ धाम,
भक्ति भोलेनाथ की, कहीं कृष्ण वा राम।

शुद्ध भाव मन शुद्धि से, जन जन करे प्रणाम।
पौराणिक गाथाओं में, श्रेष्ठ आपका नाम।

जबलपुर बड़ भाग्य है, भेड़ाघाट महान,
छटा दूधिया ने किया, आँखों का सम्मान।

रेव-शिप्रा का मिलन, शासन की है नीत
देना शिप्रा को सदा, एक बहिन सी प्रीत।

भारत की तकदीर तुम, ऋषि कुल की आराध्य
सुख सुविधा साधन तुम्हीं, तुम्हीं रही हो साध्य।

अंतरिक्ष को देखते, हैं धरती के लोग
प्यासे खेतों को मिले, कब वर्षा के योग।

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Post By: RuralWater
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