मैं पेड़ ही बनूँगा

यदि बन सका सहारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।
शिवमय स्वरूप प्यारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

हिन्दू, इसाई, मुस्लिम, जिन बौद्ध,पारसी, सिख,।
हर धर्म का दुलारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

भूखे-तृषित पथिक का, बेघर उदास यति का,
लेकर आशीष सारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

पशु, भूत, प्रेत, बिच्छू, कृमि, बर्र, साँप, शिव के-
सिंगार का पिटारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

शमशान का किनारा ,बस्ती से अलग न्यारा;
अवधूत-सा निराला, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

मैं दीन-हीन लुटकर, कटकर अपंग होकर,
धरती का सर्वहारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

पलने में सुकृति मेरी, जलने में सुगति मेरी,
हर नियति का अँगारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

कुहकेगी मेरी कोयल, चहकेंगी मेरी चिडिय़ाँ,
संगीत -स्वर की धारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।

मीरा का तानपूरा कवि सूर का चिकारा
कबिरा का एकतारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

मैं शीत का पुजारी, मैं धूप का शिकारी,
बरसात का सँवारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

झगडूँगा आँधियों से, निपटूँगा व्याधियों से,
कर लूँगा यों गुजारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

निकलूँगा सिन्धु -मन्थन से, ‘पारिजात’ होकर,
वैकुण्ठ से उतारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

इक कामना यही है, इक प्रार्थना यही है,
हो जन्म यदि दुबारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

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Post By: RuralWater
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