निर्मल चन्द निर्मल

निर्मल चन्द निर्मल
माँ नर्मदा
Posted on 24 Aug, 2015 04:02 PM
अमरकंटक की सुता तुम, शाँत कभी विकराल।
विध्वंशक पावस ऋतु, ग्रीष्म करे हड़ताल।।

सलिलापुण्य प्रदायनी, घाट-घाट नव नीर,
बिदा ले रही तटों से , है बिछुडन की पीर।

गर्मी में जलधार का, मध्यम हुआ प्रवाह,
घाट-घाट देता रहा, अपने जल की थाह।

आड़ी-तिरछी चाल भी, खोती नहीं विवेक,
बालूकण करते रहे, माता का अभिषेक।
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