पंकज चतुर्वेदी

पंकज चतुर्वेदी
कभी दिल्ली के दिल में धड़कते थे दरिया
Posted on 19 Oct, 2014 12:29 PM

ग्रामीण दिल्ली के कंझावला का जोंती गांव कभी मुगलों की पसंदीदा शिकारगाह था।, वहां घने जंगल थे और जंगलों में रहने वाले जानवरों के लिए बेहतरीन तालाब। इस तालाब का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। आज इसका जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है, बस जिम्मा ही रह गया है क्योंकि तालाब तो कहीं नदारद हो चुका है। कुछ समय पहले ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संस्था इंटेक को इसके रखरखाव का जिम्मा देने की बात आई थी, लेकिन मामला कागजों से आगे बढ़ा नहीं।

ना अब वहां जंगल बचा और ना ही तालाब। उसका असर वहां के भूजल पर भी पड़ा जो अब पाताल के पार जा चुका है। रामायण में एक चौपाई है - जो जो सुरसा रूप दिखावा, ता दोगुनी कपि बदन बढ़ावा। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद...... किसी भी शहर का नाम ले लो, बस शहर का नाम व भौगोलिक स्थिति बदलेगी, वहां रोजी-रोटी की आस में आए परदेशियों को सिर छिपाने की जगह देना हो या फिर सड़क, बाजार बनाने का काम; तालाबों की ही बलि दी गई और फिर अब लोग गला सूखने पर अपनी उस गलती पर पछताते दिखते हैं।

<i>गंधक की बावड़ी</i>
देशभर में मौतघर बनते सीवर
Posted on 05 Oct, 2014 12:15 PM
देश में हर साल हजार से ज्यादा लोग जाम सीवर की मरम्मत करने के दौरान दम घुटने से मारे जाते हैं । हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। शायद यह पुलिस को भी नहीं मालूम है कि सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक-कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।

जब गरमी अपना रंग दिखाती है, तो गहरे सीवरों में पानी कुछ कम हो जाता है। सरकारी फाइलें भी बारिश की तैयारी के नाम पर सीवरों की सफाई की चिंता में तेजी से दौड़ने लगती हैं। लेकिन इस बात को भूला आदेश दिया जाता है कि 40-45 तापमान में सीवर की गहराई निरीह मजदूरों के लिए मौतघर बन जाती है।
<i>सीवर साफ करते सफाईकर्मी</i>
हिंडन, जो कभी नदी थी
Posted on 05 Oct, 2014 11:37 AM

देश की राजधानी दिल्ली के दरवाजे पर खड़े गाजियाबाद में गगनचुंबी इमारतों के नए ठिकाने राजनगर एक्सटेंशन को दूर से देखो तो एक समृद्ध, अत्याधुनिक उपनगरीय विकास का आधुनिक नमूना दिखता है, लेकिन जैसे-जैसे मोहन नगर से उस ओर बढ़ते हैं तो अहसास होने लगता है कि समूची सुंदर स्थापत्यता एक बदबूदार गंदे नाबदान के किनारे है। जरा और ध्यान से देखें तो साफ हो जाता है कि यह एक

Hindon River
तो नदियों को जोड़ो तालाबों से
Posted on 30 Sep, 2014 10:27 AM
दो खबरें- देश की पहली नदी जोड़ योजना बुंदेलखंड में ही होगी, यहां केन और बेतवा को जोड़ा जाएगा। इस पर 10 हजार करोड़ का खर्चा अनुमानित है। दूसरी खबर-बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में बराना के चंदेलकालीन तालाब को जामनी नदी से नहर द्वारा जोड़ा जाएगा। इस पर 15 करोड़ रुपए खर्च होंगे और 18 गांव के किसान इससे लाभान्वित होंगे।

यह किसी से छिपा नहीं हैं कि देश की सभी बड़ी परियोजनाएं कभी भी समय पर पूरी होती नहीं हैं, उनकी लागत बढ़ती जाती है और जब तक वे पूरी होती है, उनका लाभ, व्यय की तुलना में गौण हो जाता है। यह भी तथ्य है कि तालाबों को बचाना, उनको पुनर्जीवित करना अब अनिवार्य हो गया है और यह कार्य बेहद कम लागत का है और इसके लाभ अफरात हैं।
<i>नदी जोड़ परियोजना से संकट में टीकमगढ़ के तालाब</i>
आदिलशाही जल प्रणाली पर भारी पड़ी लोकतांत्रिक प्रबंधन प्रणाली
Posted on 22 Sep, 2014 01:29 PM

कनार्टक के बीजापुर जिले की कोई बीस लाख आबादी को पानी की त्राहि-त्राहि के लिए गर्मी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। कहने को इलाके चप्पे-चप्पे पर जल भंडारण के अनगिनत संसाधन मौजूद है, लेकिन हकीकत में बारिश का पानी यहां टिकता ही नहीं हैं।

लोग रीते नलों को कोसते हैं, जबकि उनकी किस्मत को आदिलशाही जल प्रबंधन के बेमिसाल उपकरणों की उपेक्षा का दंश लगा हुआ है। समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों कुओं, बावड़ियों और तालाबों में गाद होने की बात करता है, जबकि हकीकत में गाद तो उन्हीं के माथे पर है। सदानीरा रहने वाली बावड़ी-कुओं को बोरवेल और कचरे ने पाट दिया तो तालाबों को कंक्रीट का जंगल निगल गया।

<i>भूतनाल झील</i>
झीलें बचाई होती तो जन्नत के यह हाल ना होते
Posted on 21 Sep, 2014 04:24 PM
कश्मीर का अधिकांश झीलें आपस में जुड़ी हुई थीं और अभी कुछ दशक पहले तक यहां आवागमन के लिए जलमार्ग का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय था। झीलों की मौत के साथ ही परिवहन का पर्यावरण-मित्र माध्यम भी दम तोड़ गया। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण की मार, अतिक्रमण के चलते कई झीलें दलदली जमीन में बदलती जा रही हैं। खुशलसार, गिलसार, मानसबल, बरारी नंबल, जैना लेक, अंचर झील, वसकुरसर, मीरगुड, हैईगाम, नरानबाग,, नरकारा जैसी कई झीलों के नाम तो अब कश्मीरियों को भी याद नहीं हैं। कश्मीर का अधिकांश भाग चिनाब, झेलम और सिंधु नदी की घाटियों में बसा हुआ है। जम्मू का पश्चिमी भाग रावी नदी की घाटी में आता है। इस खूबसूरत राज्य के चप्पे-चप्पे पर कई नदी-नाले, सरोवर-झरने हैं। विडंबना है कि प्रकृति के इतने करीब व जल-निधियों से संपन्न इस राज्य के लोगों ने कभी उनकी कदर नहीं की। मनमाने तरीके से झीलों को पाट कर बस्तियां व बाजार बनाए, झीलों के रास्तों को रोक कर सड़क बना ली।

यह साफ होता जा रहा है कि यदि जल-निधियों का प्राकृतिक स्वरूप बना रहता तो बारिश का पानी दरिया में होता ना कि बस्तियों में कश्मीर में आतंकवाद के हल्ले के बीच वहां की झीलों व जंगलों पर असरदार लोगों के नजायज कब्जे का मसला हर समय कहीं दब जाता है, जबकि यह कई हजार करोड़ रुपए की सरकारी जमीन पर कब्जा का ही नहीं, इस राज्य के पर्यावरण को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देने का मामला है। कभी राज्य में छोटे-बड़े कुल मिला कर कोई 600 वेटलैंड थे जो अब बमुश्किल 12-15 बचे हैं।
Buller Lake
फिर भी सूखा रह गया बुंदेलखंड
Posted on 08 Aug, 2014 11:38 AM

प्रकृति के साथ जीना

Bundelkhand
जल नहीं जीवन निधियाँ हैं ये
Posted on 21 Jul, 2014 09:35 AM
भले ही रोज के अखबार मुल्क में पानी के भीषण संकट की खबरें छापतें हो
water
शहरीकरण की मुश्किलें
Posted on 04 Jul, 2014 01:29 PM
भीड़, प्रदूषण और बिजली-पानी जैसी समस्याओं ने भारत के शहरों पर सवालिया निशान लगा दिया है। शहरीकरण की यह अनियोजित रफ्तार कब और कैसे ठीक होगी? पड़ताल कर रहे हैं पंकज चतुर्वेदी।
urbanisation
राजधानी बनते ही ताल तलैया चाट गया रायपुर
Posted on 03 Jul, 2014 12:32 PM

समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों कुओं, बावड़ियों और तालाबों में गाद होने की बात करती है, जबकि

Raipur pond
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