समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों कुओं, बावड़ियों और तालाबों में गाद होने की बात करती है, जबकि हकीकत में गाद तो उन्हीं के माथे पर है। सदा नीरा रहने वाली बावड़ी-कुओं को बोरवेल और कचरे ने पाट दिया था। तालाबों को कंक्रीट का जंगल निगल गया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, तालाबों को निगलने से उपजे जल व अन्य पर्यावरणीय संकट की बानगी है। छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, न कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और न आंखों में;
यदि कुछ दशक पहले पलट कर देखें तो आज पानी के लिए हाय-हाय कर रहे इलाके अपने स्थानीय स्रोतों की मदद से ही खेत और गले दोनों के लिए इफरात पानी जुटाते थे। एक दौर आया कि अंधाधुंध नलकूप रोपे जाने लगे, जब तक संभलते तब तक भूगर्भ का कोटा साफ हो चुका था। समाज को एक बार फिर बीती बात बना चुके जलस्रोतों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है – तालाब, कुंए, बावड़ी, लेकिन एक बार फिर पीढ़ियों का अंतर सामने खड़ा है, पारंपरिक तालाबों की देखभाल करने वाले लोग किसी और काम में लग गए और अब तालाब सहेजने की तकनीक नदारद हो गई है। असल में तालाब की सफाई का काम आज के अंग्रेजीदां इंजीनियरों के बस की बात नहीं है।
इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेडिएरीडट्रापिक्स के विशेषज्ञ बोन एप्पन और श्री सुब्बाराव का कहना है कि तालाबों से सिंचाई करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक और अधिक उत्पादक होता है। उनका सुझाव है कि पुराने तालाबों के संरक्षण और नए तालाब बनाने के लिए ‘भारतीय तालाब प्राधिकरण’ का गठन किया जाना चाहिए, पूर्व कृषि आयुक्त बीआर भंबूला का मानना है कि जिन इलाकों में सालाना बारिश का औसत 750 से 1150 मिमी है, वहां नहरों की अपेक्षा तालाब से सिंचाई अधिक लाभप्रद होती है।
गांव या शहर के रूतबेदार लोग जमीन पर कब्जा करने के लिए बाकायदा तालाबों को सुखाते हैं, पहले इनके बांध फोड़े जाते हैं, फिर इनमें पानी की आवक के रास्तों को रोका जाता है- न भरेगा पानी, न रह जाएगा तालाब। गांवों में तालाब से खाली हुई उपजाऊ जमीन लालच का कारण होती है तो शहरों में कॉलोनियां बनाने वाले भूमाफिया इसे सस्ता सौदा मानते हैं। यह राजस्थान में उदयपुर से लेकर जैसलमेर तक, हैदराबाद में हुसैनसागर, हरियाणा में दिल्ली से सटे सुल्तानपुर लेक या फिर उप्र के चरखारी व झांसी हों या तमिलनाडु की पुलिकट झील, सभी जगह एक ही कहानी है। हां, पात्र अलग-अलग हो सकते हैं।
सभी जगह पारंपरिक जल-प्रबंधन के नष्ट होने का खामियाजा भुगतने और अपने किए या फिर अपनी निष्क्रियता पर पछतावा करने वाले लोग एक समान ही हैं। कर्नाटक के बीजापुर जिले की कोई बीस लाख आबादी को पानी की त्राहि-त्राहि के लिए गर्मी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। कहने को इलाके के चप्पे-चप्पे पर जल भंडारण के अनगिनत संसाधन मौजूद हैं, लेकिन हकीकत में बारिश का पानी यहां टिकता ही नहीं है। लोग रीते नलों को कोसते हैं, जबकि उनकी किस्मत को आदिलशाही जलप्रबंधन के बेमिसाल उपकरणों की उपेक्षा का दंश लगा हुआ है, समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों कुओं, बावड़ियों और तालाबों में गाद होने की बात करती है, जबकि हकीकत में गाद तो उन्हीं के माथे पर है। सदा नीरा रहने वाली बावड़ी-कुओं को बोरवेल और कचरे ने पाट दिया था। तालाबों को कंक्रीट का जंगल निगल गया।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, तालाबों को निगलने से उपजे जल व अन्य पर्यावरणीय संकट की बानगी है। छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, न कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और न आंखों में; लेकिन अलग राज्य क्या बना, शहर को बहुत से दफ्तर, घर, सड़क की जरूरत हुई। फिर देखते ही देखते ताल-तलैया की बलि चढ़ने लगी। कोई 181 तालाबों की मौजूदगी वाले शहर में अब बमुश्किल एक दर्जन तालाब बचे हैं और वे भी हांफ रहे हैं अपना अस्तित्व बचाने के लिए।
यहां जानना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ में तालाब एक लोग परंपरा व सामाजिक दायित्व रहा है। यहां का लोनिया, सबरिया, बेलदार, रामनामी जैसे समाज पीढ़ियों से तालाब गढ़ते आए हैं। अंग्रेजी शासन के समय पड़े भीषण अकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने खूब तालाब खुदवाए थे और ऐसे कई तालाब पूरे अंचल में ‘लंकेटर तालाब’ के नाम से आज भी विद्यमान हैं। ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ को यहां की पहली हिंदी पत्रिका कहा जाता है। इसके मार्च-अप्रैल 1900 के अंक में प्रकाशित एक आलेख गवाह है कि उस काल में भी समाज तालाबों को लेकर कितना गंभीर व चिंतित था।
आलेख कुछ इस तरह था- ‘रायपुर का आमा तालाब प्रसिद्ध है। यह तालाब श्रीयुत सोभाराम साव रायपुर निवासी के पूर्वजों ने बनवाया था, अब उसका पानी सूखकर खराब हो गया है, उपयुक्त सावजी ने उसकी मरम्मत पर 17 हजार रुपए खर्च करने का निश्चय किया है। काम भी जोर-शोर से जारी हो गया है। आपका औदार्य इस प्रदेश में चिरकाल से प्रसिद्ध है। सरकार को चाहिए कि इसी ओर ध्यान दे।’
उसी रायपुर का तेलीबांध तालाब भ्रष्टाचार, लापरवाही और संवेदनहीनता की बानगी बना हुआ है। सन् 1929-30 के पुराने राजस्व रिकॉर्ड में इसका रकबा 35 एकड़ था, लेकिन आज इसके आधे पर भी पानी नहीं है। उस रिकार्ड के मुताबिक आज जीई रोड का गौरव पथ तालाब पर ही है। इसके अलावा जलविहार कॉलोनी की सड़क, बगीचा, आरडीए परिसर, लायंस क्लब का सभागार भी पानी की जगह पर बना है। यहां 12 एकड़ जमीन खाली करवाकर वहां बसे लोगों को बोरियाकला में विस्थापित किया गया। जब यह जमीन खाली हुई तो इससे दो एकड़ जमीन नगर निगम मकान बनाने के लिए मांगने लगा। वह तो भला हो जनवरी-2011 में सुप्रीम कोर्ट ‘लाराजगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य’ के मुकदमे के फैसले का, जिसमें अदालत ने देश के सभी राज्यों को आदेश दिया था कि तालाब के पानी व निस्तार की जमीन पर किसी भी तरह का निर्माण न हो।
अब सरकार खुद पेशोपेश में है क्योंकि राज्य सरकार ने तेलीबांध से हटाए लोगों को उनकी पुरानी जगह पर ही 720 मकान बना कर देने का वायदा कर दिया है। अब तालाब पर बेहद खामोशी से खेल हो रहा है- इसके कुछ हिस्से में पानी बरकरार रख, शेष पर बगीचे, कॉलोनी बनाने के लिए लोग सरकार के साथ मिलकर गुंताड़े बिठा रहे हैं।
अब तो नया रायपुर बन रहा है, अभनपुर के सामने तक फैला है और इसे बनाने में न जाने कितने ताल-तलैया, जोहड़, नाले दफन हो गए हैं। यहां खूब चौड़ी सड़कें हैं, भवन चमचमाते हुए हैं, सब कुछ उजला है, लेकिन सवाल खड़ा है कि इस नई बसाहट के लिए पानी कहां से आएगा? तालाब तो हम पहले हम हड़प कर गए हैं।
शहर के कुछ चर्चित तालाब, जो देखते-देखते ओझल हो गए..
तालाब |
स्थान |
क्षेत्रफल (हे.) |
कैसे हुई दुर्दशा |
रजबंधा ताल |
रायपुर खास |
7.975 |
तालाब चौरस मैदान हो गया |
सरजूबांध तालाब |
रायपुर खास |
6.121 |
पुलिस लाईन के भीतर लगभग खत्म |
खंतो तालाब |
शंकरनगर |
1.619 |
शक्तिनगर कॉलोनी बस गई |
पचारी |
गोगांव |
0.486 |
उद्योग विभाग को आवंटित यानी खत्म |
नया तालाब |
गोगांव |
0.012 |
उद्योग विभाग को आवंटित यानी खत्म |
गोगांव तालाब |
गोगांव |
0.012 |
उद्योग विभाग को आवंटित यानी खत्म |
ढाबा ताल |
कोटा |
0.445 |
पट गया |
डबरी तालाब |
खम्रहाडीह |
0.331 |
पुलिस चौकी बन गई |
डबरी तालाब |
खम्रहाडीह |
0.299 |
तालाब पाट कर कब्जा |
ट्रस्ट तालाब |
शंकर नगर |
0.793 |
रविशंकर गार्डन बन गया |
नारून तालाब |
टिकरापाड़ा |
1.761 |
चौरस मैदान |
लेंडी तालाब |
रायपुर खास |
1.696 |
तालाब पट गया |
डबरी |
श्याम टॉकीज के पास |
0.242 |
तालाब पट गया |
कंकाली ताल |
रायपुर खास |
0.918 |
नाले मिलते है |
दर्री तालाब |
रायपुर खास |
1.396 |
राजकुमार कॉलेज में समा गया |
खदान तालाब |
रायपुर खास |
1.777 |
सुंदरनगर समिति के भीतर |
गोपिया डबरी |
बंजारी नगर |
1.044 |
गंदा लेकिन मुकदमे में अटका |
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