पंकज चतुर्वेदी
अनियोजित शहरीकरण के खतरे
Posted on 01 Jan, 2013 11:23 AMहमारे देश में संस्कृति, मानवता और बसावट का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। सदियों से नदियों की अविरल धारा और उ
लोगों को विकलांग बनाता पानी
Posted on 27 Dec, 2012 03:29 PM पारंपरिक जल स्रोतों, नदी-नालों व तालाब-बावड़ियों से पटे मध्य प्रदेरोजमर्रा के जीवन में कचरा करते हम
Posted on 31 May, 2012 08:59 AMआज जो कचरा हमारे पर्यावरण और भूजल को नुकसान पहुंचा रहा है। उसे हमने ही तो जमा किया है। पेन, शेविंग किट, दूध की थैली, पानी का बोतल आदि सभी चीजें प्लास्टिक में ही आती है जिसे हर हफ्ते कचरा बढ़ाने वाले ‘यूज एंड थ्रो’ के रूप में प्रयोग करते हैं। पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़ पानी की बोतलें कूड़े में फेंकी जाती हैं। इस बढ़ते कचरा के बारे में जानकारी दे रहे हैं पंकज चतुर्वेबढ़ता बंजर, घटती जमीन
Posted on 09 May, 2012 12:24 PMहमारे देश में कोई तीन करोड़ 70 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि ऐसी है, जो कृषि योग्य समतल है। अनुमान है कि प्रति हेक्टेयर
भूमाफिया की वजह से खत्म होते तालाब
Posted on 26 Apr, 2012 11:42 AMअभी एक सदी पहले तक बुंदेलखंड के इन तालाबों की देखभाल का काम पारंपरिक रूप से ढीमर समाज के लोग करते थे। वे तालाब को साफ रखते, उसकी नहर, बांध, जल आवक को सहेजते - ऐवज में तालाब की मछली, सिंघाड़े और समाज से मिलने वाली दक्षिणा पर उनका हक होता। इसी तरह प्रत्येक इलाके में तालाबों को सहेजने का जिम्मा समाज के एक वर्ग ने उठा रखा था और उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था वही समाज करता था, जो तालाब के जल का इस्तेमाल करता था।
अब तो देश के 32 फीसदी हिस्से को पानी की किल्लत के लिए गर्मी के मौसम का इंतजार भी नहीं करना पड़ता है- बारहों महीने, तीसों दिन यहां जेठ ही रहता है। सरकार संसद में बता चुकी है कि देश की 11 फीसदी आबादी साफ पीने के पानी से महरूम है। दूसरी तरफ यदि कुछ दशक पहले पलट कर देखें तो आज पानी के लिए हाय-हाय कर रहे इलाके अपने स्थानीय स्रोतों की मदद से ही खेत और गले दोनों के लिए भरपूर पानी जुटाते थे। एक दौर आया कि अंधाधुंध नलकूप रोपे जाने लगे, जब तक संभलते तब तक भूगर्भ का कोटा साफ हो चुका था। समाज को एक बार फिर बीती बात बन चुके जल-स्रोतों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है - तालाब, कुंए, बावड़ी। लेकिन एक बार फिर पीढ़ियों का अंतर सामने खड़ा है, पारंपरिक तालाबों की देखभाल करने वाले लोग किसी और काम में लग गए और अब तालाब सहेजने की तकनीक नदारद हो गई है।पहचानिए गोबर की उपयोगिता
Posted on 25 Nov, 2011 08:08 AMरासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है. दक्षिणी राज्यों में सैंकड़ों किसानों के खुदकुशी करने के पीछे रासायनिक दवाओं की खलनायकी उजागर हो चुकी है. इस खेती से उपजा अनाज जहर हो रहा है. रासायनिक खाद डालने से एक दो साल तो खूब अच्छी फसल मिलती है फिर जमीन बंजर होती जाती है. बेशकीमती मिट्टी की ऊपरी परत (टाप सोईल) का एक इंच तैयार होने में 500 साल लगते हैं.
खतरे में है नर्मदा का उद्गम
Posted on 16 Nov, 2011 08:46 AMअमरकंटक के जंगल दुर्लभ वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों और वन्य प्राणियों के लिए मशहूर रहे हैं। खदानों
सूखी धरती, प्यासे लोग और हमारे तालाब
Posted on 15 Nov, 2011 08:33 AMगांवों या शहरों के रुतबेदार लोग जमीन पर कब्जा करने के इरादे से बाकायदा तालाबों को सुखाते हैं, प
सुरक्षित नहीं है कूडनकुलम का रूसी रिएक्टर
Posted on 07 Nov, 2011 08:55 AMभारतीय परमाणु वैज्ञानिकों की सक्षमता के गवाह पोकरण धमाके, और रावतभाटा (राजस्थान) में परमाणु रि
बड़ी आफत है कूड़े का निपटान
Posted on 26 Sep, 2011 10:55 AMरोज सात हजार मीट्रीक टन कचरा उगलने वाली दिल्ली 2021 तक 16 हजार मीट्रिक टन कचरा उपजाएंगी। दिल्ल