पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी
अपना हाथ जगन्नाथ
Posted on 06 Nov, 2014 12:45 PMकई बार बेहतर प्रारंभ पर हमारा बस नहीं होता है, लेकिन अपने प्रयासोंतालाबों के कब्रिस्तान पर बनी राजधानी रायपुर
Posted on 20 Sep, 2014 12:00 PMछत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य बनते ही ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी। कोई 181 तालाबों की मौजूदगी वाले शहर में अब बमुश्किल एक दर्जन तालाब बचे हैं और वे भी हांफ रहे हैं अपना अस्तित्व बचाने के लिए। वैसे यहां भी सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुकी है कि तालाबों को उनका समृद्ध अतीत लौटाया जाए, लेकिन लगता है कि वे गुमनामी की उन गलियों में खो चुके हैं जहां से लौटना नामुमकिन होता है। जुलाई के सावन में भी रायपुर में तापमान 40 डिग्री की तरफ लपक रहा है। एक आध बार पानी बरसा तो शहर लबालब हो गया, लेकिन अगली सुबह घरों के नल रीते ही रहे। पानी की किल्लत अब यहां पूरे साल ही रहती है। यहां के रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रशासन ने परिसर और उससे सटे डीडी नगर, आमानाक, डडनिया में तेजी से नीचे जा रहे जल स्तर को बचाने के लिए बीस लाख रुपए की लागत से एक तालाब बनाने का फैसला ले लिया है।चलो यह अच्छा है कि ज्ञान-विज्ञान, तकनीक से सज्जित आज के समाज को नए तालाब खोदने की अनिवार्यता याद तो आई, लेकिन यह याद नहीं आ रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य क्या बना, शहर को बहुत से दफ्तर, घर, सड़क की जरूरत हुई और देखते-ही-देखते ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी।
जल नहीं जीवन निधियां हैं ये (भाग 2)
Posted on 23 Jul, 2014 12:33 PMवैश्वीकरण के बाद से खेती कम लाभ का काम हो गया और लोगों का पेट पालने के लिए शहरों की ओर पलायन बढ़ गया। गांव कस्बे में, कस्बे शहर में और शहर महानगर की ओर बढ़े तो आवास, बाजार, और बढ़ती भीड़ की मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि बनाने के लिए जैसे ही जमीन का टोटा पड़ा तो लोगों ने सदियों पुराने तालाबों पर अपनी गिद्ध-दृष्टि टिका दी।जल संकट दूर कर प्रेरणा बने कर्नाटक के गांव
Posted on 24 May, 2014 09:11 AMकभी सोना उगलने वाली धरती कहलाने वाले कर्नाटक के कोलार जिले में एक छोटा-सा गांव चुलुवनाहल्ली। वहां न तो कोई प्रयोगशाला है, न ही कोई प्रशिक्षण संस्थान, फिर भी यहां देश के कई राज्यों के अफसर जल विशेषज्ञ, स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग सीखने आ रहे हैं।व्यर्थ ही बीत गया जैव विविधता वर्ष
Posted on 03 Dec, 2010 08:36 AM
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष २०१० को जैव –विविधता वर्ष घोषित किया है । ऐसा इसलिए की विश्व भर में जैव –विविधता गहरे संकट में है और इसे भी संरक्षण की जरुरत है। आदम सभ्यता ने अपने ऐश –आराम और सुख सुविधाओं के लिए सब को नजरअंदाज कर प्रकृति और पर्यावरण को बुरी तरह से हानि पहुँचाई है। इस सब से हमारा जैव विविधता चक्र प्रभावित हुआ है।