बाबा मायाराम

बाबा मायाराम
कुओं का कायाकल्प
Posted on 29 Oct, 2014 11:34 AM

हाल ही में कर्नाटक से सुखद खबर आई है कि वहां कुओं को फिर से पुनर्जीवित किया जा रहा है। बेलगांव शहर में जो कुएं सूख गए थे, गाद या कचरे से पट गए थे उनका नगर निगम और नागरिकों ने मिलकर कायाकल्प कर दिया है। और शहर की करीब आधी आबादी के लिए कुओं से पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है।


बेलगांव में 1995 में जब पीने के पानी का मुख्य स्रोत सूख गया तब वैकल्पिक पानी के स्रोतों की खोज हुई। यहां के वरिष्ठ नागरिक मंच ने कुओं का कायाकल्प करने का सुझाव दिया। इस पर अमल करने से पहले गोवा विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख चाचडी से सलाह मांगी। उन्होंने इसका अध्ययन इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी।

<i>टेढ़ा पद्धति</i>
सिंचाई की अनूठी टेड़ा पद्धति
Posted on 21 Oct, 2014 03:51 PM
पिछले दिनों मेरा छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले के एक गांव चराईखेड़ा जाना हुआ। वह उरांव आदिवासियों का गांव है। उनकी सरल जीवनशैली और मिट्टी के हवादार घरों के अलावा मुझे जिस चीज ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह है उनकी सिंचाई की टेड़ा पद्धति।

यहां कुएं उथले हैं और उनमें साल भर लबालब पानी रहता है। कुओं से पानी निकालना आसान है, इसके लिए यहां टेड़ा का इस्तेमाल किया जाता है। टेड़ा और कुछ नहीं बांस की लकड़ी है जिसके एक सिरे पर पत्थर बांध दिया जाता है और दूसरे सिरे पर बाल्टी। पत्थर के वजन के कारण पानी खींचने में ज्यादा ताकत नहीं लगती। बिल्कुल सड़क के बैरियर या रेलवे गेट की तरह।
Unique irrigation system
देनवा नदी के किनारे
Posted on 21 Oct, 2014 03:28 PM

होशंगाबाद जिले में दक्षिण में पूर्व से पश्चिम तक सतपुड़ा की लम्बवत की खूबसूरत पहाड़ियां हैं। दे

Denwa river
बैगाओं की खेती की चर्चा
Posted on 17 Oct, 2014 11:09 AM

हाल ही में बैगा आदिवासियों की खेती को इंडोनेशिया के किसान देखने आए तो वे देखते ही रह गए। एक ही खेत में डोंगर कुटकी, सलहार, मड़िया, कंगनी, सिकिया, झुंझरू, राहर, सांवा आदि फसलों को देखकर उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ। उन्होंने न केवल बैगाओं की खेती को देखा बल्कि वे दो दिनों तक उनके साथ गांव-घर में रहे, भोजन किया और खूब बातें की।
बैगा जनजाति का भोजन
तालाबों के लिए देशी अनाजों को भी बचाना होगा
Posted on 08 Oct, 2014 01:57 PM
मैं कोदो हूं, अनाजों का राजा। मेरी विंध्य क्षेत्र में तीन प्रजातियां हैं-कोदइला, लूमा और विसवरिया। मैंने 80-80 वर्षों तक कोठियों में सुरक्षित रहकर अकाल-दुर्भिक्ष के समय लोगों की सेवा की है। विंध्य क्षेत्र में पहले जो लगभग 6 हजार तालाबों का निर्माण हुआ था उसमें मेरी भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता।

यह बीज महोत्सव के मौके पर आयोजित पोस्टर प्रदर्शनी का हिस्सा है। यह कार्यक्रम 20-21 सितंबर को सतना में आयोजित किया गया था। इसे परंपरागत देसी बीज अनाज बीज महोत्सव समिति ने आयोजित किया था।

इस अवसर पर एक पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई थी जिसमें देशी अनाजों के महत्व पर प्रकाश डाला गया था। कुटकी, सांवा, ज्वार, मक्का, जौ, कठिया, बाजरा, आदि अनाजों की कहानी आकर्षण का केंद्र थी।
<i>देशी अनाज</i>
नर्मदा बचाओ आंदोलन को समर्पित एक पत्रकार
Posted on 06 Oct, 2014 11:20 AM
संजय संगवई एक समर्पित पत्रकार, अध्ययनशील लेखक और कार्यकर्ता थे। वे
The river and life book cover
भील अपने खेत पानी के टैंकर से सींचते हैं
Posted on 03 Oct, 2014 11:08 AM
हम टीवी के रूपहले पर्दे पर भील आदिवासियों को रंग-बिरंगी पोषाकों में नाचते हुए देखते हैं और मोहित हो जाते हैं लेकिन जब हम उनसे सीधा साक्षात्कार करते हैं तो उनके कठिन जीवन की असलियत देख-सुनकर वह आकर्षण काफूर हो जाता है।

ऐसा ही अहसास मुझे तब हुआ जब मैं उनसे मिला और उनके दुख-दर्द की कहानियां सुनीं। हाल ही मुझे 31 अगस्त से 3 सितंबर तक पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर में रहने का मौका मिला।

इस दौरान एक भिलाला युवक रेमू के साथ मैं डेढ़ दर्जन गांवों में गया। ये सभी गांव अलीराजपुर जिले में स्थित हैं। इनमें से कुछ हैं-खारकुआ, छोटा उण्डवा, तिति नानपुर, घोंगसा, उन्दरी, हिरापुर,फाटा इत्यादि।
Krishi
बुंदेलखंड : अन्ना प्रथा को मजबूर गायें
Posted on 14 Sep, 2014 04:27 PM

हाल ही में मुझे बुंदेलखंड जाने का मौका मिला। वहां यह देख-सुनकर धक्का लगा कि यहां सैकड़ों की संख्या में मवेशियों को चारे-पानी के अभाव में खुला छोड़ दिया जाता है जिससे वे कमजोर और बीमार हो जाते हैं और कई बार तो सड़क दुर्घटनाओं में असमय छोड़कर चले जाते हैं। यहां पानी की कमी कोई नई बात नहीं है और अन्ना प्रथा भी नई नहीं है लेकिन मौसम बदलाव ने जिस तरह खेती और आजीविका के संकट को बढ़ाया है, उसी तरह मवेशियों के लिए भी संकट बढ़ गया है।

यहां पहले अन्ना प्रथा के चलते गर्मियों की शुरूआत में मवेशियों को छोड़ दिया जाता था। अगली फसल के पहले तक वे खुले घूमते थे फिर उन्हें घरों में बांध लेते थे। लेकिन अब वे पूरे समय खुले ही रहते हैं। चाहे बारिश हो या ठंड साल भर खुले इधर-उधर भटकते रहते हैं। ऐसी दुर्दशा मवेशियों की पहले न सुनी और न देखी थी।

<i>Visit for Apna Talab Abhiyan Work, 14 august 2014, Mahoba by Waterkeeper India</i>
सूखे का मुकाबला तालाबों से
Posted on 08 Sep, 2014 09:51 AM
बुंदेलखंड में दबे पांव एक मौन क्रांति हो रही है और यह तालाब क्रांति। इस इलाके में पानी की कमी और सूखा कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस संकट को जलवायु बदलाव ने और बढ़ा दिया है। अब सूखा कोई एक साल की बात नहीं है, यह स्थाई हो गया है। इससे निजात पाने के लिए राज, समाज और मीडिया ने साझा अभियान छेड़ दिया है। पिछले दो साल में यहां लगभग 4 सौ तालाब बन चुके हैं। जिसका फौरी
water harvesting
पहाड़ी कोरवाओं की बेंवर खेती
Posted on 24 Jun, 2014 01:05 PM

कोरवा आदिवासी की बेंवर खेतीछत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन यहां ऐसे समुदाय भी हैं, जो धान की खेती नहीं करते। उनमें से एक समुदाय है पहाड़ी कोरवा।

pahadi farming
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