बाबा मायाराम

बाबा मायाराम
सतपुड़ा जब झूमने लगता है
Posted on 30 Aug, 2016 03:41 PM


मानसून आते ही सतपुड़ा के पहाड़ों और जंगलों की छटा देखती ही बनती है। जो जंगल गर्मी में सूखे, उदास और बेजान से दिखते हैं वे मानसून की बारिश आते ही हरे-भरे और सजीव हो उठते हैं। मन मोह लेते हैं, बरबस अपनी ओर खींचते हैं।

नर्मदा की परकम्मा
Posted on 29 Aug, 2016 10:56 AM


नर्मदा की परकम्मावासी मीराबेन का यात्रा वृतान्त पढ़ना, उनके साथ परकम्मा करना जैसा ही है। हालांकि उन्होंने जो प्रत्यक्ष अनुभव, नर्मदा का सौन्दर्य और उसके आसपास के जनजीवन को देखा उसकी बात अलग है, लेकिन उसकी झलक उनकी पुस्तिका में मिलती है।

वर्षाजल बचाने की पारम्परिक पद्धति विरदा
Posted on 26 Aug, 2016 11:01 AM

मालधारी बड़ी संख्या में पशु रखते हैं। उन्होंने अपने लम्बे अनु
बूँद बूँद से घड़ा भरना होगा
Posted on 28 Jul, 2016 10:46 AM


पानी का संकट मौसमी नहीं, स्थायी हो गया है। कुछ समय पहले तक सतपुड़ा अंचल में पानी की बहुत समस्या नहीं थी। कुएँ, तालाब, बावड़ियाँ, झरने जैसे परम्परागत स्रोत सदानीरा थे। लेकिन अब मैदानी क्षेत्र में पानी हर साल नीचे चला जा रहा है और यहाँ के परम्परागत स्रोत सूख गए हैं।

झाबुआ में आशा के बीज
Posted on 07 Jul, 2016 04:15 PM


झाबुआ का एक गाँव है डाबडी। वैसे तो यह सामान्य गाँव है लेकिन यहाँ एक किसान के खेत में देसी गेहूँ की 16 किस्में होने के कारण यह खास बन गया है। और वह भी बिना रासायनिक खाद और बिना कीटनाशकों के। पूरी तरह जैविक तरीके से देसी गेहूँ का यह प्रयोग आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

जलसंकट कैसे दूर करें (How to overcome the water crisis)
Posted on 07 May, 2016 12:49 PM


इन दिनों पानी का संकट गहरा रहा है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और कई राज्यों में पीने के पानी की किल्लत हो रही है। यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। अब यह संकट स्थायी हो गया है। यह समस्या प्रकृति से ज्यादा मानव निर्मित है, इसका हल भी हमें ही निकालना होगा।

नर्मदा के साथ आन्तरिक यात्रा
Posted on 14 Feb, 2016 01:11 PM


एक महीने बाद फिर नर्मदा से भेंट हो गई। वैसे उससे होते ही कब अलग हैं। वह तो हमारे जीवन में समाई हुई है। बचपन से लेकर अब तक बार-बार उसके दर्शन किये हैं। अमरकंटक से लेकर गुजरात तक उसके कई घाटों पर उसके दर्शन किये हैं।

सूखे का संकट स्थायी क्यों है
Posted on 11 Jan, 2016 04:25 PM


पिछले कुछ सालों से किसानों को बार-बार सूखे से जूझना पड़ रहा है और अब लगभग यह हर साल बना रहने वाला है। वर्ष 2009 में सबसे बुरी स्थिति रही है। पहले से ही खेती-किसानी बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है। कुछ सालों से किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इस साल भी सूखा ने असर दिखाया है, एक के बाद एक किसान अपनी जान दे रहे हैं।

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