बाबा मायाराम
सामाजिक पहल से खुला विकास का रास्ता
Posted on 24 Jun, 2009 02:42 PM
आमतौर पर बिना बिजली, बिना डीजल ईंजन और पशुधन की ऊर्जा के बगैर खेतों की सिंचाई करना मुश्किल है लेकिन सतपुड़ा अंचल के दो गांव के लोगों ने यह मुश्किल आसान कर दिखाई है। अपनी कड़ी मेहनत, कौशल और सूझबूझ से वे पहाड़-जंगल के नदी-नालों से अपने खेतों तक पानी लाने में कामयाब हुए हैं। जंगल पर आधारित जीवन से खेती की ओर मुडे आदिवासी भरपेट भोजन करने लगे हैं।
हरियाली से खुशहाली की अनूठी पहल
Posted on 18 Feb, 2015 07:39 AM आदिवासियों के अधिकारों के लिए बरसों से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता रपहाड़ पर हरियाली की वापसी
Posted on 02 Dec, 2014 12:55 PMलोग जैसे अपने खेतों की देखभाल करते हैं उसी तरह जंगल की देखभाल करने लगे। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी। दो-तीन सालों में ही सूखे जंगलों में फिर से हरियाली लौटने लगी। बांज, बुरास, काफल के पुराने ठूंठों पर फिर नई शाखाएं फूटने लगीं। अंयार, बंमोर, किनगोड हिंसर, सेकना, धवला, सिंसाआरू, खाकसी आदि पेड़-पौधे दिखाई देने लगे। और आज ये पेड़ लहलहा रहे हैं।
जो काम सरकार और वन विभाग नहीं कर पाया वह लोगों ने कर दिखाया। उन्होंने पहाड़ पर उजड़ और सूख चुके जंगल को फिर हरा-भरा कर लिया और वहां के सूख चुके जलस्रोतों को फिर सदानीरा बना लिया। यह गांव अब पारिस्थितिकी वापसी का अनुपम उदाहरण बन गया है।
और यह है उत्तराखंड की हेंवलघाटी का जड़धार गांव। सीढ़ीदार पहाड़ पर बसे लोगों का जीवन कठिन है। अगर पहाड़ी गांव के आसपास पानी न हो तो जीवन ही असंभव है। और शायद इसी अहसास ने उन्हें अपने पहाड़ पर उजड़े जंगल को फिर से पुनर्जीवित करने को प्रेरित किया। यह ग्रामीणों की व्यक्तिगत पहल और सामूहिक प्रयास का नतीजा है। अब यह प्रेरणा का प्रतीक बन गया है।
भेड़ाघाट में नर्मदा का सौंदर्य देखने उमड़ती है भीड़
Posted on 01 Feb, 2010 08:20 AM
मध्यप्रदेश के जबलपुर से नजदीक है भेड़ाघाट। वैसे तो हम बचपन से ही यहां के बारे में पढ़ते-सुनते आ रहे हैं लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इसे देखने का संयोग हाल ही बना। यहां की मार्बल राक्स और धुआंधार दोनों ही बहुत प्रसिद्ध है।