![वायु प्रदूषण कोविड वैक्सीन के प्रभाव को कर सकता है कम, Pc- harvard.edu](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2023-04/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A1%20%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%20%E0%A4%95%E0%A4%AE%20%20.png?itok=7YvxPEdK)
एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण के कारण कोविड-19 के लिए इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन का असर कम हो सकता है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ स्पेन और जर्मन ट्राईबल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि हवा में पाए जाने वाले सूक्ष्म कण की मात्रा(पीएम 2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड ( No 2) और ब्लैक कार्बन (Bc) के संपर्क में आने से बिना पूर्व बीमारी से ग्रस्त लोगों मे आईजीएम (Igm) और आईजीजी (Igg) एंटीबायोटिक में लगभग 10% की कमी आई है।
कुछ हद तक यह बात भी सही है कि पिछले संक्रमण के कारण काफी संख्या में लोग वैक्सीनेट हुए है । ऐसे में सवाल उठता है आखिर क्यों प्रदूषण का असर उन्हीं लोगों में देखने को मिला जो संक्रमित नहीं थे। हालांकि हाइब्रिड इम्यूनिटी में प्रदूषण का दीर्घकालीन असर कैसा होगा यह अभी-भी एक जांच का विषय है।
आईएसग्लोबल के शोधकर्ता कार्लोटा डोबानो ने कहा है कि
वायु प्रदूषण पुरानी गंभीर बीमारी को वापस जन्म दे सकता है । जो टीके के प्रभावकारिता पर नकारात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। हमारे निष्कर्ष यह सबूत दे रहे हैं कि लगातार जैविक प्रदूषक बच्चों में टीके की क्षमता को कम कर रहे है।
वही इस पूरे मामले को बारीकी से जांचने के लिए शोधकर्ताओं ने 40 से 65 साल के उम्र के 927 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया । जिन्होंने साल 2020 की गर्मियों में और 2021 में कोविड-19 टीकाकरण की शुरुआत के बाद अपने खून के नमूने दिए थे। इनमें से सभी ने कोविड वैक्सीन की 1 या 2 डोज ली हुई थी।
शोध दल द्वारा आईजीएम, आईजीजी, और आईजीए एंटीबॉडी को पांच वायरल एंटीजन में मापा गया है। वही प्रत्येक व्यक्ति में सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5), ब्लैक कार्बन (BC), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), और ओजोन (O3) के संपर्क में आने का अनुमान महामारी से पहले उनके पते के आधार पर लगाया गया था।
वही परिणाम बताते हैं कि असंक्रमित व्यक्तियों में कोविड माहमारी से पहले पीएम 2.5, एनओ 2 और बीसी को वैक्सीन-प्रेरित स्पाइक एंटीबॉडी में 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत की कमी के साथ जोड़कर शोध किया गया था।
आईजीजी द्वारा मापी गई प्रारंभिक आईजीएम और बाद की आईजीएम में एंटीबॉडी में कमी दिखाई गई थी। पहली खुराक के बाद आईजीजी उच्च वायु प्रदूषण के स्तर के संपर्क में आने वाले प्रतिभागियों में बाद में चरम पर पहुंच गई ( आईजीजी के उच्च स्तर का मतलब हो सकता है कि आपको संक्रमण या गंभीर बीमारी है) । और पूरा टीकाकरण के बाद आईजीजी कई महीनों तक निम्न स्तर ( आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली उतनी अच्छी तरह से काम नहीं कर रही है जितनी उसे करनी चाहिए) पर बनी रही।
अध्ययन में यह नहीं देखा गया कि क्या एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं में कमी के कारण संक्रमण और उनकी गंभीरता का खतरा बढ़ गया है। वही पश्चिमी यूरोप में देखा गया है कि वायु प्रदूषण के निम्न स्तर के बावजूद वायु प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिस पर कड़े एक्शन लेने की बात कही गई है।
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