जैविक खेती की संभावनाएं

आलू की जैविक खेती,फोटो क्रेडिट:- विकिपीडिया
आलू की जैविक खेती,फोटो क्रेडिट:- विकिपीडिया

दुनिया के कई देशों के उपभोक्ता अब जैविक,खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दे रहे हैं। वैश्विक बाज़ार में भारत के जैविक कृषि उत्पादों की भी मांग बढ़ रही है। ऐसे में भारत के कृषि उत्पादों  जैव खाद्य पदार्थों के रूप में लोकप्रिय बनाया जा सकता है। इससे भारत बाकी दुनिया के लोगों के लिए महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। साथ ही, जैविक खेती को बढ़ावा देने से कृषि उपादानों पर खर्च कम हो सकेगा।

जैविक खेती से तात्पर्य फसल उत्पादन की उस पद्धति से है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशियों, व्याधिनाशियों साकनाशियों, पादप वृद्धि नियामकों और पशुओं के भोजन में किसी भी रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि उचित फसल चक्र, फसल अवशेष, पशुओं का गोबर व मलमूत्र, फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश, हरी खाद और अन्य जैविक तरीकों द्वारा भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखकर पौधों को पोषक तत्वों की प्राप्ति कराना एवं जैविक विधियों  द्वारा कीट-पतंगों और खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है। जैविक खेती एक पर्यावरण अनुकूल कृषि प्रणाली है। इसमें खाद्यान्नों, फलों और सब्जियों की पैदावार के दौरान उनका आकार बढ़ाने या वक्त से पहले पकाने के लिए किसी प्रकार के रसायन या पादप नियागकों का प्रयोग भी नहीं किया जाता है। जैविक खेती का उद्देश्य रसायन मुक्त उत्पादों और लाभकारी जैविक साम्रगी का प्रयोग करके मृदा स्वास्थ्य में सुधार और टिकाऊ फसल उत्पादन को बढ़ावा देना है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली फसलों के उत्पादन के लिए मृदा को स्वस्थ और पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।

दुनिया का सबसे बड़ा स्टार्टअप तंत्र भारत में है। हम विश्व की तीसरी बड़ी स्टार्टअप अर्थव्यवस्था हैं। आज नया दौर है, नया भारत है। आज भारत दुनिया का 'स्टार्टअप हब' बन चुका है। युवा नौकरी मांगने की जगह नियोक्ता बन रहे हैं। युवा स्टार्टअप अर्थव्यवस्था तो बढ़ा ही रहे हैं। साथ ही, किसानों को ऐप आधारित जैविक खेती समाधान भी उपलब्ध करा  रहे है

सतत कृषि विकास और जैविक खेती

जैविक खेती का एक उद्देश्य जीवन तथा टिकाऊ खेती का विकास है। इसके अंतर्गत फार्म प्रबंधन की ऐसी प्रणाली अपनाई जाती है जिससे पारिस्थितिको सुरक्षित रहे, खरपतवार तथा नाशीजीवों पर नियंत्रण हो, वानस्पतिक तथा जन्तु अवशेषों का पुनर्चक्रण हो, फसल चक्र अपनाया जाए, सिंचाई, निराई आदि की सही व्यवस्था हो जैविक खेती में मृदा उर्वरता को स्थिर रखने के लिए ऐसी प्रणाली अपनाई जाती है जिससे जैव सक्रियता अधिकतम बनी रहे। मिट्टी की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा ठीक रहे और पौधों के लिए सतुलित पोषक तत्वों की आपूर्ति होती रहे। इस प्रकार जैविक खेती में उत्पादक और उपभोक्ताओं की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाता है।

कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत तेजी से दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो रहा है। भारत को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने की दिशा में कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। ऐसे समय में जब एक तरफ भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, तो दूसरी तरफ, पूरी दुनिया में वर्ष 2023 को भारत के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय पौष्टिक अनाज वर्ग के रूप में मनाया जा रहा है, मोटे अनाजों से निर्मित जैविक फसल उत्पादों का महत्व और भी बढ़ जाता है।

जैविक उत्पादों की प्रमुख विशेषताएं 

जैविक खाद्य पदार्थों में आमतौर पर विषैले तत्व नहीं होते हैं क्योंकि इनमें कृषि रसायनों, कोटनाशियों, पादप हार्मोन और सरक्षित रसायनों जैसे नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता है जबकि सामान्य खाद्य पदार्थों में कृषि रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर कीटनाशियों में ऑर्गेनो -फास्फोरस जैसे रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है।जैविक रूप से तैयार किए गए खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद है। सामान्य खाद्य पदार्थों की अपेक्षा इनमेंअधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं क्योंकि इन्हें जिस मिट्टी में उगाया जाता है, वह अधिक उपजाऊ होती है

जैविक खाद्य पदार्थ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। साथ ही, इनको लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। जैविक खेती द्वारा उगाए जाने वाले फलों एवं सब्जियों में ज्यादा एंटी-ऑक्सिडेंट्स होते है क्योंकि इनमें कीटनाशी अवशेष नहीं होते  है। आजकल लोगों में एंटीबायोटिक को लेकर जागरूकता बढ़ रही है इसका कारण यह है कि खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दिए जाते हैं। जब हम ऐसे खाद्य पदार्थों को खाते हैं, तो हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है जैविक रूप से उगाए खाद्य पदार्थों की वजह से हम इस नुकसान से बच सकते हैं। 

इसके अलावा, जैविक खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में शुष्क पदार्थ पाए जाते हैं। साथ ही, जैविक सब्जियों में नाइट्रेट की मात्रा 50 पीपीएम से कम होती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हैं। जैविकखेती शुरू करने से पहले जमीन को दो साल के लिए ऑर्गेनिक खाद पदार्थों के उपयुक्त नहीं माना जाता है ताकि इस अवधि के दौरान फसले मिट्टी में मौजूद सभी हानिकारक व विषैले तत्वों का अवशोषण कर सकेफसल उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होने के कारण इनका आसानी से निर्यात किया जा सकेगा जिससे हमें विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिलेगी।

थाली से लेकर किसानों तक पहुंचे स्टार्टअप

'देहात' इस समय बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में लाखों किसानों को जैविक उर्वरकों, कृषि बीमा, फसल कटाई और मृदा परीक्षण से संबंधित सेवा प्रदान कर रहा है। किसान की मेहनत से उगने वाले फूल जब देवलयों में चढ़ाए जाते हैं, तब तक तो पूजनीय होते है, मगर अगले कुछ दिनों में वे बेकार की श्रेणी में आ जाते है ऐसे में इस जैविक कचरे को कारगर बनाने का काम कानपुर का 'फूल' नामक स्टार्टअप कर रहा है। यह भारत का पहला बायोमेटिरियल स्टार्टअप है जो मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को रिसाइकल करके उनसे ऑर्गेनिक वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण करता है।

अपनी विविधता,स्वाद और गुणवत्ता से जैविक उत्पाद स्टार्टअप की दुनिया में भी रंग जमा रहे हैं। देश के कई स्टार्टअप जैविक उत्पादों को बाजार में उतार रहे हैं। इन स्टार्टअप ने जैविक फसल उत्पादों से रेडी-टू-इंट और रेडी-टू-कुक श्रेणी के कई अनोखे उत्पाद उतारे हैं। इनमें से कई को सरकार की मदद भी मिल रही है। ऑनलाइन बिक्री के माध्यम से ये बड़े पैमाने पर लोगों की थाली तक पहुँच रहे हैं।

स्टार्टअप सीधे किसानों से जैविक उत्पाद खरीदते हैं। इनमें तमिलनाडु के "ब्लिस ट्री स्टार्टअप ने जैविक उत्पादों से बने दर्जनों दक्षिण भारतीय पकवानों के उत्पाद तैयार किए हैं। वहीं हैदराबाद के स्टार्टअप 'मिलेनोवा' ने मोटे अनाजों के जैविक उत्पादों में फल और सब्जियाँ मिलाकर 'रेडी टू ईट स्नैक्स तैयार किए हैं। फसल अवशेष प्रबंधन किसानों के लिए फसल अवशेष के प्रबंधन हेतु 50 प्रतिशत सब्सिडी मूल्य पर भारत सरकार द्वारा संचालित योजना 'कृषि अभियंत्रण को बढ़ावा देकर फसल अवशेषों का खेतों में प्रबंधन के अंतर्गत निम्नलिखित कृषि उपकरण व मशीनरी उपलब्ध कराने का प्रावधान है-

सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, पैडी स्ट्रा चॉपर, थ्रैशर मल्चर, हैपी सीडर, हब मास्टर / रोटरी स्लैशर, हाइड्रोलिक रिवर्सबल मोल्ड बोल्ड प्लाउ, जीरो टिल सीड व उर्वरक ड्रिल, सुपर सीडर, बैलिंग मशीन क्रॉपरी उपरोक्त सुविधाओं का लाभ लेने के लिए किसानों को अपने जिले के कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क करना होता है। इसके अलावा, सरकार धान उत्पादन करने वाले किसानों के खेतों पर पूसा बायो डिकम्पोजर का निशुल्क छिड़काव आयोजित करती है ताकि किसान के खेत पर ही फसल अवशेषों का सदुपयोग कम्पोस्ट के रूप में किया जा सके।

जैविक खेती के मामले में भारतीय किसानों ने दुनिया भर में नया मुकाम हासिल कर लिया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत में पैदा जैविक अलसी, की सर्वाधिक मांग है। जैविक कृषि उपज के बेहतर मूल्य मिलने से जहां किसानों को लाभ मिल रहा हैं वहीं उपभोक्ताओं को स्वास्थ्यवर्धक व गुणवत्तायुक्त उत्पाद मिलने लगे है।

बीजोपचार की पर्यावरण हितैषी तकनीक

प्रकृति में पाए जाने वाले विभिन्न मित्र कीटों व फकूदों को फसलों में बीमारी फैलाने वाले रोगाणुओं के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जा सकता है इसी प्रकार ट्राइकोडरमा एक जैविक फफूंदी नाशक है जिसे भूमिजनित उत्पन्न रोगों के नियंत्रण में काम लेते है। यह एक तरह का सूक्ष्म परजीवी है जिसके प्रयोग से विभिन्न फफूंदजनित बीमारियों को रोका जा सकता है। सामान्यतः इसको जड़ गलन, उकठा, तना गलन व नर्सरी में पौधों का सड़ना इत्यादि रोगों के विरुद्ध प्रयोग करते है। इसके प्रभाव दूरगामी एवं विश्वसनीय होते हैं और पर्यावरण के लिए भी यह हानिकारक नहीं है ट्राइकोडरमा सस्ता, आसानी से उपलब्ध व इसका प्रयोग भी सुगम है। ट्राइकोडरमा की विभिन्न कल्चर ट्राइकोडरमा विरिडी, टी. हरजाइम, टी. पोलीस्पोरम है मृदा उपचार के समय मृदा में पर्याप्त नमी होनी भी जरूरी है। इसका प्रयोग पहली सिचाई के समय भी किया जा सकता है। ट्राइकोडरगा का प्रयोग गन्ना, कपास चना, अरहर, गेहूं व सभी दाल वाली फसलों में करें इसके अलावा, मृदाजनित फफूंदी रोगों से प्रभावित सब्जियों व बागवानी फसलों में भी ट्राइकोडरमा का प्रयोग लाभदायक पाया गया है। ट्राइकोडरमा का भंडारण ठंडे व हवादार स्थान पर करें कल्चर व उपचारित बीज को तेज धूप व गर्मी में न रखें कल्चर का उपयोग उत्पादन तिथि के एक वर्ष के पूर्व ही कर लें।

ऑर्गेनिक उत्पादों की विश्व बाजार में मांग 

दुनिया के कई देशों के उपभोक्ता अब ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दे रहे हैं वैश्विक बाजार में भारत के ऑर्गेनिक कृषि उत्पादों की भी मांग बढ़ रही है। ऐसे में भारत के कृषि उत्पादों को जैव खाद्य पदार्थों के रूप में लोकप्रिय बनाया जा सकता है। इससे भारत बाकी दुनिया के लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देने से कृषि उपादानों पर खर्च कम हो सकेगा इसका नतीजा है कि इन उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी हो रही है। ऑर्गेनिक कृषि उत्पादों का सर्वाधिक निर्यात अमेरिका और यूरोपीय यूनियन को होता है।

वैश्विक बाजारों में जिन उत्पादों की सर्वाधिक मांग रही उनमें अलसी, तिल, सोयाबीन, अरहर, चना, चावल, चाय व औषधीय पौधे शामिल है अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के अलावा कनाडा, ताइवान व दक्षिण कोरिया से भी इन उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त जर्मनी भी इन उत्पादों का बड़ा आयातक है। इनमें तिलहन, गन्ना, मोटे अनाज, कपास, दलहन, औषधीय पौधे, चाय, फल, मसाले, मेवे, सब्जियाँ और कॉफी जैसे उत्पाद शामिल हैं। एपीडा के अनुसार ऑर्गेनिक कृषि उत्पादों के मामले में मध्य प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और राजस्थान का नंबर आता है।

अलसी की जैविक खेती 

जैविक खेती के मामले में भारतीय किसानों ने दुनिया भर में नया मुकाम हासिल कर लिया है अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत में पैदा जैविक अलसी की सर्वाधिक माग है। जैविक कृषि उपज के बेहतर मूल्य मिलने से जहां किसानों को लाभ मिल रहा है वहीं उपभोक्ताओं को स्वास्थ्यवर्धक व गुणवत्तायुक्त उत्पाद मिलने लगे है। जैविक पद्धति द्वारा अलसी की खेती करने के लिए जैविक खादों के रूप में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद केचुआ खाद एवं गुर्गी खाद क्रमशः 4 टन, 2.2 टन एवं 1.2 टन प्रति हेक्टेयर शुष्क भार आधार पर प्रयोग की जाती है इससे लगभग 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है मृदाजनित रोगों से बचाव हेतु मृदा में ट्राइकोडर्मा विरडी नामक फंफूदनाशक का प्रयोग किया जा सकता है। पौध संरक्षण हेतु 0.03 प्रतिशत नीम तेल का छिड़काव करना चाहिए। कीटों को आकर्षित करने के लिए फेरामैन ट्रैप लगाया जा सकता है जैविक खेती के परिणाम दर्शाते हैं कि अलसी की प्रति हेक्टेयर उपज शुरुआती तीन वर्षों में कम प्राप्त होती है। इसके बाद उपज में उत्तरोत्तर वृद्धि देखी गई यदि किसान उपलब्ध जैविक खादों व जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कर जैविक अलसी की खेती करें तो निश्चित ही कुछ वर्षों में सूदा गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ ज्यादा उपज एवं लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

सरकारी प्रयास और योजनाएं

किसानों को जैविक खेती के प्रति आकर्षित करने के लिए सरकार की ओर से अनेक योजनाएं चलायी जा रही है। जैविक खेती को बढ़ावा देने और कृषि रसायनों पर निर्भरता को कम करने के लिए वर्ष 2015-16 में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की शुरूआत की गई। जिसमें कलस्टर आधारित कार्यक्रम के तहत किसानों के गठन समूहो तथा पीजीएस प्रमाणीकरण द्वारा जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया गया है। परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत सरकार मिट्टी की सुरक्षा और लोगो के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए पारंपरिक संसाधनों का इस्तेमाल करके पर्यावरण अनुकूल कम लागत की प्रौद्योगिकियों को अपना कर जैविक खेती को बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य रसायनमुक्त उत्पादों और लाभकारी जैविक साम्रगी का प्रयोग करके मृदा स्वास्थ्य में सुधार और फसल उत्पादन को बढ़ावा देना है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली फसलों के उत्पादन के लिए मृदा को स्वस्थ और पर्यावरण प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।

जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार पूर्वोत्तर राज्यों को जैविक खेती का केन्द्र बनाने पर जोर भी दे रही है। इसके लिए उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन विकास योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्वी भारत का सिक्किम देश का पहला राज्य है, जहांपूर्णतया जैविक खेती की जा रही है। लगभग 75 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले इस राज्य को राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश के आनुसार प्रमाणित जैविक खेती में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां अब पूर्णतः ताजा जैविक उत्पादन किया जा रहा है। इसके अलावा,सिक्किम के गंगटोक शहर में राष्ट्रीय जैविक खेती अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य जैविक खेती के बारे में नवीनतम नवाचार और जरूरी जानकारियां  किसानों को उपलब्ध कराना है।

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने तीन वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की दिशा में देने मदद देने की बात भी कही है। साथ ही, किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत जैविक फसल उत्पादन की सभी क्रियाओं को सहकारिता और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इसके अलावा, किसानों की आय बढ़ाने के लिए कस्टमर हाइरिंग सेंटर पर जोर देने की बात कही गई है। केंद्रीय बजट 2022-
23 में वित्त मंत्री ने देश के सामने रसायनमुक्त खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा। उन्होंने जोर दिया कि किसान जैविक व प्राकृतिक खेती को अपनाएं। इसके लिए पहले चरण में गंगा नदी के 5 कि.मी गलियारे में किसानों की भूमि को प्राकृतिक खेती के दायरे में लाया जाना है। इसमें प्रकृति के साथ साम्य बनाते हुए कृषि को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

सरकार यह भी कोशिश कर रही है कि किसान खेती में यूरिया व अन्य कीटनाशियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग न करें। रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती कीमतें, उनकी कमी व आयात निर्भरता घटाने के लिए सरकार का परंपरागत कृषि विकास योजना पर जोर ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। इन योजनाओं के कारण ही जैविक खेती के अंर्तगत क्षेत्रफल निरंतर बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2003-04 में 42000 हेक्टेयर जैविक खेती का क्षेत्रफल था जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 7.23 लाख हेक्टेयर के लगभग पहुँच गया। वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 35.6 लाख हेक्टेयर और 2021-22 में बढ़कर 59.1 लाख हेक्टेयर हो गया है। वर्ष 2017-18 में भारत से निर्यात किए गए जैविक उत्पादों का मूल्य 3453 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 5151 करोड़ रुपये को पार कर गया यह सब किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों के परिश्रम और सरकारी प्रयासो से ही संभव हो पाया है।

इसके अलावा, जैविक खेती को बढ़ावा देने, जैविक कृषि स्टार्टअप के लिए ग्रामीण युवाओं को प्रोत्साहित करने, डिजिटल तकनीक से खेती को बढ़ावा और कृषि क्षेत्र में भंडारण क्षमता में बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। पीएम प्रमाण योजना की शुरुआत भी की गई है। इसमें वैकल्पिक उर्वरकों को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

अधिक आय प्राप्त करने के लिए जैविक उत्पादों को बाजार के साथ जोड़ा जा रहा है। जैविक खेती की बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा जैविक खेती पोर्टल लांच किया गया है जैविक खेती पोर्टल के माध्यम से जैविक किसानों को अपने उत्पाद बेचने की सुविधा उपलब्ध करायी जाएगी। इसके अलावा, इस पोर्टल के माध्यम से जैविक खेती के लाभ से संबंधित जानकारी प्राप्त हो सकेगी। साथ ही, जैविक उपज को पूरी दुनिया के उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में ई-कॉमर्स अहम साबित हो रहा है। ग्राहकों को जैविक खेती वाले किसानों से जोड़ने में यह मजबूत साधन बन गया है। जैविक उत्पादों की घरेलू ही नहीं, वैश्विक मांग से इसकी खेती करने वाले किसानों के दिन फिर रहे है।

जापान की मियावाकी तकनीक

हम भारतवासियों का स्वभाव होता है कि हम हमेशा नए विचारों के स्वागत के लिए तैयार रहते हैं। हम अपनी चीजों से प्रेम करते हैं और नई चीजों को आत्मसात भी करते हैं। इसी का एक उदाहरण है जापान की तकनीक मियावाकी, अगर किसी जगह की मिट्टी उपजाऊ नहीं रही हो, तो मियावाकी तकनीक, उस क्षेत्र को फिर से हरा-भरा करने का बहुत अच्छा तरीका होती है। मियावाकी जंगल तेजी से फैलते हैं और दो-तीन दशक में जैव विविधता का केंद्र बन जाते हैं। अब इसका प्रसार बहुत तेजी से भारत के भी अलग- अलग हिस्सों में हो रहा है। हमारे यहाँ केरल के एक टीचर श्रीमान राफी रामनाथ जी ने इस तकनीक से एक इलाके की तस्वीर ही बदल दी। दरअसल, रामनाथ जी अपने स्टूडेंट्स को, प्रकृति और पर्यावरण के बारे में गहराई से समझाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक हर्बल गार्डन ही बना डाला। उनका ये गार्डन अब एक बॉयोडायवर्सिटी जोन बन चुका है। उनकी इस कामयाबी ने उन्हें और भी प्रेरणा दी। इसके बाद राफी जी ने मियावाकी तकनीक से एक मिनी फॉरेस्ट यानी छोटा जंगल बनाया और इसे नाम दिया 'विद्यावनम्' अब इतना खूबसूरत नाम तो एक शिक्षक ही रख सकता है- 'विद्यावनम्' रामनाथ जी के इस 'विद्यावनम्' में छोटी सी जगह में 115 वरायटी के 450 से अधिक पेड़ लगाए गए। उनके स्टूडेंट्स भी इनके रखरखाव में उनका हाथ बंटाते हैं। इस खूबसूरत जगह को देखने के लिए आसपास के स्कूली बच्चे आम नागरिक काफी भीड़ उमड़ती है। मियादा की जंगलों को किसी भी जगह, यहाँ तक कि शहरों में भी आसानी से उगाया जा सकता है। कुछ समय पहले ही मैंने गुजरात में केवड़िया, एकता नगर में मियावाकी फॉरेस्ट का उद्घाटन किया था। कच्छ में भी 2001 के भूकंप में मारे गए लोगों की याद में मियावाकी पद्धति से स्मृति वन बनाया गया है। कच्छ जैसी जगह पर इसका सफल होना ये बताता है कि मुश्किल से मुश्किल प्राकृतिक परिवेश में भी ये तकनीककितनी प्रभावी है।

                                                                       ______प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, मन की बात 18 जून 2023

गेहूँ की जैविक खेती

जैविक खेती से उगाए गए गेहूँ का अधिक मूल्य मिलता है। साथ ही, इसके निर्यात की भी अधिक संभावनाएं रहती है। जैदिक खेती में ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए, जो कि भूमि व जलवायु के अनुकूल हो जैविक कृषि में जैविक प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। यदि जैविक प्रमाणित बीज उपलब्ध नहीं हो तो किसी रसायन के बिना उपचारित सामान्य बीज को भी उपयोग कर सकते हैं। वातावरण की नाइट्रोजन के प्रभावी जब यौगिकीकरण के लिए गेहूँ के बीज को एजोटोबेक्टर कल्चर 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करते हैं। इसके अलावा, बीजों को पी.एस.बी. नामक जीवाणु उर्वरक 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से भी उपचारित करना चाहिए। इससे मृदा में फॉस्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।उपर्युक्त जीवाणु उर्वरकों से बीजों को उपचारित करने पर नाइट्रोजन व फास्फोरस उर्वरकों के प्रयोग में 10-20 प्रतिशत की कमी की जा सकती है। जैविक खादों में से स्थानीय उपलब्धता के आधार पर खादों को मिलाकर फसल के लिए खेत में डाल सकते हैं। ध्यान रहे कि इन जैविक खादों से कुल मिलाकर कम से कम 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मिल जानी चाहिए अन्यथा फसल में नाइट्रोजन की कमी हो सकती है जिससे उपज में कमी आ सकती है।

जैविक खेती व किसानों की आय

ऑर्गेनिक फूड का प्रचलन दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। जैविक खाद्य पदार्थ अपने उत्कृष्ट पौष्टिक गुणों के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत लोकप्रिय है सेहत का सीधा संबंध खानपान से है। स्वस्थ रहने के लिए लोग अब तेजी से जैविक खाद्य पदार्थ अपना रहे हैं। इन्हें सेहत के हिसाब से काफी अच्छा माना जाता है। शहरी क्षेत्रों में जैविक उत्पादों की बिक्री की अधिक संभावना है। साथ ही,जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ाकर किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है। जैविक खेती में फसलों का उचित प्रकार से प्रबंधन किया जाए तो अच्छी आमदनी प्राप्त हो सकती है।

आजकल जैविक खाद्य पदार्थों में मौसमी फल व सब्जियों की ज्यादा मांग रहती है साथ ही चावल, गेहूँ, शहद, ग्रीन टी की मांग भी दिनोंदिन बढ़ रही है जैविक खाद्य पदार्थों की कीमत सामान्य खाद्य पदार्थों की अपेक्षा 40 से 50 प्रतिशत तक ज्यादा रहती है। सामान्यतः जैविक खाद्य पदार्थों की पैदावार सामान्य रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों की अपेक्षा कम है जबकि मांग अधिक है। इसके अलावा, अधिकांश किसान जैविक खेती की बजाय पारंपरिक तरीके से ही खेती करते हैं। वर्षों तक कीटनाशी युक्त खाद्य पदार्थों के खाने से सेहत खराब होने के सामने जैविक खाद्य पदार्थों की कीमत ज्यादा नहीं है जैविक उत्पादों की घरेलू ही नहीं, वैश्विक मांग से इसकी खेती करने वाले किसानों के लिए जैविक खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है।

जैविक खेती के समक्ष चुनौतियाँ 

आज जैविक खेती करने वाले किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़  रहा है। जैसे कि बाजार से कैसे संपर्क किया जाए, जैविक उत्पाद को ऑनलाइन कैसे बेचा जाए। साथ ही, उत्पादों का परीक्षण कैसे किया जाए। देश के कई क्षेत्रों के किसान अपनी पैदावार की गुणवत्ता को प्रमाणित कराने के लिए मान्यता प्राप्त संस्थाओं से अनभिज्ञ है जिनके माध्यम से पैदावार को उपभोक्ता तक पहुंचा जा सके या उसका निर्यात कर सके जीवांश खादें और जैविक कीटनाशी जैविक खेती का अभिन्न अंग है आज देश में उच्च गुणवत्तायुक्त जैविक खादों की कमी के साथ साथ जैविक खेती की उन्नत तकनीक व प्रशिक्षण केंद्रों का भी अभाव है। इसके अलावा सामान्य खेती से जैविक खेती में रूपांतरण अवधि के प्रारम्भिक वर्षों में फसलों की उपज में 5-10 प्रतिशत की कमी होती है। किसान इस समस्या से भी बचना चाहते हैं। यद्यपि 2-3 वर्षों बाद यह समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाती है। इसके बाद जैविक खेती में उपन सामान्य कृषि के बराबर या उससे अधिक प्राप्त होने लगती है।

कीटों का जैविक नियंत्रण

कीटों की संख्या कम करने के लिए प्रयोगशाला जनित मित्र जीवों का उपयोग भी किया जाता है। जैसे धान के तना छेदक के लिए ट्राइकोग्रामा ज्योनिकम (ट्राईक कार्ड), धान के पत्ता लपेटक और मक्का के तना छेदक के लिए ट्राइकोग्रामा चीलोनिस तथा टमाटर के फल छेदक और तंबाकू की इल्ली (स्पाडोप्टेरा लिटुरा) के लिए न्यूक्लियोपोलेहड्रोसिस वायरस का उपयोग इन कीटों के पर्यावरण अनुकूल नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। 

ट्राइकोग्रामा सब्जियों में कीड़ों की रोकथाम के लिए उत्तम पाया गया है। ट्राइकोग्रामा एक सूक्ष्म अंड परजीवी है जो तना छेदक, फली छेदक व पती खाने वाले कीटों के अंडों पर आक्रमण करते है। ट्राईकोकार्ड पोस्टकार्ड की तरह ही एक कार्ड होता है जिस पर लगभग 20 हजार परजीवी ट्राइकोग्राम पलते हैं यह कार्ड कपास, गन्ना, धान जैसी फसलों में लगने वाले बंधक कीड़ों के नियंत्रण हेतु खेतों में लगाया जाता है। एक एकड़ क्षेत्र के लिए 2 से 3 कार्ड प्रति सप्ताह की दर से 5-6 बार लगाने से कीटों की रोकथाम में मदद मिलती है। 

जैविक खेती और रोजगार के अवसर

फसलों की जैविक खेती से रोजगार के अवसर बढ़े हैं। इसलिए इस क्षेत्र से ग्रामीणों को रोजगार मिलने की भी अधिक संभावना है। रोजगार मिलने के साथ-साथ जैविक फसल उत्पादों का प्रसंस्करण व मूल्यवर्धन कर इनकी गुणवत्ता को बढ़ाकर अधिकतम लाभ भी कमाया जा सकता है। इस प्रकार कम पूंजी लगाकर स्वरोजगार प्राप्त करने के साथ-साथ आय में भी इजाफा किया जा सकता है। जैविक सब्जियों और फलों की दैनिक एवं नियमित मांग अधिक होने के कारण इनको रोजगार के रूप में अपना कर लागत की तुलना में आमदनी अधिक होती है। इसके अलावा, सब्जियों और फलों से आर्गेनिक रंग भी बनाए जाते हैं जो न केवल शुद्ध, सस्ते व खुशबूदार होते है, बल्कि हमारी त्वचा के लिए भी सुरक्षित होते हैं इसको भी एक व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है। देश में फल, फूलों एवं सब्जियों के जैविक बीजों का प्राय: अभाव है। इसके लिए पढ़े-लिखे युवक/युवतियां अनाज, फल व सब्जी बीज उत्पादन व जैविक खेती के बारे में प्रशिक्षण को एक व्यवसाय के रूप में अपना सकते हैं। 

इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में फसल अवशेषों से वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद बनना महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया में फसल अवशेषों तथा गोवर का सदुपयोग करके वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाता है। इससे एक तरफ वायु प्रदूषण की समस्या को रोका जा सकता है दूसरी तरफ, किसानों को उच्च गुणवत्ता युक्त जैविक खाद उपलब्ध करायी जा सकती है। खेती को टिकाऊ बनाने के लिए जैविक खादों की उपयोगिता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस प्रकार एक से डेढ़ माह में अच्छी गुणवत्ता की वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाती है जिसे छानकर थैलियों या बोरियों में भर लेते हैं वर्मी कम्पोस्ट द्वारा ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार भी उपलब्ध कराया जा सकता है। आज देश के विभिन्न भागों में वर्मी कम्पोस्ट का मूल्य 10 से 15 रुपये प्रति कि.लो ग्राम है। जैविक उपज को पूरी दुनिया के उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में ई-कॉमर्स अहम साबित हो रहा है। ग्राहकों को जैविक खेती वाले किसानों से जोड़ने में यह मजबूत साधन बन गया है।

निष्कर्ष

जैविक खेती में कीट एवं रोगों के सफलतापूर्वक प्रबंधन के लिए प्रतिरोधक या सहनशील प्रजातियों को उगाना चाहिए। जैविक खादों के प्रयोग से मृदा में कार्बनिक कार्बन की मात्रा के साथ- साथ उपलब्ध नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा में वृद्धि देखी गई। मृदा की जैव क्रियाओं विशेषकर एजाइम क्रियाओं से रासायनिक खेती की अपेक्षा जैविक खेती में अधिक बढ़ोत्तरी देखी गई। जैविक पद्धति से फसलों की खेती करने से मृदा स्वास्थ्य सुधार के साथ-साथ मिट्टी की उत्पादकता एवं उगाए गए उत्पाद की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी पायी गई। यदि किसान अपने उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करके जैविक खेती करें तो निश्चित ही कुछ वर्षों में ज्यादा लाभ प्राप्त होगा निसंदेह मृदा, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को सशक्त बनाए रखने के लिए जैविक खेती नित्तात आवश्यक है। यह एक किफायती पर्यावरण हितैषी और टिकाऊ उपाय है।

सोर्स- कुरुक्षेत्र 

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Post By: Shivendra
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