हजारों जलस्रोत अतिक्रमण का शिकार समाज और सरकार करें भूल सुधार

हजारों जलस्रोत अतिक्रमण,फोटो क्रेडिट-लोक सम्मान
हजारों जलस्रोत अतिक्रमण,फोटो क्रेडिट-लोक सम्मान

हाल के दिनों में एक माफिया की बहुत चर्चा रही। अपने वर्चस्व के दिनों में उक्त माफिया ने किसी पर जबरन की जमीन लूटी, तो किसी के मकान पर जबरन कब्जा किया। उसके जीवित रहते अधिकांश सताए लोग सामने आकर शिकायत की हिम्मत भी नहीं कर पाते थे। माफिया के आखिरी अंजाम तक पहुंचने के बाद उसके सताए हुए लोग एक-एक कर सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि सरकार अब आयोग बनाकर पीड़ितों की सुनवाई करने के पश्चात उनकी संपत्तियां लौटाने की तैयारी में है। ये पीड़ित इस मामले में भाग्यशाली हैं कि उन्हें सताने वाले माफिया का एक चेहरा था और उसके अंत के पश्चात उनकी लूटी संपत्ति वापस मिलने की संभावना है। लेकिन बीते वर्षों में उत्तर प्रदेश में जलस्रोतों की ऐसी लूट हुई है, जिन्हें लूटने वालों का कोई एक चेहरा नहीं है। इस लूट के अनेक जिम्मेदार हैं जिनमें कहीं न कहीं हम आप और पूरा समाज कटघरे में खड़ा है। केंद्रीय जल शक्ति आयोग की हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि प्रदेश में 65502 झील, तालाब व अन्य जलस्रोत तबाह और बर्बाद हो चुके हैं। इनमें से 1908  तालाब और झील पर अवैध रूप से इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। वहीं 6.5  प्रतिशत जलस्रोत ऐसे हैं जिनके 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर अतिक्रमण हो चुका है। 

ऐसे समय में जब विशेषज्ञ लगातार चेता रहे हैं कि प्राकृतिक जल संरचनाओं से छेड़छाड़ का दुष्परिणाम हमें और हमारी आगामी पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है, आवश्यक है कि अतिक्रमण और छेड़छाड़ के शिकार जलस्रोतों को उनका मूल स्वरूप लौटाने का व्यापक अभियान आरंभ किया जाए। इसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकताबढ़ाने की भी आवश्यकता है।

कई जानकार मानते हैं कि वास्तविक स्थिति सर्वेक्षण रिपोर्ट से भी अधिक खराब है और अतिक्रमण के शिकार जलस्रोतों की संख्या रिपोर्ट की तुलना में बहुत अधिक है। कई तालाब ऐसे हैं जिन्हें राजस्व के रिकॉर्ड में तालाब के रूप में प्रदर्शित ही नहीं किया गया। ऐसा ही एक उदाहरण बहराइच के बाघेल तालाब का दिया जाता है, जो लगभग 42  किमी लंबाई में विस्तृत है। लेकिन राजस्व परिषद के रिकॉर्ड में इसे कृषि भूमि के रूप में प्रदर्शित कर दिया गया है। 

ऐसे समय में जब विशेषज्ञ लगातार चेता रहे हैं कि प्राकृतिक जल संरचनाओं से छेड़छाड़ का दुष्परिणाम हमें और हमारी आगामी पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है, आवश्यक है कि अतिक्रमण और छेड़छाड़ के शिकार जलस्रोतों को उनका मूल स्वरूप लौटाने का व्यापक अभियान आरंभ किया जाए। इसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

जल उत्सव अभियान जैसे कार्यक्रम समाज को जलस्रोतों के महत्व से परिचित कराने का एक प्रयास है जिसके अत्यंत सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। जलस्रोतों को अतिक्रमण से मुक्त करने के अनेक सरकारी प्रयास भी सफलतापूर्वक लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं। आवश्यकता है ऐसे अभियानों और प्रयासों का अधिकाधिक विस्तार किया जाए

जल उत्सव अभियान जैसे कार्यक्रम समाज को जलस्रोतों के महत्व से परिचित कराने का एक प्रयास है जिसके अत्यंत सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। जलस्रोतों को अतिक्रमण से मुक्त करने के अनेक सरकारी प्रयास भी सफलतापूर्वक लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं। आवश्यकता है ऐसे अभियानों और प्रयासों का अधिकाधिक विस्तार किया जाए। हमें समझना होगा कि माफिया से पीड़ित व्यक्तियों की तरह जलस्रोतों के पास अपने पर हुए अत्याचार को बताने और न्याय मांगने के लिए जुबान नहीं है। हम सबको ही उनकी पीड़ा समझते हुए उनकी जुबान बनना होगा और उन्हें न्याय दिलाना होगा। यह कार्य जलस्रोतों के अस्तित्व से भी अधिक मानव और सम्पूर्ण प्राणिजगत के अस्तित्व के लिए अपरिहार्य है।


सोर्स- लोक सम्मान

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