नदी की जुताई

जुलाई का पहला पानी ,PC-विकिपीडिया
जुलाई का पहला पानी ,PC-विकिपीडिया

नदी की जुताई कर जलस्तर ५०० फुट से ८० फुट तक आया।महाराष्ट्र के शहादा तहसील की घटना अवश्य पढ़ें व अपने गाँव मे भी अमल करें! खेत की जुताई करना पड़ता है यह बात सभी को मालूम है पर नदी की जुताई करना – ये सुनकर अटपटा लगता है?  २० वर्ष पूर्व की बात है जो आज मूल्यवान लगती है।

शहादा तहसील के गोमाई नदी के तट का डांबरखेडा – यह गाँव गोमाई नदी मध्यप्रदेश के सतपुड़ा की पहाड़ों की श्रृंखलाओं से बहते हुये महाराष्ट्र के प्रकाशा गाँव में ताप्ती में आकर मिलती है – संगम होने से प्रकाशा दक्षिण काशी के नाम से प्रसिद्ध है। 

सन् २००० की बात है... डांबरखेडा क्षेत्र में अचानक ध्यान दिया तो समझ में आया कि इस क्षेत्र के बहुत से कूँए व बोरवेल का पानी खत्म हो गया है।  ४ से ६ महीने जीवंत रहने वाली नदी गोमाई के तट पर रहकर भी इस गाँव डांबरखेडा के कूँए बोरवेल सूखे रहते हैं!? यहाँ का जल स्तर ५०० से ७०० फुट तक नीचे चला गया। लोग नलकूपो की गहराई बढ़ाते चले गए पर पानी कहीं भी मिलने का नाम नहीं – ऐसा क्यों??
सारी जनता और कृषक परेशान किसी के पास कोई उत्तर नहीं।

मोतीलाल पाटील (पटेल) तात्या नांदरखेडा जिसका गाँव शहादा से डांबरखेडा ये पास का गाँव।  डांबरखेडा की पानी की समस्या मोतीलाल पटेल के चिंता और चिंतन का विषय हो गया। मोतीलाल पुणे विद्यापीठ के १९७० मे एम एस सी ऍग्री थे।  डांबरखेडा की ये समस्या सार्वजनिक थी। गाँव मे नदी रहकर भी कूँए, बोरवेल सूखे रहते थे – समस्या सभी की थी पर उत्तर किसी के पास नहीं था।मोतीलाल एक दिन डांबरखेडा गाँव के सरपंच से मिले और कुछ मन की बातें बतायी और कुछ दिनो के बाद अपने चिंतन की बातें जनता के समक्ष रखी।  समस्या की जड़ तक पहुँचने पर ही उत्तर प्राप्त होते हैं और वो चिरस्थायी होते हैं। 

जलस्तर नीचे गया – इस समस्या पर मोहनलाल का बताया ऊपाय सबसे अलग था।  कुछ पागलपन... पर, समस्या पर किया अभ्यास, संशोधन और चिंतन! लोगो ने मोहनलाल का उपाय सुना और ५०० से ७००फुट पर गया जलस्तर एकदम ८०-९० फुट पर आ गया। डांबरखेडा के जनता को मोहनलाल ने स्वतः डीजल प्रदान किया, ट्रैक्टर, लकड़ी के नांगर, लोहे के नांगर ऐसे साधनो से गोमाई नदी की भर गरमी में जुताई शुरु हुई – लोहे के फ़ाल टेढ़े होने लगे – चार कि मी. नदी आडी जोतने का ये अजब प्रयोग कुछ लोगो के लिए मजाक का विषय हो गया। गाँववाले केवल १ किलोमीटर इतनी ही नदी की जुताई कर पाये।

जून सूखा गया,जुलाई का पहला पानी भरपूर आया पर गोमाई नदी में आया पानी ताप्ती नदी में पहुँचा ही नहीं – जुताई की हुई नदी ने रात में यह पूरा पूरा जल पी लिया। केवल २४घंटे में ५००फुट पर गया जलस्तर ८०फुट पर आ गया। जनता आनंदित हो गई सुबह लोगो के अपने अपने कूँए और ट्यूबवेल से फोर्स से पानी बाहर फेकने लगे।

तत्कालीन जिलाधिकारी असीम कुमार गुप्ता ने नदी जुताई के इस अभिनव प्रयोग के शिल्पकार जानकार मोतीलाल पटेल को "वॉटर मॅन ऑफ शहादा" से सम्मानित किया। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्य सचिव अजित निंबाळकर ने मोतीलाल पटेल का ये अभिनव प्रयोग देख कर सम्मानित किया।नदी की जुताई की ये अभिनव कल्पना कैसै सूझी? इस विषय पर बताते हुए मोहनलाल कहने लगे — "हर साल बरसात में बहते आने वाला मटमैला जल 'फाईन पार्टिकल' रेत मे मिल मिल कर २-३फुट पर सेटल होकर परत दर परत ये कठोर हो जाते हैं – अर्थात् पानी जमीन में न जाते हुए वैसे ही बह जाता है। मेरे अनेक वर्षो के अभ्यास और चिंतन से मुझे समस्या का ये कारण समझ आया।"

मध्यप्रदेश के खेतीया शहर तक एवं अनेक गाँव के लोगो ने सतत गोमाई नदी की जुताई की और बह जाने वाले बरसात के जल को अपने गाँव मे ही उपयोग किया।  मोहनलाल के प्रयोग का यह फल है कि निराश न होकर, आत्महत्या की ओर न जाते हुए खेतिहर किसान अपनी समृद्धि के लिए जलस्तर को जीवंत करेंगे।  मोतीलाल पटेल के समान हर कृषक विचार करे तो समस्या का निदान प्राप्त होगा।

हमारी सबसे विनती है कि जिस गाँव में नदी नाले आदि नैसर्गिक जल के स्रोत हैं – जहाँ बरसात का पानी जमीन में जाता ही नहीं – यह प्रयोग अवश्य अपने गाँव मे करें तो पानी की समस्या से स्वमेव मुक्ति मिलेगी।।

 

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