पृथ्वी पर जीवन विविध रूपों में उपस्थित है। यहां सूक्ष्मजीवों से लेकर विशालकाय हाथी एवं व्हेल जैसे जीव विद्यमान है। जीवन की यही विविधता जैव विविधता कहलाती है। जैव विविधता में पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीव-जंतु, वनस्पतियां और सूक्ष्मजीव शामिल हैं। जैव विविधता के कारण पृथ्वी जीवन के विविध रंगों को संजोए हुए है। यहां पाए जाने वाली लाखों तरह की वनस्पतियां पृथ्वी के प्राकृतिक सौंदर्य का एक अंग हैं। जहां पृथ्वी की वनस्पतियों में गुलाब जैसे सुंदर फूलदार पौधे, नागफनी जैसे रेगिस्तानी पौधे, सुगंधित चन्दन और वट जैसे विशालकाय वृक्ष शामिल हैं वहीं यहां जीव-जंतुओं की दुनिया भी अद्भुत विविधता लिए हुए है। यहां हिरण, खरगोश जैसे सुंदर जीवों के साथ शेर एवं बाघ जैसे हिंसक जीव भी उपस्थित हैं जो पृथ्वी पर जीवन की विविधता के परिचायक हैं। पृथ्वी पर पाए जाने वाले मोर, कबूतर और गौरेया जैसे हजारों पक्षी जीवन के रंग-बिरंगे रूप को प्रदर्शित करते हैं। धरती से कहीं अधिक जैव विविधता महासागरों में मिलती है। यहां प्रवाल भित्तियों यानी कोरल रीफ की अनोखी रंग-बिरंगी दुनिया उपस्थित है। महासागरों में पाई जाने वाली हजारों किस्म की मछलियां और अनेक जीव जीवन की विविधता का अनुपम उदाहरण हैं।
पृथ्वी पर दिखाई देने वाले जीव जगत से कहीं अधिक तादाद तो अत्यंत छोटे जीवों यानी सूक्ष्म जीवों की है जिन्हें हम नंगी आखों से नहीं देख सकते हैं। एक ग्राम मिट्टी में करीब 10 करोड़ जीवाणु और पचास हजार फफुंदी जैसे जीव होते हैं। अत्यंत छोटे होने के बावजूद भी सूक्ष्मजीवों की जैव विविधता का जीवन के स्थायित्व में महत्वपूर्ण योगदान है। सूक्ष्मजीव अपशिष्ट पदार्थों को सरल पदार्थों में तोड़ कर पृथ्वी को अपशिष्ट पदार्थों से मुक्त रखते हैं। यदि सूक्ष्मजीव न हों तो पृथ्वी पर कूड़े-कचरे का ढेर इतना बढ़ जाएगा कि यहां जीवन संभव नहीं हो सकेगा। छोटे-छोटे सूक्ष्मजीव खाद्य सुरक्षा का आधार होते हैं। यह फसलों तक मिट्टी से विभिन्न पोषक तत्व पहुंचाते हैं। भूमि से नाइट्रोजन को वायुमंडल में पहुंचाने की क्रिया में भी सूक्ष्मजीवों का महत्वपूर्ण योगदान है।
जैव विविधता प्रकृति का अनुपम उपहार
जैव विविधता मानव के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। धरती पर जीवन के लिए जैव विविधता बहुत महत्वपूर्ण है, जीवन के लिए अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति में जैव विविधता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अहम भूमिका होती है। प्रकृति ने हमें फलों की करीब 375 किस्में, 60 हजार किस्म के धान, सब्जियों की लगभग 280 किस्में, 80 तरह के कंदमूल और करीब 60 तरह के खाए जाने वाले फूल, बीज और मेवे आदि प्रदान किए हैं। प्रकृति ने इतनी अलग-अलग किस्में इसलिए दीं ताकि हम मौसम के अनुसार कोई विशेष किस्म लगा लें और जो कीट-पतंगों और रोगों से भी बची रहे। प्रकृति ने सभी जीवों को कुछ न कुछ विशेषताएं प्रदान की है जो उन्हें अन्य जीवों से विशिष्ट बनाती हैं।इसी प्रकार प्रकृति ने धुर्वीय प्रदेशों में भालु को श्वेत आवरण, रेगिस्तान के लिए ऊंट को विशेष शरीर रचना और पानी में रहने के लिए मछलियों को विशेष क्षमता प्रदान की है, जिससे प्रत्येक जीव अपने आवास में जीवन यापन करता रहे।
जैव विविधता के लिए खतरा बढ़ता प्रदूषण
प्रदूषण का प्रभाव जैव विविधता पर भी पड़ता है । किसी भी प्रजाति को अनुकूलन हेतु स्वस्थ्य पर्यावरण की आवश्यकता होती है। पर्यावरण में अचानक होने वाले परिवर्तन से अनुकूलन के अभाव में जीवों की मृत्यु भी हो सकती है। प्रदूषण जनित जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र के तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली दलदली क्षेत्र की वनस्पतियों पर पड़ेगा जो तट को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ समुद्री जीवों के प्रजनन का आदर्श स्थल भी होती है। दलदली क्षेत्रों को समुद्री तूफानों से रक्षा करने का भी कार्य करते हैं। जैव विविधता क्षरण के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।
घटती जैव विविधता
पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण का प्रभाव जीवन के प्रत्येक रूप को प्रभावित कर रहा है। प्रदूषण के कारण जैव विविधता में सर्वाधिक तेजी से परिवर्तन हो रहें हैं। प्रदूषण के कारण अनेक जीव धरती से विलुप्त हो सकते हैं। आईपीसीसी के अनुसार यदि प्रकृति के दोहन की हालत यही बनी रही तो सन् 2100 तक तापमान में डेढ़ से छह प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। जिसके कारण वन्य पशुओं और वनस्पतियों की करीब 12,000 प्रजातियां भी देखते ही देखते खत्म हो जाएंगी। यदि सदी के अंत तक तापमान 1980 से 1999 के मुकाबले 1.5 से 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो पौधों और जीवों की करीब 20 से 30 प्रतिशत प्रजातियां हमेशा के लिए नष्ट होने की हालत में पहुंच जाएंगी।
बॉन शहर में जैव विविधता पर हुए सम्मेलन में वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन के अनुसार प्रदूषण से हर घंटे में तीन प्रजातियां खत्म हो जाती है। बेलगाम प्रदूषण तेजी से जीवन का विनाश कर रहा है। जीवों के विनाश की यह क्षति सालाना 150 अरब रुपए के बराबर है। जीवों के प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण हर चार में से एक स्तनधारी जीव विलुप्त होने की कगार पर है। इनमें ओरंगटाउन, चिम्पैंजी और हाथी भी शामिल हैं। हर आठ में से एक चिड़ियों की प्रजाति, हर तीसरा उभयचर व 70 प्रतिशत पेड़-पौधों पर खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। चिट्रिड नाम की एक फफूंद ने पिछले दो सालों में मेंढ़कों की करीब 100 प्रजातियों को खत्म कर दिया है। एक अनुमान के अनुसार शायद सन् 2038 तक मेंढ़क नहीं बचेंगे । आज विभिन्न प्रजातियां जीवाश्म अभिलेखों में बताई गई दरों की तुलना में सौ गुना अधिक तेजी से लुप्त हो रही हैं। वर्तमान में 30 प्रतिशत से अधिक उभयचर, 23 प्रतिशत स्तनधारी तथा 12 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। गिद्ध, चील और कौए जैसे प्रकृति के बनाए सफाईकर्मी जीव भी अब कम होते जा रहे हैं, जिसके कारण पृथ्वी पर अपशिष्ट पदार्थों का बढ़ता ढेर अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देगा।
प्रवाल भित्तियां और प्रदूषण
महासागरों में स्थित जैव विविधता संपन्न प्रवाल भित्ति क्षेत्रों पर भी प्रदूषण की मार पड़ रही है। जैव विविधता से समृद्ध प्रवाल भित्ति क्षेत्रों को महासागरों का उष्ण कटिबंधीय वर्षावन भी कहा जाता है। लेकिन अब प्रदूषण ने इन्हें भी नुकसान पहुंचाना आरंभ कर दिया है। समुद्री जल में उष्णता के परिणामस्वरूप शैवालों (सूक्ष्मजीवी वनस्पतियां) पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है। असल में यह शैवाल ही प्रवाल भित्तियों को भोजन तथा वर्ण प्रदान करते हैं। प्रदूषण के साथ ही गर्म होते महासागर विरंजन प्रक्रिया के कारक होंगे जो इन उच्च उत्पादकता वाले परितंत्रों को नष्ट कर देंगे। प्रशांत महासागर में वर्ष 1997 में अलनीनो के कारण बढ़ने वाली तापवृद्धि प्रवालों की मृत्यु का सबसे गंभीर कारण बनी है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी की करीब 10 प्रतिशत प्रवाल भित्तियों की मृत्यु हो चुकी है और 30 प्रतिशत गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं तथा 30 प्रतिशत का क्षरण हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग कोरल रीफ मॉनीटरिंग नेटवर्क (ऑस्ट्रेलिया)का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक सभी प्रवाल मित्तियों की मृत्यु हो जाएगी।
विस्थापित होतीं पादप प्रजातियां
हमारा वातावरण लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग अब एक मान्य तथ्य है जिसका प्रभाव जलवायु, हिमनदों एवं समुद्र तल के साथ ही पादप प्रजातियों पर भी देखा जा रहा है। फ्रांस और चिली के वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा पश्चिमी यूरोप में शीतोष्ण एवं भूमध्यसागरीय पर्वतीय वनों के पौधों पर किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि बढ़ते तापमान के कारण पादप प्रजातियां अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विस्थापित होने लगी हैं। अधिक ऊंचाई पर विस्थापन कर, बढ़ते तापमान से बचकर पौधे अपेक्षाकृत ठंडे परिवेश में पनप सकेंगे। शोधकर्ताओं के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग ने पादप प्रजातियों को उल्लेखनीय रूप से अधिक ऊंचाई की ओर विस्थापित कर दिया है।
विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों पर मंडराता खतरा
पृथ्वी की बदलती जलवायु का असर विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों पर दिखाई देने लगा है। उदारहण के लिए पश्चिम बंगाल का सुंदरवन क्षेत्र भारत के सबसे सघन और जैव विविधता वाले वन रहे हैं। मैंग्रोव वनों के कारण यहां एक विशेष पारिस्थितिकी तंत्र का अस्तित्व है लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के कारण मैंग्रोव वनों पर भी संकट की छाया मंडरा रही है। मैंग्रोव वनों में कमी के कारण सुंदरवन का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा जाएगा और यहां मिलने वाली अनोखी जैव विविधता भी संकट में पड़ जाएगी।
मानवीय गतिविधियों से कम होती जैव विविधता
आज पृथ्वी पर घटती जैव विविधता सभी के लिए चिंता का विषय है। ग्लोबल एंवायरनमेंट आउटलुकः एंवायरनमेंट फॉर डेवेलेपमेंट (जीईओ - 4 ) की रिपोर्ट के अनुसार प्रजातियों के छठे विलोपन की दर अभी जारी है। लेकिन इस बार यह मानवीय गतिविधियों की देन है। विलोपन की घटना के दौरान एक साथ असंख्य प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं। पिछली बार ऐसा विनाश 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। आज मानव की आवश्यकताएं बढ़ रही हैं। हमारी बढ़ती आवश्यकता का अर्थ, कृषि कार्य का बढ़ना है जिससे रसायनों (ऊर्वरक कीटनाशियों, पीकड़नाशियों आदि), जल एवं ऊर्जा की खपत अधिक हो रही है। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ ही पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण जैवविविधता में दिनोंदिन कमी आ रही है।
स्रोत:- प्रदूषण और बदलती आबोहवाः पृथ्वी पर मंडराता संकट, श्री जे.एस. कम्योत्रा, सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा प्रकाशित मुद्रण पर्यवेक्षण और डिजाइन : श्रीमती अनामिका सागर एवं सतीश कुमार
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