गुलाब (रोजा डेमासीना)
गुलाब विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय पुष्प है इसलिए इसे फूलों का राजा भी कहा जाता है। यह झाड़ीनुमा एक बहुवर्षीय पौधा है जो सुन्दर पुष्पों के लिए उगाया जाता है। इसके फल को हिप कहते हैं जो विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है। इसके फूल से जैम, जैली व मालाएं बनाई जाती हैं। गुलाब के फूलों से मुख्यरूप से इत्र निकाला जाता है तथा इसके लिए चेली गुलाब का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। गुलाब के 3-4 टन फूलों से लगभग 1 लीटर गुलाब का तेल प्राप्त किया जा सकता है। इत्र के अलावा गुलाबजल, गुलकंद, पंखुडी, गुल रोगन, शरबत इत्यादि उत्पाद गुलाब के फूलों से बनाये जाते हैं।
देश में सुगंधित गुलाब का उपयोग मुख्यत
माला, कट फ्लावर, गुलदस्ता, मंदिर व अन्य धार्मिक और शुभ अवसरों पर किया जाता है वहीं पर वर्तमान में सौन्दर्य प्रसाधनों की मांग बढ़ने के साथ गुलाब तेल का वार्षिक उत्पादन लगभग 18-20 टन है, जबकि इसकी मांग कई गुना अधिक है।
भारत में गुलाब का उत्पादन मुख्यरूप से हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दिल्ली, लखनऊ (उत्तर प्रदेश), पुणे, नासिक (महाराष्ट्र), बंगलौर (कर्नाटक), कोयम्बटूर (तमिलनाडु), पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों मुख्यतः कोलकाता में किया जाता है। राजस्थान में इसका उत्पादन मुख्य रूप से पुष्कर, हल्दीघाटी, श्रीगंगानगर व उदयपुर में किया जाता है। गुलाब की खेती काफी अधिक लाभदायक एवं सुगमता से की जा सकने वाली खेती है।
भूमि एवं जलवायु
गुलाब की खेती के लिए दोमट तथा अधिक कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी होनी चाहिए जिसका पीएच मान 6 से 7.5 तक हो। गुलाब की खेती के लिए अधिक सर्दी व अधिक गर्मी नहीं होनी चाहिए अर्थात दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का 12-14 डिग्री सेल्सियस अति उत्तम माना जाता है।
प्रजातियाँ -
- संकरः क्रिसयन, ग्लोरी, मिस्टर, लिंकन, लव, जान एफ कनेडी, जवाहर, मृणालिनी, प्रेसीडेन्ट, राधाकृष्णन, फर्स्ट लव, अपोलो, पूसा, सीनिया, गंगा, आक सेटनरी।
- पालीएथाः अजनी, रश्मि, नर्तकी, प्रति स्वामी ।
- फ्लोरीवडाः बंजारन, देहली, पिंसेज, डिम्बल, चन्द्रमा, सदावहार, सोनीरा, नीलाम्बरी, करिश्मा, सूर्यकिरण ।
- जैन्डीफ्लोरा : क्वीन एलिजाबेथ मान्टेजुमा ।
- मिनीयेचर: ब्यूटी सीक्रेट, रेडफ्लश, पुश्कला, बेबी गोल्ड स्टार, सिल्वर टिप्पस।
- विदेशी बाजार में प्रचलित गुलाब की किस्में : लाल फूल वाली किस्में: फर्स्ट रेड, ग्राण्डगाला, कैरामिया, ऐसकेड, रेफिला, बेरोक्स, बेन्डी, पेसन।
- गुलाबी रंग की किस्में: कीस, मेलाडी, सोनिया, विवाल्डी, पीस, एस्ट्रा, कोनकेटी ।
पौध तैयार करना
जंगली गुलाब के ऊपर 'टी' बडिंग द्वारा इसकी पौध तैयार की जाती है। जंगली गुलाब की कलम जून-जुलाई में क्यारियों में लगभग 15 सेंमी. की दूरी पर लगा दी जाती है, इनमें पत्तियां फूट आती है। नवम्बर दिसम्बर में चाकू की सहायता से फुटाव आई टहनियों पर से कांटे साफ कर दिये जाते हैं। जनवरी में अच्छी किस्म के गुलाब से टहनी लेकर 'टी' आकार की कलिका निकाल कर जंगली गुलाब के ऊपर लगाकर पोलीथिन से कसकर बांध देते हैं। तापमान के साथ इनमें फुटाव आ जाता है और जुलाई-अगस्त में पौध रोपने के लिए तैयार हो जाती है।
ले आउट तैयार करना
सुन्दरता की दृष्टि से औपचारिक ले आउट करके 5 गुणा 2 वर्ग मीटर क्यारियां तैयार की जाती है। दो क्यारियों के बीच में आधा मीटर का स्थान छोड़ना चाहिए ताकि कृषि क्रियाएं करने में बाधा न आए। क्यारियों को अप्रैल-मई महीने में एक मीटर की गहराई तक खोदें और 15-20 दिन तक खुला छोड़ दें। क्यारियों में 30 सेंमी. तक सूखी पत्तियां डालकर खोदी गई मिट्टी से क्यारियों को भर दें। इसके बाद क्यारियों को पानी से भर दें। दीमक से बचाने के लिए पेराथियान 2 प्रतिशत धूल या कार्बोफ्यूरान 3 जी का प्रयोग करें। लगभग 10-15 दिन बाद ओट आने पर इन्हीं क्यारियों में कतार बनाते हुए पौधे की दूरी 30 सेंमी व कतार की दूरी 60 सेंमी. रखी जाती है।
पौध रोपण
पौधशाला से सावधानी से पौध खोदकर उत्तर भारत के मैदानी भागों में सितम्बर-अक्टूबर में पौध की रोपाई करनी चाहिए। खोदे गये पिण्डी से लिपटी घास-फूंस हटा दें और ध्यान रखें कि कलिकायन वाला भाग रोपाई के समय भूमि की सतह से 15 सेंमी. ऊँचा रहे। पौध लगाने के बाद सिंचाई कर दें।
सिंचाई
गुलाब की खेती के लिए सिंचाई का उचित प्रबन्ध होना चाहिए और आवश्यकतानुसार गर्मी में 5-7 दिन और सर्दी में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
कटाई-छंटाई
कटाई-छंटाई के लिए मैदानी भागों में अक्टूबर महीने का दूसरा सप्ताह उपयुक्त रहता है, बशर्ते इस समय वर्षा न हो। पौधों में 3-5 मुख्य टहनियों को 30-45 सेंमी. लम्बी रखकर काट दिया जाता है। जहाँ पर काटा जाए वहाँ आँख बाहर की तरफ हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। काट-छांट तेज चाकू अथवा सिकेटियर से करनी चाहिए। कटे भाग पर कवकनाशी दवाइयों, कॉपर आक्सीक्लोराइड अथवा बोरडेक्स मिश्रण का लेप कर देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
गुलाब के पौधों के विकास के लिए सर्दियों के दिनों में 3-4 घंटे की धूप और रात्रि की ओस बहुत आवश्यक है। उत्तम कोटि का फूल लेने के लिए (काट-छांट के बाद) प्रति पौधा 10 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करनी चाहिए। गोबर की खाद के एक सप्ताह बाद पौधों में नई कोपलें फूटने लगे तब 200 ग्राम नीम की खली, 100 ग्राम हड्डी का चूरा तथा रासायनिक खाद का मिश्रण 50 ग्राम प्रति पौधा जिसमें यूरिया, सुपर फॉस्फेट तथा पोटेशियम सल्फेट 1:2:1 का अनुपात डाल दें।
फूलों की कटाई
सफेद, लाल, गुलाबी रंग के फूल अधखुली पंखुड़ियों में जब इसकी पंखुड़ी नीचे की ओर मुड़ना शुरू हो तब काटना ठीक रहता है। फूलों को काटते समय एक या दो पत्तियां रहने पर छोड़ देनी चाहिए जिससे पौधा वहाँ से पुनः बढ़वार कर सके।
बीमारियां
काला धब्बा
रोगग्रसित पत्तियों के दोनों सतह पर गोल काले धब्बे दिखाई देते हैं यह धब्बे धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं और पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती है। ग्रसित पौधों पर डाइथेन जेड-78 अथवा डाइथेन एम-45, 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी के साथ कटाई-छंटाई के बाद 15 दिन के अन्तराल 3-4 छिड़काव करें।
चूर्णी फफूंद
इस रोग में पत्तियों के किनारे जुड़ जाते हैं और पत्तियां, तना तथा कलियों पर सफेद व भूरे धब्बे बन जाते हैं। इस बीमारी में सफेद आटे के समान पाउडर तेजी से पत्तियों पर फैल जाता है। केराथिन 2-3 मिली./10 लीटर पानी का छिड़काव करें। बोरेडेक्स मिश्रण का छिड़काव करें।
रोयेंदार सूंड़ी
सूंडी का लार्वा पत्तियों, कोमल टहनियों को काट कर खा जाता है। लार्वा एकत्रित करके नष्ट कर दें। 0.05 प्रतिशत मिथाइल पेराथियान का छिड़काव करें।
गुलाब का स्केल
पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पौधा कमजोर होकर मर जाता है। 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करें।
सफेद मक्खी
यह कीट पत्तियों के निचले भाग पर पाया जाता है तथा तना, पत्तियों का रस चूसता है। पौधों की बढ़वार रुक जाती है। मिथाइल डाइमेथान 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस 0.04 प्रतिशत अथवा नीम का तेल 2.0 प्रतिशत का छिड़काव करें।
गुलाब का चेपा
निम्फ हजारों की संख्या में पत्तियों, तनों पर चिपक कर रस चूसते हैं। पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ जाती है। पौधा बीमार दिखने लगता है। 0.06 प्रतिशत रोगोर का छिड़काव करना चाहिए।
स्रोत- अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रभारी अधिकारी
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना "लवणग्रस्त मृदाओं का प्रबंध एवं खारे जल का कृषि में उपयोग" राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा-283105 (उत्तर प्रदेश)
ईमेल: aicrp.salinity@gmail.com
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