सिंचाई के पानी की कमी से जूझता मध्यप्रदेश आज उठाए कदमों पर निर्भर है कल का भविष्य

सिंचाई के पानी की कमी से जूझता मध्यप्रदेश
सिंचाई के पानी की कमी से जूझता मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश  में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज म चुका है, इसलिए दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में सिंचाई के पानी की कमी को एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। राज्य के कई क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान पीने के पानी की कमी के साथ-साथ किसानों को सिंचाई के लिए पानी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता है। हर घर में नल से पानी पहुंचाने के अभियान और कई सिंचाई परियोजनाओं के चलते राज्य में जल संकट अभी भी जारी है। प्रदेश के करीब 43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का पानी मिलने लगा है। इसके साथ ही कई लंबित परियोजनाएं अगले दो वर्षों में और 20 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा प्रदान कर सकती है। वर्तमान में छिंदवाड़ा नर्मदा में बन रहा सिंचाई परिसर, नर्मदा मालवा गंभीर लिंक परियोजना, दमोह-सागर की पंचम नगर सिंचाई परियोजना, रीवा-सतना की बहोटी परियोजना, बदनावर नर्मदा सूक्ष्म सिंचाई, चंबल क्षेत्र की मां रतनगढ़ बहुउद्देशीय परियोजना, बीना नदी पर प्रस्तावित हनोता सिंचाई परियोजना, राजगढ़ की कुंडलिया सिंचाई परियोजना और मोहनपुरा वृहद सिंचाई परियोजना लागू होने पर राज्य के सिंचित क्षेत्र में बड़ी वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि को अपनी बड़ी उपलब्धि बताया था। उन्होंने कहा था कि मप्र में वर्ष 2003 में सरकारी स्रोतों से सिंचित कुल क्षेत्रफल सात लाख हेक्टेयर था जो अब 43 लाख हेक्टेयर को पार कर गया है। इसके साथ ही सरकार ने अगले दो साल में इसे बढ़ाकर 63 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा है। दूसरी ओर सिंचाई पानी के संकट को लेकर कांग्रेस प्रदेश की भाजपा सरकार पर कई बार हमला बोल चुकी है। कांग्रेस नेताओं ने कई मौकों पर चौहान को घोषणा नायक कहा है और आरोप लगाया है कि वह जमीनी स्तर पर मुद्दों पर काम नहीं करते हैं। बुंदेलखंड के कांग्रेस नेता वीरेंद्र दवे लोगों के साथ चातचीत करने और स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी सहित अन्य मुद्दों पर बात करने के लिए साइकिल यात्रा शुरू करेंगे। दवे का कहना है कि दमोह जिले की पंचम नगर सिंचाई परियोजना किसानों को पानी उपलब्ध कराकर और बिजली पैदा कर कृषि में क्रांति ला सकती है। इस परियोजना के तहत बिना बिजली के खेतों तक पानी पहुंचेगा। दवे ने आरोप लगाया कि क्षेत्र की एक वाणिज्यिक सीमेंट कंपनी सहयोग नहीं कर रही है और परियोजना के पुरा होने में बाधा उत्पन्न कर रही है। दुनियाभर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी साथ ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है।

ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है। इस बारे में अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान और गर्म जलवायु के चलते भारत आने वाले दशकों में अपने भूजल का कहीं ज्यादा तेजी से दोहन कर सकता है। अनुमान है कि इसके चलते 2040 से 2080 के बीच भूजल में आती गिरावट की दर तीन गुणा बढ़ सकती है। इस रिसर्च के  नतीजे एक सितंबर 2023 को अंतर्राष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल का दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जो कि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। 

देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है। लेकिन जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, खेत तेजी से सूख रहे हैं। इसके साथ ही मिट्टी में नमी को सोखने की क्षमता भी घट रही है, जिसकी वजह से भारत में भूजल स्रोतों को रिचार्ज होने के लिए पर्याप्त जल नहीं मिल रहा है। नतीजन साल दर साल देश में भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। अनुमान है कि बढ़ते तापमान के साथ जल उपलब्धता में आने वाली इस गिरावट के चलते एक तिहाई लोगों की जीविका पर खतरा मंडराने लगेगा। इसके न केवल भारत में बल्कि वैश्चिक परिणाम भी सामने आएंगे। साथ ही इससे देश में खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो जाएगा। बता दें कि दुनिया भर में भूमिगत जल, साफ पानी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला स्रोत है। आंकड़ों की मानें तो वैश्विक स्तर पर करीब  200 करोड़ लोग, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों और सिंचाई के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं। रिसर्च के अनुसार दुनिया की 20 फीसदी आबादी इन भूजल स्रोतों द्वारा सिंचित फसलों का उपभोग कर रही है। हालांकि बढ़ती आबादी और उनकी जरूरतों के साथ इन भूजल स्रोतों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 2050 तक दुनिया के 79 फीसदी तक भूजल स्रोत खत्म हो जाएंगे।  

 स्रोत ; -नवंबर (प्रथम) 2023 पाक्षिक अक्स 19

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Post By: Shivendra
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