जंगल नामा

जंगल नामा
जंगल नामा

देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हो या फिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल हर जगह प्रदूषण बढ़ रहा  है।  इसकी सबसे बड़ी वजह है पेड़ों की अंधाधुंध कटाई। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, विश्व में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष अनुमानित 35,00,000 लोगों की मौतें हो जाती हैं, जिसमें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 2,37,000 से अधिक मौतें शामिल हैं। भारत में वायु प्रदूषण के कारण कुल 16.7 लाख लोगों की मौत हुई, जिसमें 9.8 लाख लोगों को मौतें पीएम- 2.5 प्रदूषण की वजह से हुई हैं। दुनिया भर में 15 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं घेर रही हैं वायु प्रदूषण से हर साल करीब 3.5 लाख बच्चे अस्थमा का शिकार बन रहे हैं। जिस तरह से विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, उससे धरती पर रहने वाले जीवों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। एक तरफ अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से घटते वन क्षेत्र, तो वहीं दूसरी तरफ विश्व में चल रही सत्ता की लड़ाई में इस्तेमाल किए जा रहे गोले, बारूद सहित खतरनाक हथियारों से न सिर्फ मानवीय त्रासदी, अपितु इससे पर्यावरण को भी बहुत आघात पहुंच रहा है।

दुनियाभर में किए गए मिसाइल, परमाणु परीक्षणों और सॅटेलाइट अभियानों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है और यह क्रम लगातार जारी है। जल, जंगल, जमीन पर जिस तरह से तबाही का आलम उससे आने वाले समय में विनाश तय माना जा रहा है। विकास की होड़ हो या परंपरा के नाम पर चली आ रही कुप्रवृत्तियां अगर ऐसे ही चलती रहीं, तो देश और समाज को एक न एक दिन नष्ट कर ही डालेंगी। भारत जैसे देश में धार्मिक कर्मकांड से अतिरिक्त कचरे से भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है। लोग भारी मात्रा में नदियों, तालाबों, झीलों और समुद्र में कूड़ा-करकट और उपयोग किया गया खराब सामान डालते हैं। केमिकल बहाते हैं, जिससे और प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली जैसे शहर में पढ़े-लिखे लोग भी सरकार की चेतावनी को दरकिनार करते हुए पूजा सामग्रियों को यमुना में फेंकते हैं। इस प्रकार देखा जाए, तो पूरे भारत में सैकड़ों टन इस्तेमाल कचरा हर रोज निकलता है, जिसे जमीन पर डाल दिया जाता है और पानी में बहा दिया जाता है। 

दुनिया में, विशेषतौर पर भारत में कई त्योहार भी प्रदूषण बढ़ाने का जरिया बन रहे हैं। नया साल, क्रिसमिस डे, दीपावली, क्रिकेट में जीत के जश्न और खुशियों के दौरान लोग अनाप-शनाप पटाखे फोड़ते हैं, आतिशबाजी करते हैं। यह सब प्रदूषणजनित इन चीजों पर रोक के बावजूद होता है। जब लोग पटाखे फोड़ते हैं, आतिशबाजी करते हैं, तब हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यानी सिर्फ वाहनों, कल-कारखानों और पराली जलाने से ही प्रदूषण नहीं बढ़ रहा, बल्कि खुशियों के अवसर भी प्रदूषण की समस्या को और भी ज्यादा गंभीर बना रहे हैं। किसने सोचा था कि एक दिन धार्मिक स्थलों में ताला लगाना पड़ेगा ? लेकिन हमने कोरोनाकाल में यह सब देख लिया। 

प्रदूषण से हो रही मौतों से पता चलता है कि यह कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है। पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक हलफनामे के मुताबिक, विकास कार्यों के लिए 2019 2020 और 2021 में 77,420 पेड़ों को काटने की मंजूरी दी गई। राजधानी में करीब 77,420 पेड़ काटे गए यानी तीन साल में हर घंटे तीन पेड़ काटे गए। इन पेड़ों को काटने के लिए बाकायदा वन विभाग की मंजूरी ली गई थी। चोरी-छिपे कितने पेड़ काटे गए, इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है।

सेंट्रल जियोलॉजिकल अथॉरिटी (सीजेडए) के मेंबर सेक्रेटरी रहे चिड़ियाघर के पूर्व डायरेक्टर डीएन सिंह ने दिल्ली सरकार के फॉरेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ विभाग से 18 सितंबर को शिकायत की थी और दो दर्जन काटे गए पेड़ों की तस्वीरें भी भेजी थी। डीएन सिंह के मुताबिक, किले के अंदर नहर के किनारे मथुरा रोड की तरफ काफी घना जंगल था, जो अब खाली मैदान में तब्दील हो गया है। उन्होंने सन् 2018 की एक तस्वीर भी दिखाई, जिसमें काफी बड़ी संख्या में पेड़ दिखाई दे रहे हैं। इसी तरह भैरो मार्ग की तरफ भी पेड़ और टहनियां काटी गई। इस तरह पुराने किले जैसे भीड़भाड़ वाली जगह से पेड़ काट दिए गए; लेकिन किसी को कोई खबर तक नहीं लगी। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह कुछ लोग पेड़ काट रहे हैं और बाकी लोग चुप्पी साधे हुए हैं। वन विभाग के अधिकारी दफ्तरों में क्या काम करते हैं? यह समझ से परे है। जबकि दिल्ली में बढ़ते गंभीर प्रदूषण के बावजूद भारी संख्या में पेड़ काटे गए। गली-मोहल्लों में लोग पेड़ों को लगाने के बजाय पेड़ों को काटने में सबसे आगे रहते हैं। लोग गाड़ियों को पार्क करने के लिए पेड़ों को ही कटवा डालते हैं। हरि नगर आश्रम में रेलवे ट्रैक के किनारे लगे कई पेड़ों को लोगों ने इसलिए कटवा दिया, जिससे आंधी में पेड़ों की डालियां उनकी गाड़ी पर न गिरें। दिल्ली में इस तरह चोरी-छिपे हर साल केयर टेकर को पैसे देकर कटाई-छटाई के नाम पर हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं, जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। 

कटते  पेड़, बढ़ता प्रदूषण

काफी कम अनुपात में लगाए जा रहे पेड़ विकास की अधी दौड़ में हर साल जिस तरह से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, उससे काफी कम अनुपात में पेड़ लगाए जा रहे है। जो पेड़ लगाए भी जा रहे है, वो देखभाल के अभाव में सूख जाते है मेट्रो विस्तार के लिए हजारों पेड़ काटे गए और हजारों पेड़ों को प्रत्यारोपित किया गया, लेकिन उचित देखभाल न होने की वजह से मात्र एक-तिहाई पेड़ ही बचे है। सरकार ने लाल किले के सामने ग्रीन कॉरिडोर बनाने के लिए पौधे लगाए, लेकिन पानी के अभाव में पौधे सूख गए। इसके बाद दोबारा पौधे लगाए गए। ऐसे में पौधों को जमीन या गमलों में लगा देना ही काफी नहीं, बल्कि उनकी देखभाल भी बहुत जरूरी है। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, दिल्ली का वनक्षेत्र सात प्रमुख बड़े शहरों में सबसे ज्यादा 194.02 वर्ग किलोमीटर है, जबकि प्रदूषण के मामले में यह नंबर वन है। वहीं 110.77 वर्ग किलोमीटर के साथ मुंबई दूसरे स्थान पर है और 89.02 वर्ग किलोमीटर के साथ-साथ बेंगलुरु तीसरे स्थान पर है। हालांकि सन् 1997 के बाद राजधानी दिल्ली के वन क्षेत्र में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है। सन् 2021 में वन क्षेत्र बढ़कर 342 वर्ग किलोमीटर हो गया। इससे कुल भौगोलिक क्षेत्र में वनों का हिस्सा भले ही बढ़कर 23.07 फीसदी हो गया। लेकिन जिस तरह से दिल्ली में प्रदूषण छाया रहता है, उससे तो यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।

स्रोत -  22 पाक्षिक अक्स , नवंबर (द्वितीय) 2023

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Post By: Shivendra
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