लवणीय जल सिंचाई द्वारा गैंदा (टेगेटस इरेक्टा) की खेती (Marigold (Tegatus erecta) cultivation by saline water irrigation)

गैंदा (टेगेटस इरेक्टा) की खेती
गैंदा (टेगेटस इरेक्टा) की खेती

गैंदा (टेगेटस इरेक्टा

गैंदा एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक मौसमी फूल है। इसकी सुन्दरता एवं टिकाऊपन के कारण पुष्प व्यापार में गुलाब के बाद सर्वाधिक बिकने वाला फूल है। इसके फूलों का विभिन्न रूपों जैसे माला, वेणी, झालर, घर की सजावट, पूजा, गुलदस्ता बनाने आदि में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। गैंदा एक आसानी से उगाया जा सकने वाला पौधा है और इस पर कीट एवं बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। इसकी खेती करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है। गेंदा के फूल पौधों पर लम्बे समय तक खिलते रहते हैं, साथ ही इसकी संग्रहण क्षमता अधिक होने के कारण आसानी से कुछ दिनों तक रखा जा सकता है। टमाटर, बैंगन, मिर्च आदि सब्जियां जिनमें सूत्रकृषि का प्रकोप अधिक होता है, गैंदे को मिश्रित खेती के रूप में लगाकर इसका नियंत्रण किया जा सकता है।

जलवायु

गेंदे को साल भर तीनों ही ऋतुओं में उगाया जा सकता है परन्तु पैदावार के लिए शीत ऋतु अधिक उपयुक्त है। पौधों में अच्छी बढ़वार व अधिक पुष्पन के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान पौधों की वृद्धि एवं पुष्पन को प्रभावित करता है। अधिक ठंड एवं पाला भी पौधों को नुकसान करता है तथा फूलों पर कालापन भी दिखाई देता है।

मृदा

गैंदा विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है परन्तु गहरी उपजाऊ व भुरभुरी मिट्टी जिसकी जल धारण क्षमता अधिक हो, इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। जिन भूमियों का पीएच मान 7.0 से 7.5 हो, में गेंदा उगाया जा सकता है। अधिक अम्लीय एवं क्षारीय भूमियों में गेंदे की वृद्धि एवं पुष्पन प्रभावित होता है।

उन्नत किस्में

बड़े फूलों वाली (अफ्रीकन गेंदा

क्राउन ऑफ गोल्ड (पीला), जाइन्ट सन सेट (नारंगी), स्पेन येलो (पीला), एपन गोल्ड, यलो फलकी, मेला स्टोन, गोल्डन एज, औरेन्ज हवाई किस्में व्यापारिक स्तर पर फूलों के लिए उगाई जाती है।

छोटे फूलों वाली

बटर स्कोच, रेड ब्राकेट, गोल्डी, रस्टी रेडा, लेमन जेम, लेमन ड्राप, रेड चेरी, येलो वाय, हनीकारब, स्कारलेट सोफिया क्वीन सोफिया इत्यादि।

संकर किस्में

बागवानी अनुसंधान संस्थान बैंगलोर में संकर किस्मों के विकास के लिए काफी अनुसंधान कार्य किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप कई किस्में विकसित हुई हैं। जैसे नगेट, टेड्रा सफ्ट रेड, पूसा नांरगी गैंदा, पूसा बसंती गैंदा, ब्यूटी गोल्ड, ब्यूटी ऑरेंज, ब्यूटी यलो, गोल्डन, डायमण्ड जुबली, फर्स्ट लेडी, रॉयल यलो आदि।

भारतीय किस्में

पूसा नारंगी, पूसा बसन्ती एवं पूसा अर्पिता ।

खाद एवं उर्वरक

खेत की अंतिम जुताई के समय 20-25 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद डालकर अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला देवें। खेत में क्यारियां बनाने से पहले 125-200 कि.ग्रा. यूरिया 400 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 100 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश को भूमि में मिला दें। इसके अलावा पौधों को खेत में रोपने के 35 से 40 दिन बाद 125 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हैक्टर खड़ी फसल में देकर हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

बुवाई का समय

शीतकालीन फसल लेने के लिए बीज की बुवाई सितम्बर-अक्टूबर माह में करते हैं। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में बीज बोया जाता है तथा वर्षाकालीन फसल के लिए बीज की बुवाई मई-जून में करते हैं। एक ऋतु में अधिक समय तक फूल लेने के लिए 15 दिन के अन्तराल से बुवाई करते हैं।

पौध तैयार करना

मुख्य रूप से गैंदे को बीज द्वारा ही उगाया जाता है। बीजों की पौधशाला में ऊँची उठी हुई क्यारियों में 4 से 6 सेंमी. की दूरी पर कतारों में बुवाई करते हैं। बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। एक हैक्टर की पौध तैयार करने के लिए 1.25 से 1.50 कि०ग्रा० नये बीज का उपयोग करना चाहिए ।

रोपाई

पौधशाला से स्वस्थ पौधों को सावधानी से निकाल कर सांयकाल के समय खेत में रोपाई करनी चाहिए। अफ्रीकन गेंदे की रोपाई कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेंमी. व पौधे से पौधे की दूरी 30-45 सेंमी. पर करते हैं। फ्रेंच गेंदे की रोपाई कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंमी. रखते हुए करें। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।

पौधों को सघन बनाना

गेंदे के पौधे जैसे ही खेत में जम जायें उनका ऊपरी भाग काटकर अलग कर देना चाहिए। इससे प्रचुर मात्रा में शाखाएं निकल आती है। इससे पौधों पर फूल अधिक मात्रा में बनते हैं।

सिंचाई

गर्मियों में प्रति सप्ताह एवं सर्दी में 12 से 15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते हैं।

निराई-गुड़ाई

अफ्रीकन गैंदे में निराई-गुड़ाई के समय पौधों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए ताकि पौधे गिर न सकें। खरपतवार को नहीं उगने देना चाहिए। 

कीट प्रबंधन

मोयला, सफेद मक्खी, हरा तेला (जैसिड) ये कीट पौधों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं से रस चूसकर कमजोर कर देते हैं। इससे उपज पर प्रभाव पड़ता है। नियंत्रण के लिए मिथाइल डिटोन 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथेएट 30 ई.सी. एक मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर दो-तीन बार छिड़काव करें।

प्रमुख बीमारियाँ

पाउडरी मिल्डयू

इस रोग में पत्तियों एवं पुष्प कलियों पर सफेद चूर्ण के धब्बे दिखाई देते हैं। नियंत्रण के लिए कैराथेन एल. सी. या कैलेक्सिन एक मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

उपज

पौध रोपाई के 60 से 75 दिन बाद फूल तोड़ने योग्य हो जाते हैं। औसत रूप से 2 से 2.5 माह तक फूल खिलते हैं। औसतन पैदावार 80 से 100 कुंटल तथा अफ्रीकन गैंदे से 180 से 200 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिलती है।

लवणीय जल सिंचाई के परिणाम

प्रक्षेत्र परीक्षण गेंदे की फसल पर कई वर्ष तक किया गया। इसमें दो उपचार पौधों की दूरी तथा चार उपचार लवणीय जल सिंचाई (अच्छा जल, 3, 6 एवं 9 डेसी. / मी.) प्रयोग में लाये गये।

पौधे से पौधे की दूरी का प्रभाव

गेंदा के वृद्धि कारक क्रमश

पौधे की उँचाई, पौधे का फैलाव (सेंमी.), मुख्य तने का व्यास (सेंमी.), प्राथमिक शाखाएं / पौधा, द्वितीयक शाखाएं / पौधा (तालिका 5 ) उपज कारक फूल लगने का समय (दिन), फूल का व्यास (सेंमी.) फूलों की संख्या / पौधा तथा उपज (कुंटल / हेक्टेयर) (तालिका 6), सार्थक रूप से अधिक 50 गुणा 50 सेंमी. दूरी और सबसे कम 50 गुणा 40 सेंमी. दूरी में पाये गये। तालिका 6 के परिणामों से ज्ञात होता है कि शुद्ध आय रुपये 50,120 / हैक्टर पौधे से पौधे की दूरी 50 गुणा 50 सेंमी. तथा सबसे कम रुपये 45,920 / हैक्टर दूरी 50 गुणा 40 सेंमी. से प्राप्त हुई।

तालिका 5:-  लवणीय जल एवं पौधों की दूरी का गेंदा के वृद्धि कारकों पर प्रभाव

लवणीय जल एवं पौधों की दूरी का गेंदा के वृद्धि कारकों पर प्रभाव
 

सिंचाई जल की लवणता का प्रभाव

तालिका 6 में दिये गये परिणामों से ज्ञात होता है कि उपरोक्त सभी वृद्धि कारक एवं उपज कारक सार्थक रूप से सबसे अधिक अच्छे जल द्वारा सिंचाई तथा सबसे कम वैद्युत चालकता 9 डेसी. / मीटर में पाये गये। तालिका से ज्ञात होता है कि अच्छे जल उपचार में गेंदे की फसल लेने पर सबसे अधिक शुद्ध आय रुपये 51,320 तथा सबसे कम रुपये 19,040 वैद्युत चालकता 9 डेसी. / मीटर में प्राप्त हुई । परिणामों के आधार पर कहा जा सकता है कि गेंदे की फसल को वैद्युत चालकता 9 डेसी. / मीटर तक सिंचाई करके उगाया जा सकता है।

तालिका 6- गैंदा की उपज एवं उपज कारकों पर लवणीय जल एवं पौधों की दूरी का प्रभाव
गैंदा की उपज एवं उपज कारकों पर लवणीय जल एवं पौधों की दूरी का प्रभाव

 

स्रोत-अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रभारी अधिकारी
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना "लवणग्रस्त मृदाओं का प्रबंध एवं खारे जल का कृषि में उपयोग" राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा-283105 ( उत्तर प्रदेश)
ईमेल: aicrp.salinity@gmail.com

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