विशेष संसदीय समिति : आर्द्रभूमि बचाने के लिए नागरिकों का खुफिया तंत्र तैयार करे सरकार

आर्द्रभूमि बचाने के लिए नागरिकों का खुफिया तंत्र तैयार करे सरकार
आर्द्रभूमि बचाने के लिए नागरिकों का खुफिया तंत्र तैयार करे सरकार

देशभर में अवैध कब्जे के शिकार होती जा रही आर्द्रभूमि की रक्षा के लिए संसद की विशेष समिति ने खुफिया तंत्र की मदद लेने की सिफारिश की है। समिति ने सिफारिश की है कि सरकार इस अवैध कब्जे से जमीन को बचाने के लिए नागरिकों का खुफिया तंत्र तैयार करे। इसके लिए इनाम योजना शुरू कर सकती है। समिति का मानना है कि यदि ये बदलाव नहीं किए जाते हैं तो इस भूमि का अवैध तरीके से प्रयोग किया जा सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नए नियमों के कारण यदि आर्द्रभूमि को बचाने के लिए नियमों में बदलाव की आवश्यकता है, तो नियम में संशोधन किए जाने चाहिए। अवैध कब्जे से जमीन को बचाने के लिए केंद्र सरकार की समिति ने इस रिपोर्ट को संसद के उच्च सदन में पेश किया गया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द समिति की सिफारिशों को लागू करने की दिशा में काम करे। इस समिति का गठन संसद  सदस्य लक्ष्मीकांत बाजपेयी की अध्यक्षता में किया गया था और समिति ने अपने 252 प्रतिवेदन में आर्द्रभूमि नियम 2017 के संबंध में दी हैं। समिति ने साफ कहा है कि अगर जल्द से जल्द नियमों में बदलाव नहीं होता है, तो इस समिति में सरकारी जमीन का दुरुपयोग बढ़ सकता है और नए नियमों के विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं।

समिति ने कहा कि इसके तहत दंडात्मक प्रावधान केवल संसद से ही लागू हो सकते हैं। इसलिए यदि राज्य के आर्द्रभूमि प्राधिकारियों द्वारा आर्द्रभूमि संरक्षा और निरंतर प्रबंधन और दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है, तो मंत्रालय पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत सिविल प्रावधानों में संशोधन करना चाहिए और ऐसे मामलों में कार्रवाई होनी चाहिए। इन मामलों में स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए और पर्याप्त जुर्माना लगाया जाना चाहिए। समिति का मानना है कि कई स्थानों पर धान के खेत विभिन्न कारणों के कारण बेकार पड़े रहते हैं उन्हें नियमों के तहत लाना चाहिए, इस श्रेणी में दस वर्ष पुराने खेतों को शामिल किया जाए।

समिति ने सिफारिश की है कि प्रवासी पक्षियों और जैव विविधता के अन्य रूपों के महत्त्व को देखते हुए प्राकृतिक नमक क्षेत्रों के नियमों के तहत सुरक्षा दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त 2010 के नियमों में जो नियम स्पष्ट रूप से उल्लेखित थे। इन्हें तय नियमों व प्रावधानों के तहत ही उल्लेखित किया जाना चाहिए। समिति ने नए नियमों में आर्द्रभूमि की परिभाषा से नमक क्षेत्रों को हटाने के कारणों पर भी असहमति जताई है। समिति ने संबंधित नियमों को धीमी प्रक्रिया से लागू किए जाने के मामले में चिंता जाहिर की है और मंत्रालय को कहा है कि यह नियमों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाए।

समिति ने यह भी कहा है कि अगर इन नियमों को लागू करने में किसी प्रकार की कोई तकनीकी परेशानी है, तो नियमों में संशोधन भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त किसी वरिष्ठ अधिकारी, पर्यावरणविद, शिक्षाविद की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर इस पर विस्तृत अध्ययन भी कर सकती है।

स्रोत:- जनसत्ता | 15 दिसंबर, 2023 |
 

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Post By: Shivendra
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