खतरे में हिल स्टेशन 

खतरे में हिल स्टेशन 
खतरे में हिल स्टेशन 

अनियंत्रित विकास, वनों के कटान और बदलते पारिस्थितकी तंत्र का भयावह रूप हमें अभी हिमाचल में देखने को मिला। हिमाचल ने 40 वर्षों में जो विकास किया था वह एक झटके से तहस-नहस हो गया। जोशीमठ शहर में पड़ी दरारों के बाजवूद विकास के पैमानों को लेकर पूरे देश में कहीं किसी प्रकार की बहस नहीं हो रही है। हिमाचल में आई तबाही की खबरों के मुकाबले उत्तराखंड के नैनीताल में ढहे घरों की खबर को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली, लेकिन इस घटना ने नैनीताल में रह रहे लोगों को बेहद डरा दिया। 23 सितंबर 2023 को नैनीताल के मल्ली ताल स्थित चार्टन लॉज क्षेत्र में एक दोमंजिला मकान भरभराकर ढह गया था। इस मकान की चपेट में आने से तीन अन्य घर भी दब गए थे। हालाकि समय रहते घर खाली करा दिए गए थे, जिस वजह से जानमाल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इन घरों के ढहने के बाद प्रशासन ने एहतियात के तौर पर अगले दिन आसपास के 24 घरों को खाली करा दिया और घरों के बाहर लाल निशान लगा दिए। यह इलाका शेर का डांडा रिज में स्थित आल्मा पहाड़ी पर बसा हुआ है, जिसे भूस्खलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है। नैनी झील के ऊपर बायीं ओर की खड़ी पहाड़ी पर लगभग 10 हजार लोग रह रहे हैं। 

अंग्रेजों के शासनकाल में साल 1880 में इसी पहाड़ी में भारी भूस्खलन हुआ था, जिसमें 151 लोग मारे गए थे। इसमें 43 अंग्रेज अधिकारी भी शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने इस पहाड़ी पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। बावजूद इसके अब तक यहां निर्माण हो रहे हैं। लगभग 10 हजार लोग यहां मकान बनाकर रह रहे हैं। 1880 के इस हादसे के बाद नैनीताल में 79 किलोमीटर का एक बड़ा ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था जो विश्व धरोहर है। इसी ड्रेनेज की वजह से नैनीताल स्थिर रहा है। जब यह बनाया गया था तो उसमें स्थानीय भू-गर्भीय स्थितियों का ख्याल रखा गया था, हालांकि अब नई इंजीनियरिंग इसका बिल्कुल ख्याल नहीं रख रही। चिंताजनक यह है कि ड्रेनेज सिस्टम के ऊपर भी मकान बनाए जा चुके हैं। ड्रेनेज सिस्टम में गंदे पानी और मलबे को फेंक दिया जाता है, जो उसे बाधित कर रहा है।

नैनीताल को भी हिमालयी राज्यों के पहाड़ी शहरों की तरह एक अदद वहन क्षमता (कैरिंग केपेसिटी) सर्वेक्षण और भवन उपनियमों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 2011 जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक इस शहर की आबादी 40 हजार थी जो इस वक्त करीब 80 हजार पहुंच चुकी है। इसके अलावा करीब 20 हजार गैर-पंजीकृत आबादी है। इस स्थानीय आबादी के अलावा हर हफ्ते करीब 80 हजार लोग नैनीताल पर्यटन के लिए आते हैं। कैरिंग कैपेसिटी में पानी की उपलब्धता एक अहम बिंदु है। 2011 में करीब 30 हज़ार की जनसंख्या पर रोजाना 70 लाख लीटर पानी उपलब्ध था।

 मांग और आपूर्ति में करीब 50 फीसदी की कमी थी। दबाव का अंदाजा इससे भी लगता है कि 2017 में अत्यंत दोहन के कारण नैनीताल झील का पानी 18 फीट नीचे चला गया था। संसाधनों के अलावा अवैध निर्माण भी नैनीताल के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी शहरों में अवैध निर्माण बढ़े। इसमें नैनीताल भी शामिल है। 2016 में नैनीताल पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन स्थानों पर निर्माण प्रतिबंधित है, वहां 10 वर्षों (2005 से 2015) में निर्मित क्षेत्र में लगभग 50 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि अन्य हिस्सों में निर्मित क्षेत्र में 34 फीसदी ही वृद्धि हुई। 

हर साल यहां आने वाले लाखों पर्यटकों की सुविधाएं देने के लिए निर्माण में लगातार वृद्धि हो रही है, जो शहर के लिए खतरनाक साबित हो रही है। नैनीताल का बलिया नाला क्षेत्र हो या फिर नैना पीक या भुजा टिफन टॉप पहाड़ी या फिर स्नो व्यू की रमणीक पहाड़ी, लगभग सभी जगहें भूस्खलन की जद में आ चुकी हैं। यहां साल दो साल में भूस्खलन का दायरा बढ़ता जा रहा है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड का नैनीताल शहर सुरम्य नैनी झील के आसपास बसा हुआ है। नैनीताल की खोज अंग्रेजों ने 1839 में की थी। 1842 में यहां 12 बंगले बनाने का ठेका दे दिया। इसके बाद से यहां निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया। गजेटियर के मुताबिक मार्च 1901 में की गई जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 7,609 थी। 

उत्तराखंड आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की एक रिपोर्ट बताती है कि 2005 में नैनी झील के आसपास का बिल्ट अप (निर्मित क्षेत्र) 6.3 लाख वर्ग मीटर था, जो 2010 में लगभग 33.88 प्रतिशत बढ़ गया। झील के आसपास कंक्रीट के निर्माण बढ़ने से न केवल झील के रिचार्ज और पानी की गुणवत्ता प्रभावित हुई, बल्कि इसके चलते पानी का ओवरफ्लो बढ़ा है। दरअसल नैनीताल की भौगोलिक स्थिति को लेकर भूवैज्ञानिक हमेशा से चेताते रहे हैं। नैनीताल के आसपास पर्यावरणीय अस्थिरता का मुद्दा विभिन्न नागरिक समूहों और व्यक्तियों ने सर्वोच्च न्यायालय और उत्तराखंड उच्च न्यायालय में उठाया। अदालतों ने झील के चारों ओर कमजोर ढलानों पर निर्माण गतिविधियां न करने की सलाह दी। इसके बावजूद जिन क्षेत्रों में निर्माण प्रतिबंधित है, वहां भी निर्मित क्षेत्र बढ़ गया।

नैनीताल झील विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण ने 1992 में नैनीताल में निर्माण गतिविधियों को और अधिक प्रतिबंधित करने के लिए भवन उपनियमों को संशोधित किया और शहर के 1.64 वर्ग किमी क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन नियम कानून कुछ काम नहीं आए। जहां एक ओर कैरिंग केपेसिटी की बात हो रही है वहीं दूसरी ओर शहर में बहुमंजिला पार्किंग बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। जबकि पूरे शहर में एक ही सड़क है, जिसे मॉल रोड कहते हैं। उसका एक हिस्सा भी कुछ वर्ष पूर्व भारी बरसात में दबकर नैनी झील में डूब गया था। हम इतिहास से सीख लेने के लिए मानसिक रूप से कतई तैयार नहीं है। हिमाचल की तबाही देखकर भी हम अभी तक नहीं जागे हैं। यह मसला नैनीताल का नहीं है बल्कि सभी हिल स्टेशनों का है। आखिर कब तक पर्यावरणीय अनदेखी करते हुए विकास कार्यों को अनियंत्रित रूप अंजाम दिया जाता रहेगा।

संपादक:- कुंवराज (कुँवर राज अस्थाना)

स्रोत:- विज्ञान संप्रेषण, वर्ष: 03 अंक: 03,नवंबर 2023,ISSN: 2583-6064

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Post By: Shivendra
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