Kesar Singh

विश्व कछुआ दिवस : चंबलघाटी की पांच नदियों में मिल रहा है दुर्लभ कछुओं को 'जीवनदान'
भले ही कछुओं की तस्करी हर ओर होती हो लेकिन अर्से तक कुख्यात डाकुओं के आतंक से जूझती रही चंबल घाटी की पांच नदियों में हजारों सालों से प्राकृतिक रूप से दुर्लभ प्रजाति के कछुओं को जीवनदान मिल रहा है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
राजीव चौहान दुर्लभ प्रजाती के कछुए के साथ
जल में जन भागीदारी जरूरी
कुछ ही वर्षों में देश के अनेक शहरों में जल की उपलब्धता जरूरत के अनुसार संभव ही नहीं रहेगी। इसलिए जल का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है। हम यह कहते नहीं थकते कि जल ही जीवन है, लेकिन इसके संरक्षण के पारंपरिक उपायों को हमने त्याग दिया है जबकि ये बेहद सरल और सहज थे। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
जल में जन भागीदारी
खगड़िया के अलौली की प्रमिला ने जैविक खाद बनाकर धरती-घरती दोनों साधा
जीविका द्वारा महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने की बाद ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में जागृति आयी है। गांव के स्तर पर महिलाएं नये-नये काम करके आर्थिक रूप से सबल हो रही हैं। महिलाओं के बनाये गये इन समूहों में से कई समूह वर्मी कंपोस्ट बनाने काम कर रहे हैं। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
वर्मी कंपोस्ट
सोलन के बद्दी में डाबर ने तालाब का किया पुनरुद्धार
बद्दी, सोलन में स्थित डाबर इंडिया की इकाई ने 2030 तक वाटर पॉजिटिव होने के अपने मिशन के अंतर्गत धर्मपुर गांव में एक तालाब के पुनर्जीवन की योजना की और पूरा किया। इस पुनर्जीवन अभियान से थाना पंचायत के 350 से अधिक परिवारों को लाभ होगा। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
सोलन के बद्दी में डाबर ने तालाब का किया पुनरुद्धार
बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर कर रहे खेती
संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2019 के बीच भारत की कुल रिपोर्टेड जमीन की 30.51 करोड़ हेक्टेयर भूमि की गुणवत्ता गिरी, बंजर हुई है। इसका मतलब है कि 2019 में देश की कुल जमीन का 9.45% गुणवत्ता गिर चुका था, जो 2015 में केवल 4.42% था। यह जानकारी यूएनसीसीडी द्वारा जारी की गई है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
बड़ी मात्रा में कृषि भूमि की गुणवत्ता गिरी या बंजर हुई हैं
देश भर के जलाशयों के भंडार खाली, खतरे में खेती
नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय जल आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़े भारत में जल संकट की बढ़ती गंभीरता को प्रकट करते हैं। इन आंकड़ों से देश के जलाशयों के स्तर में हुई खतरनाक कमी का पता चलता है। 25 अप्रैल 2024 तक, भारत के प्रमुख जलाशयों में जल की मात्रा में उनकी कुल भंडारण क्षमता के मुकाबले लगभग 30-35 प्रतिशत की कमी आई है।


Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
जलाशयों के जलभंडारों में उल्लेखनीय कमी
जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष 2100 तक तापमान में 1.4 से 5.8°C तक की वृद्धि के साथ समुद्र के स्तरों में 18-59 से.मी. तक की वृद्धि की संभावना है जिसके चलते तटवर्ती क्षेत्रों में जल प्लावन के कारण वर्ष 2050 तक 200 मिलियन लोग अपनी जगह से अलग हो जाएंगे। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
सूखी ही बहने को मजबूर नदियाँ
दुनिया में ज्यादातर नदियां अपने तटवर्ती क्षेत्रों के लिए जीवनदायिनी रही हैं। यह भी कटु सत्य है कि सभ्यताओं का विकास ही नदियों के विलोपन का कारण भी बन रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में आज नदियों का अस्तित्व खतरे में है। अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह का कारण, नदी से मिलने वाली रेत व जलराशि है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
नदियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह
पर्यावरण-प्रबन्धन और प्रकृति-संरक्षण: एक वैदिक दृष्टिकोण
अथर्ववेद के ‘पृथ्वीसूक्त’ में पृथ्वी को माता और हमें इसके पुत्र कहा गया है। यह सूक्त प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का आह्वान करता है और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को दर्शाता है। रवीन्द्र कुमार जी का लेख हमारे आदिग्रन्थों में पर्यावरण संबंधी मान्यताओं को दर्शाता है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
प्रकृति-संरक्षण पर वैदिक दृष्टिकोण
जलवायु परिवर्तन से धार से दिल्ली तक तपन, सेहत पर हो रहा बुरा असर
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने अप्रैल में एशिया में हीट वेव की तीव्रता को बहुत बढ़ा दिया है। इस दौरान दर्ज किए गए उच्चतम तापमान ने लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। मानव-जनित गतिविधियों के कारण जलवायु में आए बदलाव ने इन गर्मी की लहरों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
पूरे एशिया में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) का महत्व क्या है? और भारत में पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो प्रस्तावित परियोजनाओं, नीतियों या कार्यक्रमों को लागू करने से पहले उनके संभावित पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किसी परियोजना के संभावित प्रतिकूल प्रभावों की पहचान करना और उनका आकलन करना है, साथ ही इन प्रभावों को कम करने या कम करने के उपायों का प्रस्ताव करना है Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा। हाल फिलहाल के दो अध्ययन हमारे लिए खतरे का संकेत दे रहे हैं। एक अध्ययन पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के आवृत्ति और तीब्रता बढ़ने की बात कर रहा है। तो दूसरा भूजल का अत्यधिक दोहन से दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंसने की संभावना की बात कर रहा है। दोनों अध्ययनों को जोड़ कर अगर पढ़ा जाए तस्वीर का एक नया पहलू सामने आता है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
भूजल का अत्यधिक दोहन
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 2)
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ रहा है। पहले से ही खाद्य व आवास की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बदलती जलवायु व इसका प्रभाव त्रासदी पूर्ण है। वैसे समाजशास्त्रियों की मानें तो गरीबी अपने आप बीमारियों का समुच्चय है। जलवायु परिवर्तन बहुत सारी बीमारियों के होने की प्रक्रिया को बहुत भयानक कर देगा। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 1)
जलवायु परिवर्तन से मिट्टी पर पड़े प्रभाव का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि होती है और वाष्पीकरण का संतुलन खराब हो जाता है व हमारी मिट्टी की आर्द्रता असंतुलित हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप हमें सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही तो मिट्टी मरुस्थल में तब्दील हो जाती है। मिट्टी एक समय ऊसर व बंजर हो जाती है। अर्थात हमारे पास भोज्य पदार्थ के उत्पादन के लिए पर्याप्त उर्वर भूमि नहीं बचेगी और हमें भूख व कुपोषण की चपेट में आकर अपनी जान गंवानी पड़ेगी। हालांकि यह स्थिति अभी भी बनी हुई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसका स्वरूप और विकराल हो सकता है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
गोमती नदी के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास
गोमती का जन्म हिमालय की तलहटी में जनपद पीलीभीत से 30 किमी पूर्व तथा पूरनपुर (पुराणपुर) से 12 किमी उत्तर में माधोटांडा के निकट फुलहर झील (गोमत ताल) से हुआ। गोमती 660 किमी की यात्रा में 14 जिले पीलीभीत, शाहजहाँपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाजीपुर के 22735 वर्ग किमी जल ग्रहण क्षेत्र के वर्शा जल को संजोकर मार्केण्डेश्वर तपस्थली के पास कैची घाट, वाराणसी में गंगा मैया की गोद में समा जाती है। गोमती पहाड़ों से नहीं, गौरूपी धरती की कोख (भूगर्भ जल) से जन्मी नदी है, इसलिए गोमती कहलाती है। इसके प्राण भूजल स्रोतों में निहित हैं। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
गोमती (प्रतिकात्मक तस्वीर)
जयपुर, लापोड़िया : पानी ने बदली 70 गांवों की कहानी
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 80 किलोमीटर दूर स्थित लापोड़िया गांव के रहने वाले किसान लक्ष्मण सिंह देश में ग्रामोदय के रोल मॉडल हैं। दुनिया को इजराइल कम पानी में खेती की तकनीक सिखाता है, लेकिन लक्ष्मण सिंह इजराइल को खेती और पानी बचाने की टेक्निक सिखाते हैं। लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री देकर 'निष्काम कर्म' का मान ऊंचा किया गया है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
लापोड़िया की एक प्रतिकात्मक तस्वीर
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
बढ़ते तापमान और मौसम में बदलाव से गर्मी की लहरों और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है, जिससे बीमारी, चोट और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही जलवायु-संवेदनशील रोगजनकों के फैलाव में बदलाव आता है, जिससे डेंगू और डायरिया जैसी बीमारियाँ कुछ क्षेत्रों में अधिक आम हो सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से फसलों की पैदावार में कमी, खाद्य कीमतों में वृद्धि, खाद्य असुरक्षा और अल्पपोषण का खतरा बढ़ता है। इससे जल सुरक्षा भी प्रभावित होती है। ये परिवर्तन गरीबी, मानव प्रवास, हिंसक संघर्ष और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकते हैं। Rising temperatures and climate change are increasing the frequency and intensity of heat waves and extreme weather events, increasing the risk of disease, injury, and death. It also changes the spread of climate-sensitive pathogens, which could cause diseases like dengue and diarrhea to become more common in some areas. Climate change increases the risk of reduced crop yields, increased food prices, food insecurity and undernutrition. This also affects water security. These changes may increase poverty, human migration, violent conflict, and mental health problems. Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
कार्बन डाईऑक्साइड रिकार्ड हाई से बाढ़-सूखे का खतरा
पृथ्वी को गर्म करने में कार्बन डाई ऑक्साइड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वायुमंडल में इस गैस के स्तर में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। कार्बन की खतरनाक बढ़त ने मौसम की एक्सट्रीम कंडीशन को बढ़ाया है यानी बाढ़-सूखे का खतरा बहुत बढ़ गया है। 




Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
कार्बन डाईऑक्साइड रिकार्ड स्तर पर
दुबई में बाढ़ क्यों
Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
फ्लैश फ्लड
नदियों के पुनरुद्धार का प्रकल्प 'गोमती गौरव अभियान' का संकल्प
लखनऊ गोमती नदी के किनारे पर बसा है। उत्तर प्रदेश मे गोमती नदी पीलीभीत से प्रारम्भ होकर गाजीपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। गोमती नदी में जल गंगा-यमुना आदि की तरह किसी पहाड में बर्फ के पिघलने से नहीं आता है बल्कि तमाम सहायक नदियों और नालों का जल गोमती में गिरता है और नदी में शामिल होकर बडा आकार ले लेता है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
गोमती संरक्षण अभियान,Pc-लोक सम्मान 
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