भले ही कछुओं की तस्करी हर ओर होती हो लेकिन अर्से तक कुख्यात डाकुओं के आतंक से जूझती रही चंबल घाटी की पांच नदियों में हजारों सालों से प्राकृतिक रूप से दुर्लभ प्रजाति के कछुओं को जीवनदान मिल रहा है।
करीब तीन दशक से पर्यावरणीय दिशा में सक्रिय सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ.राजीव चौहान चंबल घाटी में टर्टलमैन की भूमिका निभा रहे है। विश्व कछुआ दिवस की पूर्व संध्या पर सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि दुनिया के एकमात्र पांच नदियों के संगम के रूप में लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के इटावा का कछुओं के प्राकृतिक रूप से संरक्षण में अहम स्थान माना जा सकता है।
असल में देश की सबसे सबसे स्वच्छ नदी के नाम से जाने जाने वाली चंबल, एवं अन्य चार नदिया यमुना, क्वारी, सिंन्ध और पहुज प्रवाहित होती है। इन पांचो नदियों में प्राकृतिक रूप से खासी तादात में दुर्लभ प्रजाति के कछुओ का संरक्षण होता है। अगर चंबल नदी की बात करे तो सबसे अधिक संख्या में इसी नदी में कछुओ का संरक्षण होता है उसके बाद यमुना नदी और सिंधु,क्वारी ओर पहुज़ नदियों का नाम आता है।
नदियों के सफाईकर्मी की भूमिका निभा रहे कछुओ को लेकर विभिन्न स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से संरक्षण की प्रक्रियाएं अपनाई जाती है लेकिन कभी कभी इनके शिकार की भी बाते सामने आती रहती है।
इटावा की इन पांच नदियों में दस प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं जिनमें बटागुर कछगा , कछुगा ढगोका, निलसोनिया गंगेटिकस, निलसोनिया हुरम, पंसुरा टेक्टा, लिसिमिस पकटाटा एवं चित्रा इंडिका संकटग्रस्त घोषित किए गए हैं। इनमें सबसे अहम बटागुर कछुगा प्रजाति का कछुआ माना जाता है जो विश्व की 25 अति संकटग्रस्त प्रजातियों में दर्ज है।
डॉ.चौहान ने बताया यह बात सही है कि हजारों सालों से चंबल घाटी की इन नदियों में सफाई कर्मियों की भूमिका निभा रहे दुर्लभ प्रजाति के कछुओं को प्राकृतिक रूप से संरक्षण मिल रहा है लेकिन इनकी अवैध शिकार के कारण भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत इन्हें संरक्षित प्रजाति का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1978 मैं चंबल नदी को सेंचुरी घोषित कर दिया गया है इसके बाद से इस इलाके में दुर्लभ प्रजाति के कछुओं समेत अन्य जलचरों का शिकार पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
टर्टलमैन की भूमिका निभा रहे डॉ राजीव चौहान बताते हैं कि उनके स्तर पर पिछले तीन दशक में करीब तीस हजार के आसपास दुर्लभ कछुओ का रेस्क्यू वन तथा पुलिस विभाग के सहयोग से किया जा चुका है, विभिन्न स्थानों से रेस्क्यू किए गए दुर्लभ प्रजाति के कछुओं को उनके प्रकृतिवास में छोड़कर उनको नया जीवन दिया गया है।
चौहान बताते है कि उनकी संस्था पुलिस और नदियों के आसपास वास करने वाले जागरूक लोगो की मदद लेकर दुर्लभ प्रजाति के कछुओ की संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है लेकिन इसके बावजूद भी तस्कर कछुओ को पकड़ कर के उनकी तस्करी करने में कामयाब हो जाते हैं। यह बड़ी ही चिंता का विषय माना जाता है।
नदियों के अलावा इटावा में पाए जाने वाले तमाम छोटे बड़े तालाब और पोखर आदि में भी विभिन्न प्रकार के कछुये पाए जाते है जिनको तस्कर समय-समय पर पकड़ करके तस्करी के लिए दूरस्थ ले जाने में कामयाब होते रहते हैं।
वैसे तो तस्करी के लिए कछुओं को पकड़ करके ले जाने के कईयों मामले सामने आए है लेकिन सबसे बड़ा मामला साल 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान का बताया जाता है जब दो ट्रकों करीब 11000 हजार कछुओं को पकड़ा जाना सबसे बड़ी कार्यवाही माना जाता है।
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