खगड़िया के अलौली की प्रमिला ने जैविक खाद बनाकर धरती-घरती दोनों साधा

वर्मी कंपोस्ट
वर्मी कंपोस्ट

वर्मी कंपोस्ट का काम कैसे शुरू किया? यह पूछने पर गांव की महिला प्रमिला बताती है कि पहले वह खेती-किसानी करती थी। श्री विधि तकनीक से। उससे फसल की अच्छी उपज मिलती थी। इस विधि से खेती करने से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तब कुछ और अलग करने का मन किया। उन दिनों गांव में जीविका के द्वारा महिलाओं को प्रोत्साहित करने की बात चल रही थी। महिलाओं को बताया जा रहा था कि वह कम पैसे में मेहनत कर के ज्यादा से ज्यादा आय का स्रोत कैसे बना सकती हैं। इसमें महिलाओं के काम करने लायक कई तरह की बातों को बताया जा रहा था। मेरे जैसी कई और महिलाओं से भी यह पूछा गया कि वह क्या करना चाहती हैं? जीविका के द्वारा ही वर्मी खरीदा। एक किट का मूल्य 250 रुपया था। मैंने 1750 रुपये में तीन किट खरीदा। किट 2 मीटर लंबा और एक मीटर चौड़ा है। किट खरीदने के बाद केंचुआ खरीदने की बात सामने आई। इसके लिए हमें बताया गया कि दलसिंहसराय से केंचुआ लाया जाता है। मैंने भी वही से केंचुआ को खरीदा। बाकी की कहानी तो मेरी मेहनत खुद बता रही है।

होती है अच्छी आय

वर्मी कंपोस्ट से कितनी आय हो जाती है? इसके बारे में उनका कहना है कि ठीक-ठाक आय हो जाती है। एक किट से एक बार में 20 क्विंटल के करीब वर्मी कंपोस्ट प्राप्त होता है। 3 किट तो मैंने पहले ही खरीदा था, बाद में एक किट और लिया। इन चार किटों से मुझे एक बार में 80 क्विंटल के करीब वर्मी कंपोस्ट प्राप्त होता है। गांव में इसकी बिक्री 6 रुपये प्रति किलो के दर से होती है जबकि दूसरे ग्राम संगठन में यह 8 से 10 रुपया प्रति किलो की दर से बिकता है। गांव में भी इस खाद की बिक्री अच्छी खासी हो जाती है। वह बताती हैं कि रासायनिक खाद का प्रयोग अब कम हो रहा है। इस खाद के प्रयोग करने से अच्छी फसल प्राप्त होती है।

प्रमिला देवी बताती हैं कि वह जिस ग्रुप से जुड़ी हैं। उसमें से कई महिलाएं इस जैविक खाद को बना कर पर्याप्त मात्र में आय प्राप्त कर रही हैं। प्रमिला देवी के समूह में जितनी औरतें हैं। सबकी जिम्मेदारी बंधी हुई है।

आपूर्ति का जिम्मा भी महिलाओं के ही पास

जैविक खाद बनाने के बाद इसे बिक्री के लिए बाजार में उपलब्ध कराने का जिम्मा भी इन महिलाओं के ही पास है। बिक्री के बारे में इनका कहना है कि महिलाओं के द्वारा बनायी गयी खाद को बेचने में कोई खास परेशानी नहीं होती हैं। बनाये गये जैविक खाद में ज्यादातर की बिक्री ग्रामीण संगठन में ही हो जाती है। ग्राम संगठन भी इनकी मदद करता हैं। वह इनसे उचित मूल्य पर जैविक खाद खरीद लेता है। इसके बाद वह संगठन दूसरे संगठन को बेच देता है। समय-समय पर जीविका का भी निर्देश मिलता रहता है। उसके निर्देश पर भी इस जैविक खाद को बेचा जाता है। ऑर्डर लेने से लेकर जैविक खाद की आपूर्ति सब महिलाओं के ही हाथ में होता है।

बड़े स्तर पर होता है जैविक खाद बनाने का काम

जीविका के द्वारा आर्थिक प्रगति की जो राह इन महिलाओं को दिखाई गयी है। उसका व्यापक परिणाम देखने को मिल रहा है। इन महिलाओं के द्वारा जैविक खाद के बनाने के बाद इलाके की और भी महिलाएं बड़े स्तर पर जैविक खाद बनाने में अपनी रुचि दिखा रही हैं।

केंचुआ लाने से लेकर जैविक खाद बनाना, सब काम महिलाओं ने संभाला

महज चार साल पहले शुरू किये गये इस काम को लेकर महिलाओं के अंदर बहुत जिज्ञासा है। प्रमिला इसके बारे में विस्तार से बताते हुए कहती हैं कि केंचुआ लाना हो या वर्मी कंपोस्ट को बनाने की प्रक्रिया। सब काम महिलाओं के हवाले रहता है। जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया के बारे में वह बताती है कि सबसे पहले किट को बनाया जाता है। इसके बाद उसमें मिट्टी को डाल कर उसे अच्छी तरह से दबा दबा कर बैठाया और मजबूत किया जाता है ताकि केंचुआ उसके अंदर प्रवेश न कर सकें। इसके बाद उसमें हरा पत्ता, गोबर, मिट्टी आदि डाल कर खाद बनाने के लिए उसमें केंचुआ छोड़ दिया जाता है। लगभग 2 से ढ़ाई महीने के बाद में जैविक खाद प्राप्त हो जाता है। इस काम में पुरुषों से कितना सहयोग मिलता है? यह पूछने पर वह कहती है कि इस काम में पुरुष का सहयोग सीमित रहता है। कीट बनाने से लेकर केंचुआ लाने तक में वह कभी-कभी तो हाथ बंटा देते हैं लेकिन जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया में वह सहयोग नहीं करते हैं।

अपने काम से संतुष्ट है प्रमिला देवी

जैविक खाद बनाने के अपने इस काम को कर के प्रमिला देवी आज बहुत खुश है। वह कहती हैं कि श्री विधि से खेती करने के बाद उनको फायदा तो हुआ ही था। जैविक खाद बनाने के बाद आर्थिक हालात में और सुधार आया है। वह कहती हैं कि दूध बेचने से ज्यादा फायदेमंद है जैविक खाद का उत्पादन और उसकी बिक्री। अपने इस काम से संतुष्ट प्रमिला देवी कहती हैं कि आज इसी खाद के बिक्री के दम पर मेरा बेटा उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है। इतने छोटे स्तर पर काम किया तो इतना लाभ हुआ। अब मैं इसे और बड़े स्तर पर करूंगी ताकि मुझे और लाभ मिल सके।

संपर्क - जैविक खाद उत्पादन संघ ग्राम- अलौली, पोस्ट-अलौली, जिला-खगड़िया (बिहार)

स्रोत  - मिशन मेरा देश, वर्ष 1, अंक 2, मई 2024

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Post By: Kesar Singh
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