![सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2024-05/Impact%20of%20climate%20change%20on%20public%20health.jpg?itok=p8thr_eY)
पिछले कुछ दशकों में यह स्पष्ट हो गया है कि मानवीय बुनियादी ढांचे में बदलाव हो रहा है, जिससे वैश्विक जलवायु परिर्वतन हो रहा है। भारत एक बड़ा विकसित देश है जिसमें 7500 किमी लंबा हिमालय, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बर्फ भंडार और दक्षिण में घुटने की आबादी वाली तट रेखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली उनकी एक अरब आबादी में लगभग 700 मिलियन लोग अपने निर्वाह और कृषि के लिए सीधे जलवायु संवेदनशील क्षेत्र ( कृषि, वन, मत्स्य पालन ) और प्राकृतिक जीव ( पानी, जैव विविधता, मैंग्रोव, तटीय क्षेत्र , घास ) पर निर्भर रहते हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां कृषि और मौसम जीवन की रीढ़ हैं, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सर्वाधिक महसूस किया जाता है। यह न केवल पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देता है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। विश्व बैंक के एक आंकड़ों के अनुसार हॉट क्लाइमेट के कारण 2050 तक 21 मिलियन लोगों को अत्याधिक गर्मी, बौनापन, दस्त, मलेरिया और डेंगू जैसे जोखिम उठाना पड़ सकता है। भारत में जलवायु परिवर्तन ने अत्यधिक तापमान, अनियमित वर्षा पैटर्न, सूखा, बाढ़ और चक्रवाती तूफानों के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसके चलते विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं उभर कर आ रही हैं, जैसे कि जलजनित रोग, श्वसन समस्याएं, और उष्णकटिबंधीय बीमारियां,विशेष रूप से गर्मी अधिक तीव्रता से होती हैं। यह जलवायु परिर्वतन वृद्ध और बच्चों में हीट स्ट्रोक और निर्जलीकरण के मामले बढ़ा रही हैं। अनियमित वर्षा और बाढ़ से पीने के पानी का संक्रमण से जलजनित रोग जैसे हैजा, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, जो बड़े पैमाने पर जनसंख्या के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं।
इसके अलावा, वायु प्रदूषण, जो जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही है, श्वसन संबंधी बीमारियों जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है। भारतीय शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण का बोझ विशेष रूप से चिंताजनक है। दस में से नौ लोग दुनिया में प्रदुषित हवा में सांस लेते हैं। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से वायु प्रदुषित होता है।0 खाद्य सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता है। अस्थिर मौसम पैटर्न और बढ़ते तापमान के कारण फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिससे खाद्यान्न की कमी और पोषण संबंधी असुरक्षा बढ़ रही है। यह स्थिति विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में अधिक गंभीर है, जहां आजीविका मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है।
सामाजिक-आर्थिक असमानताएं इन स्वास्थ्य प्रभावों को और भी बढ़ा देती हैं। निम्न आय वर्ग के लोग, जो पहले से ही विश्व स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इन सबका सामना करने के लिए, भारत को एक जटिल और समेकित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है जो पर्यावरणीय संरक्षण, स्वास्थ्य सुरक्षा, और आर्थिक विकास को एक साथ बाँधती है। इसमें स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करना, जलवायु लचीलापन बढ़ाने के उपाय करना, और जनसंख्या को आगाह करने वाली शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों को शामिल करना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम जलवायु परिर्वतन से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों के लिए तैयारी करें और उचित अनुकूलन योजनाएं विकसित करें।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के इस जुड़ाव को समझना और इस पर प्रभावी ढंग से काम करना न केवल भारत की वर्तमान पीढ़ी के लिए आवश्यक है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिशा में प्रगति करने के लिए एक संयुक्त और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है जो वैज्ञानिक ज्ञान, सामाजिक इच्छाशक्ति, और राजनीतिक नेतृत्व को एकजुट करता है। यदि हम इन चुनौतियों का सामना समझदारी और दृढ़ संकल्प से करते हैं, तो हम एक स्वस्थ और स्थायी भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
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