देहरादून। ‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी’ के वैज्ञानिकों ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में इंडो-यूरेशियन प्लेटों के टक्कर से उत्पन्न होने वाले भूकंपों के अध्ययन डाटा को एकत्रित किया है और डाटा से उन क्षेत्रों की पहचान की है जो भूकंप से अत्यधिक प्रभावित और जोखिम में हैं। इस अनुसंधान के अनुसार, पूर्वी हिमालय के दार्जिलिंग, सिक्किम, अरुणाचल, असम और भूटान क्षेत्रों में भविष्य में आठ या उससे अधिक मेग्नीट्यूड की तीव्रता वाले भूकंप आने की संभावना है। मुख्य रूप से इस बात को कह सकते हैं कि इंडो-यूरेशियन प्लेटों के टक्कर से भूकंप की संभाव्यता पूर्वी हिमालयी क्षेत्रों में है।
एक दूसरी जानकारी दिल्ली-NCR क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन के बारे में है। भूजल का अत्यधिक दोहन से दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंसने की संभावना रखते हैं। यह निष्कर्ष यूके, जर्मनी और मुंबई के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन से निकला है। दिल्ली-NCR का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर का एरिया उच्च जोखिम वाले जोन में आता है। इस अध्ययन को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र शगुन गर्ग, IIT बॉम्बे के प्रोफेसर इंदू जया, अमेरिका के साउथर्न मेथोडिस्ट विश्वविद्यालय के वामशी कर्णम, और जर्मनी के जियोसाइंसेस सेंटर के प्रोफेसर महदी मोटाघ ने किया है।
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा। हाल फिलहाल के दो अध्ययन हमारे लिए इस खतरे का संकेत दे रहे हैं। एक अध्ययन पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के आवृत्ति और तीब्रता बढ़ने की बात कर रहा है। तो दूसरा भूजल का अत्यधिक दोहन से दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंसने की संभावना की बात कर रहा है। दोनों अध्ययनों को जोड़ कर अगर पढ़ा जाए तस्वीर का एक नया पहलू सामने आता है। और वह यह है कि भूजल के बेहिसाब दोहन से भूधंसाव के खतरे बढेंगे और भूधंसाव के साथ ही भूंकप से पानी के स्रोतों के सूखने का खतरा बढ़ेगा।
राजस्थान के बीकानेर और बाड़मेर में जमीन धंसने की दो बड़ी घटनाएं
राजस्थान के बीकानेर और बाड़मेर जिलों में हाल ही में जमीन धंसने की दो बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिससे भू-वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ गई है। बीकानेर में 16 अप्रैल को और बाड़मेर में 6 मई को जमीन धंसने की घटनाएं हुईं, जिसमें बीकानेर में एक बड़ा गड्ढा और बाड़मेर में दो समानांतर दरारें बन गईं। प्रारंभिक रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों जिलों में जमीन धंसने का एक समान कारण पानी का अत्यधिक दोहन हो सकता है। जीएसआई की टीम ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रशासन को सौंप दी है, लेकिन ग्रामीण इन दावों पर सवाल उठा रहे हैं।
16 अप्रेल 2024 को बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील के सहजरासर गांव में रात के करीब साढ़े तीन बजे डेढ़ बीघा जमीन धंस गई। और गड्ढा करीब 80-90 फीट का है। दूसरी घटना छह मई 2024 को बाड़मेर जिले के नागाणा गांव की है। यहां करीब डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में जमीन में काफी गहरी दो समानांतर दरार पड़ी हैं।
सहजरासर में उत्पन्न हुए गड्ढे के पीछे मुख्य कारणों के रूप में जीएसआई ने भूजल का अत्यधिक दोहन और वर्षा की कमी को चिह्नित किया है। जीएसआई अधिकारियों का कहना है कि यह प्रारंभिक रिपोर्ट है। आगामी दिनों में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें उपग्रह चित्रों, जल स्तर और अन्य तकनीकी विवरणों के आधार पर गहन विश्लेषण किया जाएगा।
भूजल दोहन और दिल्ली एनसीआर
दिल्ली-NCR में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसके कारण इस क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंस सकते हैं। दिल्ली-NCR का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर का एरिया धंसने के लिए उच्च जोखिम वाले जोन में है। इस अध्ययन को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र शगुन गर्ग, IIT बॉम्बे के प्रोफेसर इंदू जया, अमेरिका के साउथर्न मेथोडिस्ट विश्वविद्यालय के वामशी कर्णम, और जर्मनी के जियोसाइंसेस सेंटर के प्रोफेसर महदी मोटाघ ने किया है। शगुन गर्ग ने बताया कि इस अध्ययन में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के सेंटीनल-1 सैटेलाइट के रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग किया गया है, जो अक्टूबर 2014 से जनवरी 2020 तक का है। भूस्खलन बहुत धीमी गति से होता है, जिसे मिलिमीटर और सेंटीमीटर में मापा जाता है और यह इतना धीमा होता है कि आमतौर पर पता नहीं चलता। दिल्ली एनसीआर के कापसहेड़ा, महिपालपुर, दिल्ली-गुरुग्राम ओल्ड रोड और फरीदाबाद इलाकों में अध्ययन किया गया है। जिसका निष्कर्ष है कि
- भूजल दोहन: दिल्ली-NCR में भूजल का तेजी से दोहन हो रहा है, जिससे जमीन धंसने का खतरा बढ़ रहा है।
- सिंक होल का खतरा: भूजल की कमी से सिंक होल बनने की संभावना है, जो इमारतों और सड़कों के लिए खतरा है।
- वैज्ञानिक चेतावनी: वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर भूजल का दोहन जारी रहा तो बड़े स्तर की तबाही आ सकती है।
और अंत में
दिल्ली एनसीआर और राजस्थान में घट रही घटनाओं की सीख हमें बता रही है कि हिमालयन जियोलाजी भी खतरे में है। हिमालय क्षेत्र में लगातार छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं, इन भूकंपों की वजह से हिमालयन जिओलॉजी में बहुत बड़े परिवर्तन होते रहते हैं। जियोलॉजिकल पोजीशन की वजह से काम कर रहे हिमालयीय एक्वीफर प्रभावित हो जाते हैं, जिसकी वजह से नौले-धारों का डिस्चार्ज प्रभावित हो जाता है। भूकंप से हिमालयीय एक्वीफर और ड्रेनेज प्रणाली नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। नीति आयोग की सिफारिश पर, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट ने चम्पावत और अल्मोड़ा जिलों के जल-संसाधनों की जियो मैपिंग की है। जल के बढ़ते उपभोग और प्रकृति की भरपाई करने में असमर्थता के कारण पर्यावरण और समाज पर दबाव है। कुछ दशक पहले डॉ. केएस वल्दिया ने चेतावनी दी थी कि सूखे जलस्रोतों को इंजीनियरिंग कौशल से दोबारा जीवित नहीं किया जा सकता। लगातार हो रहे भूजल दोहन की वजह से छोटे-छोटे भूधंसाव और भूकंप लगातार आ रहे हैं। ये सब मिलकर एक बड़े भूकंप को न्यौता दे रहे हैं। स्पेन में कुछ वर्ष पूर्व भूकंप आने के पीछे मुख्य कारण यही माना गया कि वहां का जल स्तर 300 फीट से नीचे चला गया था।
/articles/behisaab-bhoojal-dohan-pahaadon-mein-bhookamp-ke-khatre-ko-vinashakari-bana-dega