Kesar Singh

जल मृदा-पौधे भोजन शृंखला के द्वारा मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन
महाद्वीपीय परत में आर्सेनिक की औसत सांद्रता 1-5 मिलीग्राम / किग्रा होती है जो यह दोनों एंथ्रोपोजेनिक और भूजनिक स्रोतों से आती है। यद्यपि, आर्सेनिक प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हाल ही के प्रकरण में यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि गंगा- मेघना ब्रह्मपुत्र (GMB) नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का आर्सेनिक प्रदूषण भूजनिक प्रवृति का है











Kesar Singh posted 1 year 11 months ago
मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन,Pc-N18
मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण 
विभिन्न जल संसाधनों में से भूजल हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन की क्रियाओं में अधिकतम योगदान देता है। विश्व के कुल 3% ताजा जल संसाधनों में से अधिकतर जल ध्रुवीय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पाया जाता है, वैश्विक जल का केवल 1% भाग ही तरल अवस्था में मौजूद है। जबकि, कुल 98% ताजा भूजल तरल अवस्था में पाया जाता है, इसलिये, यह पृथ्वी का सबसे मूल्यवान ताजा जल संसाधन है। भूजल की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य और खाद्यान की मात्रा एवं गुणवत्ता के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, फसलों और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।



Kesar Singh posted 1 year 11 months ago
मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण,Pc-Indiatimes
भारतीय कृषि में आधुनिक - उन्नत सिंचाई विधियां
भारत के कृषि पर निर्भर होने के कारण सिंचाई इसकी रीढ़ की हड्डी है। कृषि के उपयोग में आने वाली सामग्रियों (इनपुट) में बीज, उर्वरक, पादप संरक्षण, मशीनरी और ऋण के अतिरिक्त सिंचाई की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सिंचाई सूखी भूमि को वर्षा जल के पूरक के तौर पर जल की आपूर्ति की एक विधि है, इसका मुख्य लक्ष्य कृआप्लावन और बारहमासी
नहरों तथा बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के द्वारा की जाती है।
Kesar Singh posted 1 year 11 months ago
भारतीय कृषि में आधुनिक उन्नत सिंचाई विधियां, PC- Mid
वाटरकीपर डायने विल्सन गोल्डमैन एनवायरमेंट पुरस्कार 2023 से सम्मानित
पर्यावरण के क्षेत्र में गोल्डमैन एनवायरमेंट पुरस्कार नोबेल के समकक्ष का पुरस्कार है। भारत की कई महत्वपूर्ण शख्सियतों को यह सम्मान प्राप्त हुआ है। भारत से मेधा पाटेकर, पर्यावरण प्रख्यात अधिवक्ता वकील एमसी मेहता, चंपा देवी शुक्ला आदि कई लोग गोल्डमैन एनवायरमेंट पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। इस पुरस्कार को ग्रीन नोबेल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है। Kesar Singh posted 2 years ago
वाटरकीपर डायने विल्सन
पानी के लिए अब जरधोबा में नहीं होती लड़ाइयां : पहले था पानी के लिए हाहाकार, अब हर घर में साफ पानी
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से सटे जरधोबा गांव एक साल पहले तक जल संकट से जुझ रहा था। गर्मी के दिनों में पानी को लेकर यहां मारपीट हो जाती थी। कुछ मामलों में ग्रामीणों ने एक-दूसरे के खिलाफ एफ.आई.आर. तक करा दी थी। ऐसे में पानी को लेकर गांव में तनाव बना रहता था। लेकिन पिछले साल जब हर घर नल कनेक्शन के लिए जल जीवन मिशन के तहत नल जल योजना पर काम शुरू किया गया, तब यह उम्मीद जगी कि भविष्य में पानी को लेकर गांव में लड़ाइयां नहीं होगी। आखिरकार यह योजना क्रियान्वित हो गई और अब हर घर में साफ पानी मिलने लगा है। Kesar Singh posted 2 years ago
जरधोबा
पर्यावरण रक्षक सिद्ध गिद्ध
पहले हमारे शहरों, खासकर हमारे गाँवों के गोचर व कचरे वाले स्थल, व जंगलों में इनकी संख्या बहुत हुआ करती थी, लेकिन अब यदाकदा ही हमें गिद्ध कहीं नजर आते हैं। गिद्ध पक्षी को रामायण में जटायु के रूप में रावण से लड़कर मरने के कारण हम उसे श्रद्धा से देखते हैं, जबकि आमतौर पर इसे घृणित और बदसूरत पक्षी के रूप में जानते हैं व मरे हुए जानवरों के माँस को खाने के कारण हम इन्हें कम पसन्द करते हैं। लेकिन इसके इस महत्वपूर्ण काम के लिए इसे हम पर्यावरण का रक्षक भी कहते हैं Kesar Singh posted 2 years ago
गिद्ध, साभार - विकिपीडिया
ई-कचरा : पर्यावरण प्रदूषण का नया आयाम
सेलफोन, टेलीविजन कम्प्यूटर व लैपटॉप आदि ने संचार की दुनिया का परिदृश्य बदला, वहीं दूसरी ओर इससे उपजे कचरे ने पर्यावरण असंतुलन में भयानक योगदान दिया है। दरअसल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते प्रयोग के साथ-साथ ई-कचरे के परिमाण में भी अभिवृद्धि हुई है। खराब अथवा प्रयोग में न आने वाले मोबाइल फोन, टीवी, कम्प्यूटर, प्रिन्टर, छायाकन मशीन, रेडियो, ट्रांजिस्टर आदि उपकरणों का ढेर विश्वव्यापी समस्या बन चुके हैं। Kesar Singh posted 2 years ago
ई-कचरा
पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष : कार्बन उत्सर्जन में गांव भी पीछे नहीं
शिवचंद्र सिंह तीन भाई हैं और तीनों किसान हैं. ये तीनों चिलचिलाती धूप, कड़ाके की ठंड एवं मूसलाधार बारिश की मार झेलकर भी धरती का सीना चीर अनाज उपजाते हैं, तब बमुश्किल परिवार का भरण-पोषण हो पाता है. बिहार के वैशाली जिले का एक गांव है कालापहाड़. शिवचंद्र सिंह की तरह ही इस गांव में बिल्कुल अलग बसे एक टोले के करीब 30 परिवारों का पेशा भी किसानी ही है. शिवचंद्र कहते हैं कि भीषण गर्मी के कारण जलस्तर काफी नीचे चला गया है. इस कारण सिंचाई करना मुश्किल हो रहा है. डीजल महंगा है और इधर बिजली चालित मोटर पंप पानी खींच नहीं पा रहा है. Kesar Singh posted 2 years ago
Temple pond in Kerala (Image: Sreekanth V, Wikimedia Commons)
पारितंत्रीय बहाली एवं कार्बन फुटप्रिंट घटाने हेतु अभिनव प्रयत्न
पारिस्थितिक तंत्र की बहाली (इकोसिस्टम रेस्टोरेशन) कई मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के इसी मौके पर आधिकारिक रूप से यूनाइटेड नेशंस डिकेड ऑन इकोसिस्टम रेस्टोरेशन 2021-2030 लॉन्च किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक महाद्वीप और समस्त महासागरों में हो रहे  पारिस्थितिक तंत्र के अपकर्ष को रोकना और अधोमुखी करना है। Kesar Singh posted 2 years ago
कार्बन फुटप्रिंट, साभार - जागरण जोश
शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है।
Kesar Singh posted 2 years ago
शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण,Pc- Fii
तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा
पिछले दो दशकों में हमारे देश में तकनीक आधारित डिजिटल सेवाओं का बड़ा विस्तार हुआ है। उसका सबसे बड़ा प्रभाव बैंकिंग और डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में देखने को मिलता है। सरकार द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देने के कारण ऑनलाइन लेन-देन में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। माना जाता है कि अब लगभग चालीस प्रतिशत लेन-देन ऑनलाइन माध्यमों से ही हो रहा है। देश में पंचायत स्तर तक नागरिक सुविधा केंद्र यानी कॉमन सर्विस सेंटर का जाल बिछाया गया है, जो कई तरह की सेवाएं प्रदान कर रहे है। किताबें हों, कपड़े हों या घरेलू उपयोग का कोई और सामान, घर बैठे मंगवाया जा सकता है। और अब तो राशन और सब्जियां आदि भी सीधे दुकान से घर पहुंचने की व्यवस्था की जा रही है। शिक्षा, आवागमन, यातायात, चिकित्सा, शोध और विकास जैसे सभी क्षेत्रों में सूचना तकनीक ने अपना हस्तक्षेप बढ़ा लिया है। यह प्रगति की दिशा में एक अच्छा सूचक है। भारत सूचना सेवाओं के लिए एक निर्यातक देश माना जाता है और हमें विश्व में सॉफ्ट पॉवर की तरह देखा जाता है।
Kesar Singh posted 2 years ago
तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा, Pc-stockholm
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी अध्ययन की संकल्पना
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी का अर्थ है जीवित प्राणियों के आपसी तथा पर्यावरण के साथ उनके संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन। पेड़-पौधे, जंतु और सूक्ष्म जीवाणु अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अन्योन्यक्रिया करते हैं। पर्यावरण के साथ मिलकर वे एक स्वतंत्रा इकाई की सृष्टि करते हैं जिसे पारिस्थितिकी तंत्र या पारितंत्र (इकोसिस्टम) का नाम दिया जाता है। वन, पहाड़, मरुस्थल, सागर आदि पारितंत्रों के ही उदाहरण हैं। Kesar Singh posted 2 years ago
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी अध्ययन की संकल्पना,PC-dreamstime
पिघलते ग्लेशियर भी क्लाइमेट इमरजेंसी की वजह 
हाल ही के वर्षों में वहां बर्फ इतनी तेजी से पिचलने लगी है कि जिसे देखकर डर लगता है डर की वजह यह है कि इन इलाकों की एक सेंटीमीटर बर्फ पिघलने का असर 60 लाख लोगों पर पड़ता है। इसका अभिप्राय यह है कि इस तरह 60 लाख नए लोग डूब क्षेत्र की जद में आ जाते हैं। Kesar Singh posted 2 years ago
पिघलते ग्लेशियर भी क्लाइमेट इमरजेंसी की वजह,Pc-Flicker Hindi Water Portal
क्लाइमेट इमरजेंसी हंगामा है क्यों बरपा
पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। Kesar Singh posted 2 years ago
2020 was one of the warmest years in India despite La Nina which typically has a cooling effect on global temperatures.(Image: Tumisu, Pixabay)
संदूषण जलराशियों के बुढ़ापे का संकेत
आधुनिक युग में पढ़ते औद्योगीकरण व विकास की अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते विभिन्न जल स्रोतों के जल की गुणवत्ता पर काफी मात्रा में विपरीत प्रभाव पड़ा है। अतः जल प्रदूषण पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। परन्तु जलराशियों के लिए प्रदूषण के अलावा संदूषण भी एक और समस्या है Kesar Singh posted 2 years ago
संदूषण जलराशियों के बुढ़ापे का संकेत,Pc-Encyclopedia Britannica
बिहार में भूगर्भीय जल संदूषण से पशुओं में फ्लोरोसिस से कुप्रभाव एवं बचाव के उपाय
भूजल में फ्लोराइड का प्रदूषण चट्टानों और अवसादों का अपक्षय और उनमें फ्लोराइड युक्त खनिजों के लीचिंग के कारण होता है। इनके अतिरिक्त उर्वरक और एल्यूमीनियम फैक्टरी के अवशिष्ट जल के भूजल में मिलने से भी पानी फ्लोराइड युक्त हो सकता है। फ्लोराइड की मात्रा कुछ खाद्य पदार्थों में भी अधिक होता है जैसे की समुद्री मछली, पनीर, तुलसी एवं चाय, खाद्य-सामग्री में फ्लोराइड की मात्रा मुख्यतः मिट्टी के प्रकार, भू-पटल में उपस्थित लवणों एवं उपलब्ध पानी पर निर्भर करती हैं। पशु एवम् मनुष्य के शरीर में फ्लोराइड अथवा हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के अधिक प्रवेश होने से फ्लोरोसिस रोग होता है। इसके कारण पशुओं में बाँझपन, उत्पादन घाटा, दांत, हड्डियां, खुर, सींग में विकृति, और अन्य शारीरिक अंग प्रभावित हो सकते हैं।
Kesar Singh posted 2 years 1 month ago
बिहार में भूगर्भीय जल संदूषण से पशुओं में फ्लोरोसिस से कुप्रभाव एवं बचाव के उपाय,pc-Fluoride Action Network
जल प्रदूषण निवारण एवं कानूनी नियंत्रण
प्रदूषण आज की एक ज्वलंत समस्या है। प्रदूषण पर्यावरण को ही दीमक की तरह खोखला कर रहा है। आज न केवल मानव जाति, अपितु पशु-पक्षी भी प्रदूषण से व्यथित एवं कुंठित हैं। जन जीवन प्रदूषण से प्रतिकूल प्रभावित हुआ है। विकलांगता, अंधापन आदि प्रदूषण के ही परिणाम है। प्रदूषण चाहे हवा हो या जल का प्रदूषण मानव जाति के लिए घातक है। यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय को इण्डियन कौसिंल फार एन्वायरो लीगल एक्शन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1446) के मामले में यह कहना पड़ा कि अब समय आ गया है जब प्रदूषण निवारण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए शासन, प्रशासन और स्वैच्छिक संगठनों को पहल करनी होगी।

Kesar Singh posted 2 years 1 month ago
जल प्रदूषण निवारण एवं कानूनी नियंत्रण,pc-anokha gyan
भारत में जैविक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग : पर्यावरण संरक्षण के परिप्रेक्ष्य में
भारत में जैविक कृषि का इतिहास लगभग 5000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। यह सजीव खेती का ही परिणाम था कि इतने लम्बे समय तक अनवरत अन्न उत्पादन के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बनाये रखा जा सका। सन् 1966-67 से भारत में हरित क्रांति की शुरूआत की गयी। कृषि प्रौद्योगिकीकरण के नाम पर सघन खेती शुरू की गई। साथ ही संकर बीजों और रासायनिक कीटनाशी व खरपतवारनाशी तथा अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणाम ने खेत, मिट्टी, उपज, किसान और पर्यावरण सभी को प्रभावित किया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति, उत्पादकता, जैवविविधता खाद्य पदार्थ की गणुवत्ता के साथ-साथ समूचे पर्यावरण को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। हजारों वर्ष पुरानी परम्परागत खेती के तरीके जिन्हें हमने रूढ़िवादी और पुरानी नीति समझकर नकार दिया था वही इन्द्रधनुषीय विकास के मूलसूत्र हैं। Kesar Singh posted 2 years 1 month ago
कुदरती खेती
कौसानी में पर्वतीय विकास की सही दिशा मुद्दे पर संवाद गोष्ठी
‘पर्वतीय विकास की सही दिशा’ के मुद्दे पर आयोजन समिति द्वारा अनासक्ति आश्रम कौसानी में 5-7 अप्रैल 2023, पर्वतीय विकास की सही दिशा विषय पर तीन दिवसीय संवाद गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। आप अवगत ही हैं कि 5 अप्रैल सरला बहिन की जन्म तिथि है। Kesar Singh posted 2 years 1 month ago
ग्राम मल्ली बिठोली का सीम नौला
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